shooter

शूटर रूबी तोमर


जोहड़ी गांव की वयोवृद्ध शूटर प्रकाशी तोमर की पोती रूबी तोमर निशानेबाजी के दम पर अपना लोहा मनवा चुकी है। रूबी तोमर नेशनल लेवल पर दस गोल्ड, 12 रजत व 7 कांस्य पदक जीत चुकी है। 2011वर्ष चीन में हुई विश्व यूनिवर्सिटी शूटिंग चैम्पियनशिप के एयर पिस्टल स्पर्धा में रूबी ने स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया।
इन्हीं उपलब्धियों से खुश होकर पंजाब पुलिस के डीआईजी स्पो‌र्ट्स राजन गुप्ता ने  रूबी को पंजाब पुलिस में एसआई के पद के लिए नियुक्ति पत्र भेजा। दादी प्रकाशी तोमर ने बताया कि रूबी ने 23 मार्च 2012 को जालंधर जाकर ड्यूटी ज्वाइन कर ली है। एक अप्रैल से उसकी ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी। रूबी के पंजाब पुलिस में सब इंस्पेक्टर बनने पर परिजनों व ग्रामीणों में खुशी की लहर है।
अंतरराष्ट्रीय शूटर अनु तोमर



जयपुर में 29 मार्च से 2 अप्रैल 2012  तक ऑल इंडिया रेलवे शूटिंग चैंपियनशिप आयोजित की जा रही है। इसमें 16 रेलवे लॉन के शूटर निशाना साध रहे हैं। शहर की अंतरराष्ट्रीय शूटर अनु तोमर ने वेस्टर्न रेलवे की ओर से निशाना लगाते हुए तीन पदकों पर कब्जा जमाया। अनु ने एयर राइफल की 50 मीटर प्रोन पोजीशन टीम वर्ग में 600 में से 586 अंक और 50 मीटर थ्री पोजीशन टीम वर्ग में 1700 में से 1650 अंक हासिल कर स्वर्ण पदक जीते और महाराजा बनारस ट्राफी पर कब्जा किया। व्यक्तिगत 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में 400 में से 392 अंक हासिल कर रजत पदक जीता।


और कुछ शूटर 
वर्षा तोमर ,सीमा तोमर , चन्द्रो तोमर,   को सर्च कारण है

प्रकाशो देवी



प्रकाशो देवी तोमर  उत्तर प्रदेश के बाघपत जिले कि जोहड़ी गाव कि एक जाटनी है प्रकाशो देवी ,चन्द्रो देवी कि रिश्ते में देवरानी है प्रकाशो तोमर के चार बेटों और बेटियों है उनकी बेटी सीमा तोमर और पोती रूबी तोमर अंतरराष्ट्रीय शूटर हैं।


पहली नजर में, हट्टी-कट्टी प्रकाशो हर जगह मौजूद दूसरी अन्य बूढ़ी दादियों की तरह किसी भी तरह से अलग नहीं दिखतीं। लेकिन जब वह आपको घूर कर देखेंगी तब पता चलेगा कि वह कोई साधारण महिला नहीं है।[प्रकाशो देवी के अनुसार  जब प्रकाशो तोमर ने निशानेबाज़ी सीखना शुरू किया तो गाँव में मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया गया| कोई कहता कि बुढ़िया ने नवाबों के शौक पाल लिए है, तो कोई कहता, बंदूक उठा ही ली है तो कारगिल चली जा
यह बताते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान उभर आती है कि कैसे एक बार जब उन्होंने एक निशानेबाजी प्रतियोगिता में पुरुषों को हरा दिया, तो हारे हुए अधिकांश पुरुषों ने उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने से मना कर दिया।



चेन्नई में वेटरं चैंपियनशिप के दौरान उपविजेता ने विजेता प्रकाशो तोमर के साथ मंच साझा करने से शर्म के मारे   इनकार कर दिया जब उन्होंनेचेन्नई व दिल्ली में मेडल जीते तो पुरुष निशानेबाजों ने मेडल लेने के लिए मेरे साथ मंच पर खड़े होने से इंकार कर दिया था। क्योंकि उन्हें एक बूढ़ी औरत के साथ मंच पर शर्म महसूस हो रही थी।
प्रतियोगिताओं में प्रकाशो का पहला और सबसे यादगार लम्हा था – जब दिल्ली पुलिस के एक पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) गांव की इस महिला से हारने पर इतने शर्मिंदा हुए कि उन्होंने पुरस्कार वितरण समारोह का इंतजार भी नहीं किया और वहां से चले गये।




पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में लोग अक्सर बंदूकों का इस्तेमाल आपसी विवादों को सुलझाने के लिये करते हैं और इस क्षेत्र में पुरुषों को बंदूकों के साथ घमंड में चूर होकर चलते देखना आम बात है। 75  वर्षीय शार्प शूटर इस जाट दादी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बंदूकधारी पुरुषों के चेहरों को न सिर्फ शर्म से लाल कर दिया, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर उन्होंने अपनी उम्र के तीसरे पड़ाव में युवा लड़कियों को बाहरी दुनिया में बेधड़क हो कर सामने आने के लिये प्रेरणा दी है।

निशानेबाज़ी और बंदूक वाली दादी
प्रकाशो तोमर (70)को यह शौक बचपन में नही बल्कि बुढ़ापे में लगा उनका कहना है कि ‘‘जब मैंने बंदूक उठाई तो मुझमें अपार साहस और आत्मविश्वास आ गया’’। उनके इसी आत्मविश्वास का असर उस क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं पर भी हुआ है। प्रकाशो उनके लिये रोल-मॉडल बन गयी।
प्रकाशो कुछ समय बिताने के लिये अपने पोते को लेकर जौहरी के बेसिक शूटिंग रेंज गयी थीं। वहां उन्होंने जिज्ञासावश एक बंदूक उठाई और कुछ गोलियां चलाईं, उस वक्त भी उनमें से लगभग सभी निशाने पर लगीं। उसके कोच राजपाल सिंह कहते हैं ‘वह सहज थीं’ और उस दिन से बंदूकें उनकी दिनचर्या में शामिल हो गयीं।
वह प्रतिदिन शूटिंग रेंज में अपने पोते को लेकर आती हैं और जैसे उनका पोता अभ्यास करता है वैसे ही दादी भी करती हैं। नियमित अभ्यास ने प्रकाशो को निशानेबाजी में प्रवीण बना दिया और अगले कुछ महीनों में जब तक वह पूरी तरह से निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के प्रति आश्वस्त हुईं, वह अचूक निशानेबाज बन चुकी थीं।

पदक

प्रकाशो दादी ने कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है और करीब 200 मेडल जीत चुकी है|  प्रकाशो तोमर ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में लगभग 25 मेडल जीतकर रिकार्ड कायम किया।
धीरे-धीरे वह निशानेबाजी की दुनिया उतर आईं। 2001 में उन्होंने वाराणसी में 24वीं उप्र राज्य निशानेबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इसके बाद अब उनको भी याद नहीं है कि उन्होंने कितनी प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अचूक निशाने लगाए और पदक जीते। वे राष्ट्रीय स्तर पर 25 से अधिक खिताब जीत चुकी हैं। एक प्रतियोगिता में एयर पिस्टल .32 बोर की यह महारथी पुलिस के डीआईजी को भी मात दे चुकी हैं,  एयर पिस्टल 25 मीटर में उन्होंने 2001 में यूपी स्टेट चंडीगढ़ में सिल्वर, 2001 में अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में स्वर्ण, 2001 में तमिलनाडु में नेशनल प्रतियोगिता में स्वर्ण, 2002 में दिल्ली में नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड जीता।
काशो कोयंबटूर में सिल्वर मेडल, ,  और चेन्नई में सिल्वर मेडल जीत चुकीं हैं।
2009 में सोनीपत में हुए चौधरी चतर सिंह मेमोरियल प्रतिभा सम्मान समारोह में उन्हें सोनिया गांधी ने सम्मानित किया। उत्तर प्रदेशीय महिला मंच के संस्‍थापक और कलम के योद्धा रहे स्‍व0 वेद अग्रवाल की स्‍मृति में दिए जाने वाला साहित्‍य-पत्रकारिता-2011 पुरस्‍कार ,2006 में मेरठ में उन्हें स्त्री शक्ति सम्मान मिला।




दादी की हिम्मत का फल है की अब इस गाँव की अगली पीढ़ी में भी कई और निशानेबाज़ तैयार हो रहे है| दादी को देख और भी महिलाए इस खेल को अपनाकर कई स्पर्धाओं में भाग ले रही है| इतना ही नही की दादी ने ही निशानेबाज़ी में झंडे गड़ रखे है, उनकी बेटी सीमा तोमर और उनकी पोटियाँ भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सिर उँचा किया है| सीमा खुद एक आंरराष्ट्रीय शूटर है और तीन साल से वुमैन शूटिंग की राष्ट्रीय चैम्पियन है| प्रकाशो तोमर किसान परिवार से हैं। ढेरों मेडल जीतने के बाद भी उनकी दुनिया नहीं बदली है।
वे आज भी घर के काम करती हैं और परिवार की देखरेख करती हैं। अधिक उम्र होने के बाद भी उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है।

वर्षा तोमर

वर्षा तोमर एक प्रतिभाशाली शूटर है जो उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बावली गाँव की रहने वाली है उनकी माँ उनको प्यार से शेर बेटा कहते है
प्रतिभाएं जन्मजात होती है। मगर यदि इन्हें प्रोत्साहन, सुविधा और संसाधन ना मिले तो ये अंकुरित होने से पहले ही दम तोड़ देती है। मगर कुछ ऐसे अपवाद भी होते है जो बिन सुविधा के भी अपने मुकाम को हासिल कर लेते है। ग्रामीण अंचलीय परिवेश में पली-बड़ी वर्षा तोमर भी ऐसे ही क्षेत्र से निकलकर विश्वपटल पर आज अपने क्षेत्र का नाम रोशन कर रही है।शूटर वर्षा तोमर अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने छोटे भाई बदन सिंह तोमर को देती हैं। बदन सिंह खुद नेशनल शूटर हैं। बकौल वर्षा, 'भैय्या ही मुझे शूटिंग के गेम में लेकर आए और हर कदम पर उनके सहयोग के चलते ही शॉट गन जैसे बेहद खर्चीले गेम में मुकाम हासिल कर पाई। कई बार ऐसे भी मौके आए जब पैसे की कमी आड़े आई तो उन्होंने खुद कई महत्वपूर्ण प्रतियोगिता में हिस्सा न लेकर मेरी तैयारी कराई'। एशियन क्ले चैम्पियनशिप में 2008 से 2011 तक लगातार पदक जीतने वाली वर्षा के खाते में छह इंटरनेशल व 32 नेशनल प्रतियोगिताओं में पदक जीतने का कीर्तिमान दर्ज है।  आज वर्षा आर्मी में है
 


सफलता का दौर

पटियाला में आयोजित दसंवी मास्टर शूटिंग चैम्पियनशिप में देश के नामचीन शूटरों के बीच से निकलकर बागपत की वर्षा तोमर ने सिल्वर मेडल हासिल कर एक बार फिर वेस्ट यूपी का गौरव बढ़ाया है।शूटिंग के क्षेत्र में देश के टॉप 12 शूटर के बीच मास्टर शुटिंग चैम्पियनशिप प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। इस बार प्रतियोगिता का आयोजन पटियाला में हुआ। करणसिंघ शूटिंग रेंज में हुई 57 वे नेशनल शूटिंग चैम्पियनशिप में सिल्वर जीता था


राजीव तोमर एक जाट पहलवान है. राजीव तोमर का जन्म 31 दिसंबर 1980 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के मलकपुर ग्राम हुआ ।नवंबर 2011 राजीव तोमर का मनीषा संग विवाह हुआ । राजीव की जीवन संगिनी मनीषा दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज में प्रोफेसर हैं।

राजीव तोमर को उनके बेहतर प्रदर्शन के लिए 2010 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। राजीव 2008 के बीजिंग ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
गुरु हनुमान अखाड़े में अपने कोच महासिंह राव से कुश्ती की बारीकियां सीखने वाले राजीव कई बार भारत केसरी भी रह चुके हैं और उन्होंने तीन बार राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता है।
राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पहलवानों को चित कर भारतीय पहलवान राजीव ने अर्जुन अवॉर्ड के साथ-साथ कई अवॉर्ड से अपनी जादू की झोली भर रखी है, जिसमें कई स्वर्ण पदक के साथ सिल्वर व कांस्य पदक भी हैं।
वर्ष 2005 में ओमान में हुए कॉमनवेल्थ में स्वर्ण पदक के साथ इसी वर्ष साउथ अफ्रीका में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर पदक को भी राजीव ने जीत लिया।
इसके बाद वर्ष 2007 में कनाडा में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी स्वर्ण पदक उनके ही खाते में गया। इसके बाद राजीव तोमर ने वर्ष 2008 में ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया। साथ ही वर्ष 2009 में जालंधर कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप व मुस्तफा गोल्ड कप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता और वर्ष 2009 में ही जर्मन में सिल्वर पदक जीता। वर्ष 2009 में अमेरिका में हुए वर्ल्ड कप में कांस्य पदक हासिल कर अपनी झोली भरी।




पहलवान शीतल तोमर 51 किग्रा में खेलेंगी

नोएडा : नोएडा की शीतल तोमर का थाइलैंड में आयोजित जूनियर एशियन चैंपियनशिप कुश्ती प्रतियोगिता के पहले दिन वजन लिया गया। वह 51 किग्रा वर्ग में अपना हुनर दिखाएंगी। इसके अलावा, बृहस्पतिवार को उन्होंने अपनी टीम की पहलवानों के साथ कई घंटे तक जमकर अभ्यास भी किया। इस बारे में नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन के मीडिया प्रभारी संदीप राय ने बताया कि शीतल तोमर से शुक्रवार को होने वाले मुकाबले में जोरदार टक्कर दे सकती हैं। यह मुकाबला किससे होगा? इस बारे में अभी तक जानकारी नहीं मिल पाई है। मीडिया प्रभारी ने बताया कि शीतल तोमर से ईमेल के जरिये ही संपर्क हो पा रहा है।



संदीप तोमर 
एक युवा जाट पहलवान है 

दिसंबर 2012
 29 नवंबर से दो दिसंबर तक  ब्राजील के रियो में आयोजित कोपा ब्राजील फ्रीस्टाइल ग्रीको रोमन और महिला फ्रीस्टाइल अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती टूर्नामेंट हुए इस टूर्नामेंट में भारतीय पहलवान संदीप तोमर ने फ्रीस्टाइल में सभी सात स्वर्ण पदक और ग्रीको रोमन में दो स्वर्ण तथा चार कांस्य पदक जीत लिए। भारत ने इस में  कुल 13 पदक जीते।

फ्रीस्टाइल में स्वर्ण जीतने वाले पहलवानों में संदीप तोमर (55 किग्रा),

संदीप तोमर ने 6, दिसम्बर 2013 जोहानिसबर्ग में कुश्ती (55 किग्रा) का स्वर्ण पदकजीतकर 2013 राष्ट्रमंडल कुश्ती चैम्पियनशिप के टीम खिताब पर कब्जा किया।

फरवरी 2014 में अमेरिका के कोलोराडो स्प्रिंग्स में डेव शुल्ज स्मृति अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में कुश्ती में संदीप तोमर ने भी प्रभावी प्रदर्शन करते हुए क्रमश: 57 किग्रावर्ग में कांस्य पदक जीते.

25  फरवरी 2014 
हरियाणा के हिसार जिले के तुहाना गांव में गत 22 व 23 फरवरी को विशाल दंगल का आयोजन किया गया था, जिसमें देशभर से जानेमाने पहलवानों ने प्रतिभाग किया। बागपत से छपरौली अखाड़े से अंतरराष्ट्रीय पहलवान संदीप तोमर ने 60 किग्रा में तथा मनोज कुमार ने 68 किग्रा में चुनौती पेश की। फाइनल में मनोज ने छत्रसाल स्टेडियम दिल्ली के पहलवान जयवीर को तथा संदीप ने इसी स्टेडियम के विशाल को हराकर भारत गौरव का खिताब कब्जाया। आयोजकों ने उन्हें भारत गौरव का पटका, प्रतीक चिह्न व 31 हजार रुपये देकर सम्मानित किया। 




अंशु तोमर 

Nov 2011राजीव गांधी गोल्ड कप कुश्ती प्रतियोगिता 

दिल्ली  के बवाना स्टेडियम में हुई राजीव गांधी गोल्ड कप कुश्ती प्रतियोगिता में हरियाणा की मल्ल को हराकर गोल्ड मेडल विजेता अंशु तोमर को गांव में पहुंचने पर ग्रामीणों ने पलकों पर बिठाया। इस उपलब्धि पर विजेता को एक लाख रुपये की धनराशि भी मिली।
भारत सरकार की तरफ से दिल्ली के बवाना स्टेडियम में एक से तीन नवंबर तक राजीव गांधी गोल्ड कप कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन कराया गया। कुश्ती प्रतियोगिता में देश भर के पहलवानों ने भाग लेकर श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मलकपुर की मल्ल भारत केसरी अंशु तोमर की 72 किग्रा भार वर्ग में 11 बाउट हुई और सभी जीती। फाइनल में हरियाणा की पूजा ढांढा के साथ भिड़ंत में काफी संघर्ष करना पड़ा और राजीव गांधी गोल्ड कप हासिल किया।

Oct 2013 

मलकपुर गांव की अंतरराष्ट्रीय महिला मल्ल अंशु तोमर ने एक बार फिर बाजुओं का दम दिखाकर भारत केसरी का खिताब अपने नाम किया है। उन्होंने लगातार पांचवी बार इस खिताब पर कब्जा किया। इस उपलब्धि पर उनके गांव मलकपुर में जश्न का माहौल है। गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने उनका जोरदार स्वागत किया।
गुरु हनुमान की स्मृति में नई दिल्ली के किशनगढ़, महरौली में 20 अक्टूबर को संपन्न हुए दंगल में अंशु ने हरियाणा की सुमन कुंडू को धूल चटा अपनी श्रेष्ठता साबित की। आयोजक धामी पहलवान ने उन्हें 51 हजार रुपये, पटका तथा गदा भेंटकर सम्मानित किया। 

वाराणसी में आयोजित प्रदेश स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में जिले के मल्लों ने शानदार प्रदर्शन किया। 

मलकपुर की भारत केसरी महिला मल्ल अंशु तोमर ने 72 किग्रा वर्ग में गोल्ड मेडल, जौहड़ी कीअंशु तोमर 

Nov 2011राजीव गांधी गोल्ड कप कुश्ती प्रतियोगिता 

दिल्ली  के बवाना स्टेडियम में हुई राजीव गांधी गोल्ड कप कुश्ती प्रतियोगिता में हरियाणा की मल्ल को हराकर गोल्ड मेडल विजेता अंशु तोमर को गांव में पहुंचने पर ग्रामीणों ने पलकों पर बिठाया। इस उपलब्धि पर विजेता को एक लाख रुपये की धनराशि भी मिली।
भारत सरकार की तरफ से दिल्ली के बवाना स्टेडियम में एक से तीन नवंबर तक राजीव गांधी गोल्ड कप कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन कराया गया। कुश्ती प्रतियोगिता में देश भर के पहलवानों ने भाग लेकर श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मलकपुर की मल्ल भारत केसरी अंशु तोमर की 72 किग्रा भार वर्ग में 11 बाउट हुई और सभी जीती। फाइनल में हरियाणा की पूजा ढांढा के साथ भिड़ंत में काफी संघर्ष करना पड़ा और राजीव गांधी गोल्ड कप हासिल किया।

Oct 2013 

मलकपुर गांव की अंतरराष्ट्रीय महिला मल्ल अंशु तोमर ने एक बार फिर बाजुओं का दम दिखाकर भारत केसरी का खिताब अपने नाम किया है। उन्होंने लगातार पांचवी बार इस खिताब पर कब्जा किया। इस उपलब्धि पर उनके गांव मलकपुर में जश्न का माहौल है। गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने उनका जोरदार स्वागत किया।
गुरु हनुमान की स्मृति में नई दिल्ली के किशनगढ़, महरौली में 20 अक्टूबर को संपन्न हुए दंगल में अंशु ने हरियाणा की सुमन कुंडू को धूल चटा अपनी श्रेष्ठता साबित की। आयोजक धामी पहलवान ने उन्हें 51 हजार रुपये, पटका तथा गदा भेंटकर सम्मानित किया। 

वाराणसी में आयोजित प्रदेश स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में जिले के मल्लों ने शानदार प्रदर्शन किया। 

मलकपुर की भारत केसरी महिला मल्ल अंशु तोमर ने 72 किग्रा वर्ग में गोल्ड मेडल, जौहड़ी की मनु तोमर ने 69 किग्रा वर्ग में रजत पदक, राजन तोमर ने 120 किग्रा वर्ग में रजत पदक झटका।

कुछ और  उभरते हुए पहलवान 
ने 69 किग्रा वर्ग में रजत पदक, राजन तोमर ने 120 किग्रा वर्ग में रजत पदक झटका।

कुछ और  उभरते हुए पहलवान 


मनु तोमर 




मनु तोमर ने दक्षिण अफ्रीका में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीता है। बागपत जिले की रहने वाली मनु गत पांच वर्षो से कुश्ती लड़ रही हैं। साथ ही कोलकाता में आयोजित सीनियर महिला नेशनल प्रतियोगिता में भी कांस्य पदक विजेता रही थीं। सीसीएसयू से एमए एजुकेशन कर रही मनु इस प्रतियोगिता में गोल्ड को निशाना बना रही हैं। 

23 Nov 2011 
हरियाणा की चौधरी देवीलाल यूनिवर्सिटी सिरसा में चल रही ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी कुश्ती प्रतियोगिता में जौहड़ी गांव की मल्ल मनु तोमर ने प्रतिद्वंद्वी को हरा कांस्य पदक जीता 




pisawa and phapund

तोमर (तंवर )जाटो की रियासत पिसावा

FORT OF PISAWA


पिसावा रियासत अलीगढ जिले में है पिसावा पर तोमर गोत्र के जाटों का राज रहा है । पिसावा के तोमर राजाओ का मूल निकास पृथला गाव पलवल हरियाणा से है पृथला के तोमर आज तंवर भी लिखते है जबकि अलीगढ में पृथला से आये जाट तोमर ही लिखते है आज अलीगढ में पिसावा के आसपास तोमर गोत्र के 28 गॉव है इनके नाम -जलालपुर,शेरपुर,पिसावा,भैयाका , मजूपुर /मंजूपुर, सिद्धपुर,सुजावलगढ़(सुगावलगढ़), कथागिरी,डेटाखुर्द ,पोस्तीका , सिमरौठी,थानपुर,शादीपुर,बिसारा, प्रेमपुर,बलरामपुर, डेटा कलां,सैदपुर,अहरौला, छाजूपुर ,इतवारपुर(इत्वारपुर) , बिछपूरी , जलालपुर ,मढ़ा हबीबपुर,सबलपुर, बलमपुर ,रूपनगर




पृथला ग्राम (पलवल ) के दो सगे भाई आवे(आदे) और बावे(बादे)थे| जो किसी कारणवश पृथला को छोड़ कर आधुनिक अलीगढ जिले की खैर तहसील में आ बसे और पिसावा रियासत कि स्थापना कि । कुछ समय बाद में बादे गंगा पार चला गया और एक अलग राज बनाया शोयदान सिंह (शिवध्यानसिंहजी) के बेटे विक्रम सिंह तोमर और चन्दराज सिंह आज पिसावा के मुखिया है वे घोड़ों के अंतरराष्ट्रीय व्यापारी है आदे के एक पूर्वज स्वरूपसिंह सिंह ने इब्राहिमपुर(ख़ुर्जा ) गाव में जागीरी प्राप्त की थी उनके सात लड़के थे इब्राहिमपुर पर तोमर जाटो से पहले अत्री जाटो का राज था । स्वरूपसिंह जी ने अत्री जाटो को युद्ध में हराकर इब्राहिमपुर और शेरपुर की रियासत पर कब्ज़ा कर लिया तक से अत्री जाटो और शेरपुर व इब्राहिमपुर गाव के तोमरों में शादी नही होती है,

तोमर जाटों कि अलीगढ में चाबुक भी बोला जाता है जो इनकी बोक है चाबुक बोलने के पीछे दो कारण है एक तो राजा होने के कारन घोड़ो को काबू में चाबुक को काम में लिया जाता था इसलिए इनको चाबुकवाला बोला जाता था
दूसरा कारन एक बार राजा साहब अकेले शिकार पर गये थे वहाँ से लोटे समय प्यासे राजा को एक आदमी भैस चरता दिखाई दिया राजा साहब ने नसेपिने का माँगा उस ग्वाले ने कहा तू का मैरो बटेव (दामाद ) है जो तेरे को पानी पिलाऊ गुस्से से राजा ने उस कि चाबुक से पिटाई कर दी ग्वाला ब्राह्मण जाति से था तोमर जाटो ने चाबुक से इस ग्वाले ब्राह्मण को पीटा था इसलिए इन लोग को अलीगढ में चाबुक के रूप में जाना जाता है तोमर लोग पिसावा के मालिक थे। अलीगढ़ में मराठों की ओर से जिस समय जनरल पीरन हाकिम था, इस गोत्र के सरदार मुखरामजी तोमर ने पिसावा और दूसरे कई गांव परगना चंदौसी में पट्टे पर लिए थे। सन् 1809 ई. में मि. इलियट ने पिसावा के ताल्लुके को छोड़ कर सारे गांव इनसे वापस ले लिए। किन्तु सन् 1883 ई. में अलीगढ़ जिले के कलक्टर साहब स्टारलिंग ने मुखरामजी के सुपुत्र भरतसिंहजी को इस ताल्लुके का 20 साल के लिए बन्दोबस्त कर लिया। तब से पिसावा उन्हीं के वंशजों के हाथ में है। शिवध्यानसिंह और कु. विक्रमसिंह तोमर एक समय पिसावा के नामी सरदार थे। कुं. विक्रमसिंह प्रान्तीय कौंसिल के मेम्बर भी थे। शिवध्यानसिंहजी भी जाति-हितैषी थे।पिसावा रानी उषा तोमर अलीगढ से सांसद भी रही है शोयदान सिंह के बेटे चन्दराज सिंह आज पिसावा के मुखिया है वे घोड़ों के अंतरराष्ट्रीय व्यापारी है पिसावा में आज इनके पास एशिया का सबसे बड़ा घोड़ो का फार्म हाउस है









पिसावा के राजा  श्यौदान सिंह तोमर 

(शिवदानसिंह)

राजा श्यौदान सिंह तोमर को ही शिवदान सिंह तोमर बोला जाता है 


सीकर के जाट किसानो के गोठड़ा सम्मेलन में अध्यक्षता  की 

गोठडा (सीकर) का जलसा सन 1938 जयपुर सीकर प्रकरण में शेखावाटी जाट किसान पंचायत ने जयपुर का साथ दिया था. विजयोत्सव के रूप में शेखावाटी जाट किसान पंचायत का वार्षिक जलसा गोठडा गाँव में 11 व 12 सितम्बर 1938 को राजा शिवदानसिंह तोमर अलीगढ की अध्यक्षता में हुआ जिसमें 10-11 हजार किसान, जिनमें 500 स्त्रियाँ थी,  






पिसावा के राजा  श्यौदान सिंह तोमर  ने भगत सिंह को  अपनी रियासत के शादीपुर गाव में शरण दी थी 

शहिद  ए आज़म भगतसिंह को को लाला लाजपत राय की मौत का गहरा सदमा लगा था। उनकी मौत का बदला चुकाने के लिए सांडर्स की हत्या कर दी। पुलिस भगत सिंह के पीछे पड़ी तो कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पास आ गए।  पु़लिस का खतरा बढ़ा तो 1928 में  टोडर सिंह तोमर  ट्रेन से उन्हें अलीगढ़ ले आए। सत्याग्रह आश्रम ही उनका ठिकाना हो गया। नए शख्स को देखने के बाद पुलिस की सक्रियता बढ़ी तो उन्हें बालजीवन घुट्टी के मालिक तुलसी प्रसाद के बगीचे में रखा गया। शहीद भगत सिंह को यहां पर भी असुरक्षित लगने पर उन्हें खेरेश्वरधाम मंदिर पर रखा गया, क्योंकि उस समय मंदिर पर भक्तों का आना-जाना कम था। कुछ महीने यहां व्यतीत करने पर उन्हें अधिक खतरा दिखने लगा

 तो टोडऱ सिंह  तोमर ने पिसावा के जाट राजा  राजा श्यौदान सिंह तोमर की मदत से जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर पिसावा रियासत के तोमर जाट बाहुल्य  शादीपुर  गाव  भेज दिया था। उनके दाड़ी-बाल काटे और नया नाम दिया  मास्टर  बलवंत सिंह गांव से करीब 300 सौ मीटर दूर बंबे के किनारे स्कूल खोल दिया गया। इसमें गांव के नारायण सिंह तोमर  , गांव मढ़ा हबीबपुर के रघुवीर सिंह तोमर , जलालपुर के नत्थन सिंह तोमर  आदि ने पढ़ाई की। यहां शाम को कुश्ती सिखाई जाती थी। छुट्टी के दिन परिचित लोगों के घर जाकर देशभक्ति पर चर्चा करते थे। भगत सिंह यहीं पर रात को साइक्लोस्टाइल मशीन से अखबारनुमा पर्चा बगावत के नाम से छापते थे। करीब 18 महीने वे शादीपुर में रहे। 

इसी दौरान भगत सिंह ने अपने परिवार से मिलने को ठाकुर साहब से इच्छा जताई तो उन्होंने पत्र लिखकर भगत सिंह की मां विद्यावती, चाचा अजरुन सिंह व स्वर्ण सिंह, शादीपुर बुलवाया। देश भगत भगत सिंह का यहां मन नहीं लगा 18 महीने रहने के बाद  वो यह से खुर्जा जंक्शन तक ताँगे से गए फिर कुछ ही दिनों बाद असेंबली में बम फेंका तो उन्हें राजगुरु व सुखदेव के साथ ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया। और 23  मार्च, 1931 को  ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें फांसी लगा दी गई।  तभी से गांव में 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है।



दानशील जाट राजा श्यौदान सिंह तोमर (पिसावा अलीगढ ) 

विनोबा भावे भूदान आंदोलन के माध्यम से गरीबों के कल्याण में लगे हुए थे। वह संपन्न लोगों के पास जाते और उनसे निर्धनों व बेसहारा व्यक्तियों को आर्थिक मदद देने का निवेदन करते। इसी सिलसिले में उनको अलीगढ़ जिले के पिसावा के राजा श्यौदान सिंह तोमर ने पिसावा बुलाया

राजा श्यौदान सिंह ने भव्य जनसभा में विनोबा जी का स्वागत किया। विनोबा जी ने राजा से कहा, 'महाराज, आप मुझे गोद ले लीजिए।' इस पर जनसभा में हंसी की लहर दौड़ गई। लेकिन राजा ने विनोबा की बात को अन्यथा न लेते हुए कहा, 'मुझे स्वीकार है। मैं आपको विधिवत् गोद लेने की घोषणा करता हूं।' यह सुनकर लोग दंग रह गए। इसके बाद विनोबा जी बोले, 'पिताजी, अब आप मुझे अलग कर दीजिए। मैं आपका तीसरा पुत्र हूं। आप मुझे अपना भूमि का केवल छठवां भाग दे दीजिए।' यह प्रस्ताव सुनकर भी सभी चकित रह गए। लेकिन राजा अपने वचन के पक्के थे।

उन्होंने विनोबा जी के कथनानुसार उन्हें तुरंत लगभग दो हजार बीघा भूमि दे दी। वह भूमि लेने के बाद विनोबा जी ने उसके हिस्से कर उसे बेघर, निर्धन और बेसहारा लोगों में बांट दिया। जमीन पाने वाले जब विनोबा जी को दुआएं देने लगे तो विनोबा जी ने कहा, 'यह भूमि आपको मेरे कारण नहीं बल्कि दानशील राजा श्यौदान सिंह के कारण मिली है। उन्हें दुआएं दीजिए।' यह सुनकर अनेक लोगों ने राजा के निवास पर जाकर उन्हें धन्यवाद दिया। जब राजा को यह पता चला कि उनके द्वारा विनोबा जी को दान की गई भूमि बेघर और निर्धनों में बांट दी गई है, तो वह अत्यंत प्रसन्न हुए और जीवन भर लोगों के कल्याण में लगे रहे।



पिसावा  अलीगढ के जाट राजा महेंद्र सिंह तोमर 

राजा महेंद्र सिंह तोमर का विवाह  भरतपुर रियासत के राजा स्व.बिजेन्द्र सिंह की पुत्री  और  महाराज विश्वेन्द्र सिंह जी की बहिन राजकुमारी रेणुका के साथ 

 11  दिसम्बर1969, को हुआ  







तोमर जाटों(मीठे ) कि फफूंद (बिठूर और फफूंद)रियासत


फफूंद में राजा भागमल जिनका कि दूसरा नाम बारामल्ल भी था, 
नवाबी शासन में फफूंद ,बिठूर और रेमल  के मालिक राजा भागमल्ल थे। राजा भागमल सिंह इगलास और मांट क्षेत्र के किसी गाँव के एक मीठे तोमर गोत्र का  जाट था । जिसने अपनी वीरता और रणकौशल के दम पर अवध से फफूँद और बिठूर की रियासत प्राप्त किया था  अल्मासअली खां  जो की जन्म  से हिन्दू था और रिश्ते में भागमल का मामा था  अल्मासअली खां ने भागमल को फफूंद का राजा बनने में सहायता की थी । राजा भागमल के बारे में कहा जाता है एक बार सिंध के युद्ध अभियान से लौटते समय वो पंजाब में रुके और जिज्ञासा वस  कुछ समय के लिए  सिख धर्म अपना लिया 


राजा भागमल्ल तोमर गोत (मीठे ) के जाट थे। फफूंद जिला इटावा (वर्तमान ओरैया) में है। जसवन्त नगर तहसील जिला इटावा में मौजा और सिसहट गॉवो में तोमर गोत के जाट निवास करते हैं।फफूंद में राजा भागमल जिनका कि दूसरा नाम बारामल्ल भी था,
नवाबी शासन में फफूंद के मालिक राजा भागमल्ल थे। सन् 1774 से 1821 ई. तक यह जिला अवध के नवाबों की मातहती में रहा था। महाराजा सूरजमल जी ने एक समय इसे अपने अधिकार में कर लिया था। किन्तु उनके स्वर्गवास के पश्चात् यह अवध के नवाबों के हाथ में चला गया। नवाबों की ओर से इस जिले में तीन आमील थे - इटावा, कुदरकोट और फफूंद।

राजा भागमल्ल सिंह तोमर ने फफूंद में एक किला बनवाया था, जिसके चिन्ह अब तक शेष हैं। राजा भागमल हिन्दू-मुसलमान सभी को प्यार करते थे। उन्होंने वहां के गरीब मुसलमानों के लिए एक मसजिद भी बनवा दी थी। आज तक उस मसजिद पर जाट-नरेश राजा भागमल जी का नाम खुदा हुआ है।

भागमल ने अपने मामा अल्मास अली खान  के निर्देश पर  सूफी संत शाह जाफर बुखारी की दरगाह  का निर्माण 1769 ईस्वी में करवाया था । राजा भागमल का  शिलालेख आज भी दरगाह की इमारत में लिखा है।
संत सहजानन्द और सूफी संत शाह जाफर के सम्मान में  1775 ई. में इन्हीं दोनों सन्तों की स्मृति में वार्षिक मेले का आयोजन किया जो आज तक चल रहा है। 

बाबा सहजानन्द जी  और  सूफी संत शाह जाफर का परिचय 


शाह जाफर 1529 ई़ में बाबर की फौज में शामिल रहे सैयद युसुफ शाह जफर बुखारी और उनके भाई जलाल बुखारी फफूंद आये। उक्ते दोनों भाई बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य युद्ध में बाबर की ओर से 1526 ई. में पानीपत की लड़ाई में लड़े थे। ये दोनों भाई बुखारा उजवेकिस्तान से बाबर के साथ आये थे। इसलिए इनको बुखारी बोला जाता है  दोनों भाई फफूंद में आकर बस गये थे। शाहजाफर यहीं बसे और सूफी वेश में रहकर इबादत की। उनके छोटे भाई जलाल मकनपुर में जाकर बसे। 

जहां पर शाहजाफर इबादत करते थे उन्ही के निकट बाबा सहजानन्द जी भी तपस्या करते थे। दोनों में बड़ी मित्रता थी।1549 ई. में शाह जाफर की मृत्यु फफूंद में हुई। वहीं श्रद्धालुओं द्वारा उनका मजार बना दी  और जब संत सहजानन्द जी दिवंगत हुए तो उनकी समाधि भी लगभग 100 मी. दूर स्थापित कर दी गई और भक्त गणों द्वारा दोनों की एक साथ पूजा-अर्चना होने लगी। जिसकी परंपरा आज तक चल रही है। पूजा की विशेषता यह है कि यदि कोई मुस्लिम श्रद्धालु शाह जाफर की मजार पर चादर चढ़ाने आता है तो पहले संत सहजानन्द जी की समाधि पर प्रसाद, चादर चढ़ा देगा तत्पश्चा़त मजार पर चढ़ायेगा।

भागमल ने  मस्जिद का निर्माण  वहां के गरीब मुसलमानों के लिए 1796 A.D. में किया । आज तक उस मसजिद पर जाट-नरेश राजा भागमल जी का नाम खुदा हुआ है।भागमल्ल की मस्जिद के समीप  ही मस्जिद  निर्माण में काम करने वाले  मिस्त्री के बारे एक लेख में लिखा गया है की "खादिम जब्बा वल्द काशी "  इसका अर्थ है की  काशी नाम के बंजारे का लड़का जब्बा  इस मस्जिद निर्माण का मिस्त्री था


 राजा भागमल के समय में यह श्रेष्ठ व्यापारिक मण्डी थी। पुराने समय के अनेक मकान अब तक अपनी शान बता रहे हैं। सन् 1801 ई. में यह स्थान नवाब सआदतअली ने अंग्रेज सरकार को दे दिया था।


बिठूर


अवध के शासनकाल में बिठूर सूबा इलाहाबाद में एक जिला था  लेकिन आज  बिठूर  कानपुर जिले में कानपूर  से लगभग पचीस किलोमीटर पश्चिमोत्तर में अवस्थित है  और अल्मासअली खां उसका आमिल था. अल्मासअली ने अपनी बहिन  के लड़के भागमल सिंह तोमर को   बिठूर और फफूंद की जागीर दी थी. राजा भागमल  मीठे  तोमर  गोत्र के जाट थे बिठूर के पास एक गांव है 'रमेल' , जिसके विषय में कहा जाता है कि यह 'रणमेल' का बिगड़ा रूप है. इसी स्थान पर लव-कुश और राम की सेना के मध्य युद्ध हुआ था और बाद में पिता-पुत्र में मेल. पहले युद्ध फिर मेल… अतः इस गांव का नाम पड़ा रणमेल. जो अब रमेल के रूप में जाना जाता है.


राजा भागमल ने बिठूर में एक हवेली बनवाई थी और कई बाग लगवाये थे. अतः एक बार पुनः यह प्राचीन तीर्थ-भूमि चहल-पहल का केन्द्र बनने लगी थी
 शाहमदार साहब सूफी फकीर थे इनकी दरगाह मकनपुर में नक्कारखाने की इमारत  का निर्माण भी राजा भागमल ने करवाया था  यह इमारत मस्जिद व रोजे के बीच है। नक्कारखाने में एक बडा भारी नक्कारा तथा कुछ देग रक्खे हुऐ है। उर्स व मेलों के मौको पर नक्कारा बजाया जाता है और देगों में खाना पकाया जाता है। 

 1818 में तृतीय मराठा युद्ध में हार जाने के बाद अंग्रेजों से पेंशन लेकर बाजीराव ने बिठूर में रहने का निर्णय किया था, क्योंकि अंग्रेजों ने उन्हें रहने के लिये केवल उत्तर भारत के किसी स्थान का चुनाव करने की ही अनुमति दी थी. अंग्रेजों ने कानपुर के समीप बिठूर में  भागमल जाट की रियासत रमेल को काटा और उससे १२० गांव निकाल कर पूना से निष्कासित बाजीराव को सौंप दिए तथा उन्हें आठ लाख रुपये सालाना की पेंशन भी मुकर्रर कर दी।
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सहार (औरैया )

राजा भागमल जाट का जब फफूंद ,बिठूर और रमल  पर राज्य था  उनके अधीन काम करने वाले  सदनसिंह   और उनके पुत्र चन्दन सिंह नाम के  सेंगर गोत्री राजपूत  ने  जाट राजा भागमल को को प्रसन्न कर सहार के 160 गाँव राजा से प्राप्त कर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली
 यहां के राजा ने अंग्रेजों के काल में शासकों को प्रसन्न रखा था किन्तु मालगुजारी अदा न कर पाने के कारण कई गांव अंग्रेजों ने नीलाम कर दिये थे। इनके पुत्र चतुरसिंह ने सहार में तथा दूसरे पुत्र महिपाल सिंह ने मलहौसी में अपनी जमींदारी बनाई थी।



जाट जाति सदा वीरो पैदा करती रहीं है । जिन वीरो कि वीरता के कारन आज भारत देश सुरक्षित है जाटों कि वीरता के लिए कहा गया है जाटों से शत्रु का समूल नाश करने के लिए जाने जाते है 
जिनकी भी जहाँ पर भी जाटों से लड़ाई हुई
मिलते है प्रमाण उनकी अंत में सफाई हुई
जाट जाति वीरता के लिए जानी जाती है यह सीने पर गोली खाने वाली है
रन बांकुरे है
सिंह छुपे ना वन में और जाट छुपे ना रण में
आज हम ऐसे दो वीरो बाते कर रहे है ऐसे जाट वीरो से ना फतेह किसी पाई

रामसिंह तोमर - रामसिंह तोमर जाट योद्धा था जो इतिहास में रामचंद्र तोमर के नाम से भी जाना जाता है । रामसिंह कि वीरता से प्रभावित होकर महाराज सूरजमल में अपनी सेना के एक भाग का सेनापति बना दिया । महाराज सूरजमल के साथ बहुत से युद्धो में रामचंद्र ने भाग लिया घासेड़ा का युद्ध(1753 ) उनमे से मुख्य था जिसमे महाराज साहब कि विजय हुई महाराज सूरजमल का दिल्ली अभियान में भी उनके साथ थे सूरजमल कि धोके से मृत्यु हो जाने पर महाराजा जवाहर सिंह कि दिल्ली विजय अभियान में उनके मुख्य सरदारो में से एक थे
पृथ्वीसिंह बेधड़क जी ने लिखा है

लालकिले कि चटनी करने चल दिए वीर जवाहर
हाथी पर सवार होकर सूरजमल के लाल चले
लाडले हथियार बाँध हाथी ऊपर ढाल चले
सेनापति रामसिंह चले दूसरे रिसाल सिंह चले
वीरता दिखाने जाट चले

पुष्करसिंह कुंतल - पुष्कर सिंह वीर को ही पाखरिया वीर बोला जाता है पखरिया मथुरा जिले का तोमरवंशी कुंतल गोत्र का जाट था जवाहर सिंह कि दिल्ली विजय में इनका योगदान अतुल्यनीय है जब जाट सेना दिल्ली पहुँच गयी तब जाटों ने नारा दिया
बढ़ जा बढ़ जा तू जाट
जल्दी लालकिले को तोड़ो
जब लाल किले के फाटक को तोड़ने के लिए केसरिया नाम के हाथी ने 12 टक्कर मारी पर फाटक नहीं टूट पाया हरबार हाथी के सिर पर फाटक पर लगी कीले चुभ जाने से हाथी घायल हो गया
यह देखा महाराज जवाहर सिंह
बोले किला मुश्किल से टूटे गा युद्ध अध् पर में छूटे गा
किले से पीछे हटते मेरे हाथी यह देख फडके मेरी भुजा

जाट सेना में निराशा छा गयी तभी वीरता दिखाने पुष्करसिंह आगे आये पुष्कर सिंह के हुए लाल नैन तुरंत आया खून में ऊबाल
इन कीलो को देख महराजा काये घबराय कीलो कि बात है मामूली ,मै सीना दूँगा अडाये पीछे से हाथी दियो छोड़
पखरिया वीर ने अड़ा दी यो सीना फाटक पै और दिन वो कुर्बानी लोगो वीर थे जाट हिन्दुस्तानी

इस तरह फाटक टूट गया और दिल्ली पर जाटों कि विजय का डंका बज गया

note - लोगो इसे बलराम सिंह मानते है जो जवाहर सिंह का मामा था जबकि भरतपुर इतिहास के अनुसार यह वीर पखरिया ही था


शहीद बाबा शाहमल सिंह तोमर

बिजरौल गांव में 11 फरवरी 1797 को जन्मे बाब शाहमल के पिता चौधरी अमीचंद तोमर किसान थे। उनकी माता हेवा निवासी धनवंति कुशल गृहणी थीं। बाबा शाहमल ने दो शादियां की थी। फिलहाल बिजरौल गांव में उनकी छठी पीढ़ी को थांबा चौधरी यशपाल सिंह, सुखबीर सिंह, मांगेराम, बलजोर, बलवान सिंह, करताराम आगे बढ़ा रहे हैं। आज बाबा शाहमल किताबो पढ़ाया जारहा है मेरठ जिले के समस्त पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भाग में अंग्रेजों के लिए भारी खतरा उत्पन्न करने वाले बाबा शाहमल ऐसे ही क्रांतिदूत थे। गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए इस महान व्यक्ति ने लम्बे अरसे तक अंग्रेजों को चैन से नहीं सोने दिया था।

बाबा शाहमल 18 जुलाई 1857 को बड़का के जंगलों में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे।1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने वाले शहीद बाबा शाहमल इतने बहादुर थे कि उनके शव से भी फिरंगी कांप उठे थे। बाबा को उठाने की हिम्मत न जुटा पाने वाले कई गोरों को उनकी ही सरकार ने मौत के घाट उतार दिया था।

अंग्रेज हकुमत से पहले यहाँ बेगम समरू राज्य करती थी. बेगम के राजस्व मंत्री ने यहाँ के किसानों के साथ बड़ा अन्याय किया. यह क्षेत्र १८३६ में अंग्रेजों के अधीन आ गया. अंग्रेज अदिकारी प्लाउड ने जमीन का बंदोबस्त करते समय किसानों के साथ हुए अत्याचार को कुछ सुधारा परन्तु मालगुजारी देना बढा दिया. पैदावार अच्छी थी. जाट किसान मेहनती थे सो बढ़ी हुई मालगुजारी भी देकर खेती करते रहे. खेती के बंदोबस्त और बढ़ी मालगुजारी से किसानों में भारी असंतोष था जिसने 1857 की क्रांति के समय आग में घी का काम किया.इतिहासविदों के मुताबिक, 10 मई 1857 को प्रथम जंग-ए-आजादी का बिगुल बजने के बाद बाबा शाहमल सिंह मावी ने बड़ौत तहसील पर कब्जा करते हुए उस समय के आजादी के प्रतीक ध्वज को फहराया।

शाहमल का गाँव बिजरौल काफी बड़ा गाँव था . 1857 की क्रान्ति के समय इस गाँव में दो पट्टियाँ थी. उस समय शाहमल एक पट्टी का नेतृत्व करते थे. बिजरौल में उसके भागीदार थे चौधरी शीश राम और अन्य जिन्होंने शाहमल की क्रान्तिकरी कार्रवाइयों का साथ नहीं दिया. दूसरी पट्टी में ४ थोक थी. इन्होने भी साथ नहीं दिया था इसलिए उनकी जमीन जब्त होने से बच गई थी बडौत के लम्बरदार शौन सिंह और बुध सिंह और जौहरी, जफर्वाद और जोट के लम्बरदार बदन और गुलाम भी विद्रोही सेना में अपनी-अपनी जगह पर आ जामे. शाहमल के मुख्य सिपहसलार बगुता और सज्जा थे और जाटों के दो बड़े गाँव बाबली और बडौत अपनी जनसँख्या और रसद की तादाद के सहारे शाहमल के केंद्र बन गए.

१० मई को मेरठ से शुरू विद्रोह की लपटें इलाके में फ़ैल गई. शाहमल ने जहानपुर के गूजरों को साथ लेकर बडौत तहसील पर चढाई करदी. उन्होंने तहसील के खजाने को लूट कर उसकी अमानत को बरबाद कर दिया. बंजारा सौदागरों की लूट से खेती की उपज की कमी को पूरा कर लिया. मई और जून में आस पास के गांवों में उनकी धाक जम गई. फिर मेरठ से छूटे हुये कैदियों ने उनकी की फौज को और बढा दिया. उनके प्रभुत्व और नेतृत्व को देख कर दिल्ली दरबार में उसे सूबेदारी दी.

12 व 13 मई 1857 को बाबा शाहमल ने सर्वप्रथम साथियों समेत बंजारा व्यापारियों पर आक्रमण कर काफी संपत्ति कब्जे में ले ली और बड़ौत तहसील और पुलिस चौकी पर हमला बोल की तोड़फोड़ व लूटपाट की। दिल्ली के क्रांतिकारियों को उन्होंने बड़ी मदद की। क्रांति के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण की भावना ने जल्दी ही उनको क्रांतिवीरों का सूबेदार बना दिया। शाहमल ने न केवल अंग्रेजों के संचार साधनों को ठप किया बल्कि अपने इलाके को दिल्ली के क्रांतिवीरों के लिए आपूर्ति क्षेत्र में बदल दिया।

अपनी बढ़ती फौज की ताकत से उन्होंने बागपत के नजदीक जमुना पर बने पुल को नष्ट कर दिया. उनकी इन सफलताओं से उन्हें तोमर जाटों के 84 गांवों का आधिपत्य मिल गया. उसे आज तक देश खाप की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. वह एक स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार वह जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. कुछ अंग्रेजों जिनमें हैवेट, फारेस्ट ग्राम्हीर, वॉटसन कोर्रेट, गफ और थॉमस प्रमुख थे को यूरोपियन फ्रासू जो बेगम समरू का दरबारी कवि भी था, ने अपने गांव हरचंदपुर में शरण दे दी। इसका पता चलते ही शाहमल ने निरपत सिंह व लाजराम जाट के साथ फ्रासू के हाथ पैर बांधकर काफी पिटाई की और बतौर सजा उसके घर को लूट लिया। बनाली के महाजन ने काफी रुपया देकर उसकी जान बचायी। मेरठ से दिल्ली जाते हुए डनलप, विलियम्स और ट्रम्बल ने भी फ्रासू की रक्षा की। फ्रासू को उसके पड़ौस के गांव सुन्हैड़ा के लोगों ने बताया कि इस्माइल, रामभाई और जासूदी के नेतृत्व में अनेक गांव अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो गए है। शाहमल के प्रयत्‍‌नों से सभी जाट एक साथ मिलकर लड़े और हरचंदपुर, ननवा काजिम, नानूहन, सरखलान, बिजरौल, जौहड़ी, बिजवाड़ा, पूठ, धनौरा, बुढ़ैरा, पोईस, गुराना, नंगला, गुलाब बड़ौली, बलि बनाली (निम्बाली), बागू, सन्तोखपुर, हिलवाड़ी, बड़ौत, औसख, नादिर असलत और असलत खर्मास गांव के लोगों ने उनके नेतृत्व में संगठित होकर क्रांति का बिगुल बजाया।

कुछ बेदखल हुये जाट जमींदारों ने जब शाहमल का साथ छोड़कर अंग्रेज अफसर डनलप की फौज का साथ दिया तो शाहमल ने ३०० सिपाही लेकर बसौड़ गाँव पर कब्जा कर लिया. जब अंग्रेजी फौज ने गाँव का घेरा डाला तो शाहमल उससे पहले गाँव छोड़ चुका था. अंग्रेज फौज ने बचे सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया और ८००० मन गेहूं जब्त कर लिया. इलाके में शाहमल के दबदबे का इस बात से पता लगता है कि अंग्रेजों को इस अनाज को मोल लेने के लिए किसान नहीं मिले और न ही किसी व्यापारी ने बोली बोली. गांव वालों को सेना ने बाहर निकाल दिया शाहमल ने यमुना नहर पर सिंचाई विभाग के बंगले को मुख्यालय बना लिया था और अपनी गुप्तचर सेना कायम कर ली थी। हमले की पूर्व सूचना मिलने पर एक बार उन्होंने 129 अंग्रेजी सैनिकों की हालत खराब कर दी थी।

इलियट ने १८३० में लिखा है कि पगड़ी बांधने की प्रथा व्यक्तिको आदर देने की प्रथा ही नहीं थी, बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा भी थी. शाहमल ने इस प्रथा का पूरा उपयोग किया. शाहमल बसौड़ गाँव से भाग कर निकलने के बाद वह गांवों में गया और करीब ५० गावों की नई फौज बनाकर मैदान में उतर पड़ा.
दिल्ली दरबार और शाहमल की आपस में उल्लेखित संधि थी. अंग्रेजों ने समझ लिया कि दिल्ली की मुग़ल सता को बर्बाद करना है तो शाहमल की शक्ति को दुरुस्त करना आवश्यक है. उन्होंने शाहमल को जिन्दा या मुर्दा उसका सर काटकर लाने वाले के लिए १०००० रुपये इनाम घोषित किया.

डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा. इसने अपनी डायरी में लिखा है -

"चारों तरफ से उभरते हुये जाट नगाड़े बजाते हुये चले जा रहे थे और उस आंधी के सामने अंग्रेजी फौजों का जिसे 'खाकी रिसाला' कहा जाता था, का टिकना नामुमकिन था."

एक सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि

एक जाट (शाहमल) ने जो बड़ौत परगने का गवर्नर हो गया था और जिसने राजा की पदवी धारण कर ली थी, उसने तीन-चार अन्य परगनों पर नियंत्रण कर लिया था। दिल्ली के घेरे के समय जनता और दिल्ली इसी व्यक्ति के कारण जीवित रह सकी।

जुलाई 1857 में क्रांतिकारी नेता शाहमल को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना संकल्पबद्ध हुई पर लगभग 7 हजार सैनिकों सशस्त्र किसानों व जमींदारों ने डटकर मुकाबला किया। शाहमल के भतीजे भगत के हमले से बाल-बाल बचकर सेना का नेतृत्व कर रहा डनलप भाग खड़ा हुआ और भगत ने उसे बड़ौत तक खदेड़ा। इस समय शाहमल के साथ 2000 शक्तिशाली किसान मौजूद थे। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में विशेष महारत हासिल करने वाले शाहमल और उनके अनुयायियों का बड़ौत के दक्षिण के एक बाग में खाकी रिसाला से आमने सामने घमासान युद्ध हुआ.

डनलप शाहमल के भतीजे भगता के हाथों से बाल-बाल बचकर भागा. परन्तु शाहमल जो अपने घोडे पर एक अंग रक्षक के साथ लड़ रहा था, फिरंगियों के बीच घिर गया. उसने अपनी तलवार के वो करतब दिखाए कि फिरंगी दंग रह गए. तलवार के गिर जाने पर शाहमल अपने भाले से दुश्मनों पर वार करता रहा. इस दौर में उसकी पगड़ी खुल गई और घोडे के पैरों में फंस गई. जिसका फायदा उठाकर एक धोखेबाज़ मुस्लिम सवार ने उसे घोड़े से गिरा दिया. अंग्रेज अफसर पारकर, जो शाहमल को पहचानता था, ने शाहमल के शरीर के टुकडे-टुकडे करवा दिए और उसका सर काट कर एक भाले के ऊपर टंगवा दिया.बाबा कि जासूसी करने वाला दलाल बाद बाघपत नवाब बनाया और बाबा के पोते उस धोखेबाज को नरक का रास्ता दिखा दिया।
डनलप ने अपने कागजात पर लिखा है कि अंग्रेजों के खाखी रिशाले के एक भाले पर अंग्रेजी झंडा था और दूसरे भाले पर शाहमल का सर टांगकर पूरे इलाके में परेड करवाई गई. तोमर जाटों के चौरासी गांवों के 'देश' की किसान सेना ने फिर भी हार नहीं मानी. और शाहमल के सर को वापिस लेने के लिए सूरज मल और भगता स्थान-स्थान पर फिरंगियों पर हमला करते रहे.शाहमल के गाँव सालों तक युद्ध चलाते रहे.

21 जुलाई 1857 को तार द्वारा अंग्रेज उच्चाधिकारियों को सूचना दी गई कि मेरठ से आयी फौजों के विरुद्ध लड़ते हुए शाहमल अपने 6000 साथियों सहित मारा गया। शाहमल का सिर काट लिया गया और सार्वजनिक रूप से इसकी प्रदर्शनी लगाई गई। पर इस शहादत ने क्रांति को और मजबूत किया तथा 23 अगस्त 1857 को शाहमल के पौत्र लिज्जामल जाट ने बड़ौत क्षेत्र में पुन: जंग की शुरुआत कर दी। अंग्रेजों ने इसे कुचलने के लिए खाकी रिसाला भेजा जिसने पांचली बुजुर्ग, नंगला और फुपरा में कार्रवाई कर क्रांतिकारियों का दमन कर दिया। लिज्जामल को बंदी बना कर साथियों जिनकी संख्या 32 बताई जाती है, को फांसी दे दी गई।

शाहमल मैदान में काम आया, परन्तु उसकी जगाई क्रांति के बीज बडौत के आस पास प्रस्फुटित होते रहे. बिजरौल गाँव में शाहमल का एक छोटा सा स्मारक बना है जो गाँव को उसकी याद दिलाता रहता है.
शाहमल पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म

महाराजा सूरजमल स्मारक शिक्षा संस्थान दिल्ली क्रांतिकारी बाबा शाहमल पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म तैयार करा रहा है। फिल्म निर्माता डॉ. केसी यादव एवं गुलबहार सिंह के निर्देशन में फिल्म तैयार की जा रही है। फिल्म क्रांतिकारी बाबा शाहमल के जीवन पर आधारित है। बाबा शाहमल ने अंग्रेजों के खिलाफ लम्बी जंग लड़ी थी।




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तोमर तंवर एक ही गोत्र पाण्डुवंशी अर्जुन के वंशज है इस गोत्र को कुंती पुत्रा अर्जुन के नाम पर ही कुंतल जाता है तोमर चंद्रवंशी गोत्र है 

तोमर शब्द का मतलब अस्त्र हथियार से है जिसका उपयोग अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में किया था यह दिव्य हथियार उसे माँ दुर्गा से प्राप्त हुआ था इस हथियार को चलने के कारण ही अर्जुन के वंशज तोमर कहलाये अस्त्र उस हथियार को कहते हैं, जिसे मन्त्रों के द्वारा दूरी से फेंकते हैं। वे अग्नि, गैस और विद्युत तथा यान्त्रिक उपायों से चलते हैं।कर्नल टॉड ने तो पूरी जाट जाति को इन 36 राजवंशों में से एक राजवंश माना है|। कर्नल टाड ने इसी बात को इस भांति लिखा है- “जिन जाट वीरों के प्रचण्ड पराक्रम से एक समय सारा संसार कांप गया था, आज उनके वंशधर खेती करके अपना जीवन-निर्वाह करते हैं।“पांडवो का लाक्षागृह ( महाभारत काल का ) आज भी बरनावा गाँव है जो तोमर जाटो का गाँव है दिल्ली के चारो तरफ तोमर जाटो की एक बड़ी आबादी आज भी निवास करती है



तोमरो का नाम का जिक्र वायु पुराण ,और विष्णु पुराण में भी हैवायु पुराण के अनुसार नलिनी नदी मध्य एशिया के बिन्दसरा से निकल कर तोमर और हंस लोगो की भूमि से प्रवाहित होती है

पाण्डुवंशीयो कि गौरव गाथा महाभारत के विभिन्न विभिन्न श्लोकों में तोमर जाट कुल का उल्लेख किया

.शल्यपर्व तोमर (IX.44.105) महाभारत में भीष्म पर्व, महाभारत / बुक छठी 68 श्लोक में उल्लेख तोमर (VI.68.17) अध्याय के रूप में उल्लेख है.

''शक्तीनां विमलाग्राणां तॊमराणां तदायताम । निस्त्रिंशानां च पीतानां नीलॊत्पलनिभाः परभाः" ।। (VI.68.17)

महाभारत के भीष्म पर्व (10.68 VI.) में तोमर पाण्डुवंशी जाटों का नाम हैमहाभारत जनजाति (तामर) Tamara 'भूगोल' महाभारत (10.68 VI.) में उल्लेख किया है,

" तामरा हंसमार्गाश च तदैव करभञ्जकाः । उथ्थेश मात्रेण मया देशाः संकीर्तिताः परभॊ "।। (VI. 10.68)

कर्ण पर्व महाभारत बुक आठवीं के 17 अध्याय विभिन्न श्लोकों VIII.17.3, VIII.17.4, VIII.17.16, VIII.17.20, VIII.17.22, VIII.17.104 आदि में तोमर का उल्लेख पांडु के वंशज रूप में उल्लेख किया हैं.
"मेकलाः कॊशला मथ्रा थशार्णा निषधास तदा । गजयुथ्धेषु कुशलाः कलिङ्गैः सह भारत "।। (VIII.17.3)

"शरतॊमर नाराचैर वृष्टिमन्त इवाम्बुथाः । सिषिचुस ते ततः सर्वे पाञ्चालाचलम आहवे" ।। (VIII.17.4)

"थिवाकरकरप्रख्यान अङ्गश चिक्षेप तॊमरान ।नकुलाय शतान्य अष्टौ तरिधैकैकं तु सॊऽचछिनत "।। (VIII.17.16)

" मेकलॊत्कल कालिङ्गा निषाथास ताम्रलिप्तकाः । शरतॊमर वर्षाणि विमुञ्चन्तॊ जिघांसवः" ।। (VIII.17.20)

"ततस तथ अभवथ युथ्धं रदिनां हस्तिभिः सह । सृजतां शरवर्षाणि तॊमरांश च सहस्रशः "।। (VIII.17.22)

"अपरे तरासिता नागा नाराचशततॊमरैः । तम एवाभिमुखा यान्ति शलभा इव पावकम "।। (VIII.17.104)

तोमर (तंवर ) वंश की उपत्ति के लिए एक दोहा है जो यह है

अर्जुन के सूत सो भये अभिमन्यु नाम उदार !
तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार !





तोमर तंवरों कि दिल्ली पर राज्य कि शान में कहा जाता था
जद कद दिल्ली तंवरा तोमरा
दिल्ली तो तोमरो कि और तोमरो से गयी तो तुर्को कि

नीचे दुर्गा कवच पाठ का श्लोक निचे दिया है जिस में तोमर हथियार का वर्णन है यह सभी दुर्गा के हथियार है
एक शंखं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं व शार्गंमायुधमुत्तमम्।।



तंवर उपाधि तोमर जाटों को मिली थी तंवर का मतलब सर्व श्रेष्ठतम योद्धा सेहै उस समय महाराज अनंगपाल(विल्हण देव तोमर ) दिल्ली के राजा थे तब से तंवर उपाधि कुछ तोमर जाटों के दुआरा काम में ली जा रही है तोमर गोत्र का ही अपभ्रश तंवर है इतिहासकारों ने दिल्ली के तोमर राजाओ के लिए कही पर तोमर तो कही पर तंवर शब्द का उपयोग किया है तोमरो का दिल्ली पर शासन था उनकी शान में यह कहावत प्रचलित थी की
'' जद कद दिल्ली तंवरा तोमरा ''

तोमर (तंवर ) 10 उपगोत्र है जिनमे विवाह सम्बन्ध नहीं होते है -
शिरा तंवर -शिरा तंवर अनंग पाल तोमर के वन्सज है जिनके आज 12 से ज्यादा गाँव गुहला और पेहोवा के पास है कुछ गाँव पंजाब में है ।

सलकलान शाखा- सलअक्शपाल सलकपाल तोमर के नाम पर ही बाघपत के तोमर सलकलान नाम से प्रसिद्ध है यह दिल्ली के राजा और अनगपालसिंह तोमर के दादा थे सलअक्शपाल तोमर ने 84 गांवों के 84 तोमर देश खाप की स्थापना की , राजा सलअक्शपाल तोमर की समाधि स्थल बदोत नई ब्लॉक कृषि प्रसार विभाग से सटे दिल्ली सहारनपुर रोड पर है.

सुलख-सुलख तोमरो को रोहतक , भिवानी जिले में कहते है इनको वह पर सुलखलान भी कहते है

तुर - पंजाबी भाषा में तोमर को तूर बोला जाता है

चाबुक-तोमर जाटो ने चाबुक से ब्राह्मण को पीटा था इसलिए अलीगढ में इन लोग को चाबुक के रूप में जाने जाते है.अलीगढ कि पिसावा रियासत तोमर जाटों कि थी

पार्थ- अर्जुन का ही दूसरा नाम है भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को पार्थ ही सम्बोदन दिया था । महाभारत के युद्ध में श्री भगवत गीता का ज्ञान देते समय, इसलिए कुछ तोमर पार्थ को उपनाम के रूप में काम लेते है क्योकि तोमर जाट पाण्डुवंशी अर्जुन के ही वंशज है । शूरसेन कुंती के वास्तविक पिता थे कुंती के बचपन का नाम पृथा था| इसलिए अर्जुन को पार्थ ( पृथा पुत्र ) भी कहा जाता है । पृथा को बचपन में राजा कुन्तीभोज ने गोद ले लिया था । इसलिए पृथा का नाम कुन्ती रख दिया गया था। कुंती के नाम पर पांडवो को कोंतेय भी कहा जाता है| तोमर जाटो को कोंतेय से ही कुंतल कहा जाने लगा.

भिण्ड तोमर (भिण्डा )- तोमर जाट जो भिण्ड से आये थे भिण्ड मध्य परदेश में एक जिला हैउन्हें भिण्ड तोमर बुलाया जाता है जयपुर जिले में शाहपुरा तहसील में भिंडा बोलते है बिजनौर जिले में यह अब सिर्फ तोमर ही लिखते है हाजीपुर इन्ही भिंडा तोमर जाटों का गॉव है

पांडू- तोमर जाट पांडू पुत्र अर्जुन के वंशज होने के कारन पांडू या पांडव भी कहते है तोमर जाटो के पांडु वंशी होने के कारनपांडव जाट टाइटल कुछ तोमर आगरा और जयपुर में पांडू और पांडव उपनाम के रूप में काम लेते है

कुंतल - महावीर धनुर्धर अर्जुन कुंती पुत्र होने के कारण ही अर्जुन को कोन्तेय कहते है । इसलिए ही तोमर जाट को मथुरा कोन्तेय कहा जाता था । कोन्तेय शब्द बाद में कुंतल बन गया । तोमर जाट का दिल्ली में राज्य था तो वो लोग मथुरा क्षेत्र में बस गये थे । मथुरा कुंती के वास्तविक पिता शुरसेन थे । कुन्ति-भोज तो वे लोग थे जिनके कुन्ति गोद थी । इसलिए वो पृथा से कुंती कहलाने लगी थी । तोमर जाटो ने अपनी कुल देवी योगमाया (कृष्ण की बहिन) का मंदिर गोपालपुर जाजम पट्टी में बनवाया था । जो मनोकामना पूर्ण करने के कारण ही मनसा देवी कहलाती है । जो आज भी तोमरवंशी कुंतल जाटो की कुल देवी है । यह मंदिर दिल्ली महाराजा गोपाल देव तोमर के समय में बनाया गया था, इसलिए इस जगह का नाम गोपालपुर है । सलकपाल तोमर दिल्ली महाराजा गोपाल देव के पुत्र थे जो 976 ई में दिल्ली के राजा बने ।

इसलिए तोमर और तंवर एक ही गोत्र है कुछ तोमर वंशज कि शाखाएँ आज जो अलग गोत्र बन गयी है जैसे मोटे ,जावला, तुशिर,अंतल ,सहराव ,जंघाला दुआरा कभी कभी अपना मुल वंश तंवर काम में लिया जाता है जिस से यह भ्रम पैदा होता है
जांटी गाँव सोनीपत से कुछ तुसार गोत्र के जाट सुनहेडा गाँव जिले बागपत में बस गये थे अब वो खुद को तावर (तंवर) कहते है वो मूल रूप से तुषार गोत्र के जाट है आज यह शाखाएँ अलग गोत्र है और तोमर गोत्र में विवाह करते है
लेकिन तंवर और तोमर एक ही गोत्र के दो नाम है

चन्द्रवंश
मनु से लेकर विक्रमादित्य तक कि तोमर जाटों कि वंशावली

मनु | इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप |

भरत- हस्ती- शान्तनु -विचित्रवीर्य - पांडु- पांडवों (युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन, सहदेव, नकुल)- युधिष्ठिर- अभिमन्यु -परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित था)-जनमेजय- धर्मदत्त - मनजीत (निशस्त्चक )- चित्ररथ- दीपपाल -उग्रसेन - सुसेन- भुवनपतिदेव -रणजीतदेव -रक्षकदेव -भीमसैन -नरहरिदेव -सुचिरथ -सुरसेन -पर्वतराज -मधुकदेव -सोनचीर देव -भीष्मदेव -नरहरिदेव द्वतीय -पुरनसाल -सारंगदेव -उदयपाल - अभिमन्यु 2 -धनपाल --भीमपाल -लक्ष्मीदेव -भानक राज -मुरसैन -आंनगशायी -हरजीतदेव -सुलोचनदेव -इंद्रपाल -पृथ्वीमल-अमिपाल -दशरथ -वीरसाल -अजीतसिंह -सर्वदत्त -शेरपाल -वीरसेन -महिपाल - शत्रुपाल -सैंधराज -तेजपाल -मानिकपाल -कामसेन -शत्रुमर्दन -जीवन जाट -वीरभुजंग या हरिराम- वीरसेन (द्वितीय) -उदयभट या आदित्यकेतु- थिमोधर -मह्रिषी पाल -समरिच्चपाल -जीवनराज -रुद्रसेन -अरिलक -राजपाल

इंद्रप्रस्थ राजा राजपाल राजा कि हत्या कुमायु नरेश सुखवंत ने कर दी तब उनके भाई उज्जैनी नरेश वीर विक्रमादित्य तोमर (जिनके नाम पर विक्रम संवंत है पहले तंवर संवंत बोला जाता था ) ने सुखवंत को मारकर सत्ता का केंद्र उज्जैनी को बनाया विक्रमादित्य राजपाल के लड़को को अपने साथ लेगया इनके वंशज जीतपाल का आईने अकबरी में उल्लेख है जिसका शासनकाल 593 ई में है जिसके वंश में कुवरपाल जाट पैदा हुए जीके विल्हनदेव (अनगपाल) पैदा हुए

अनंगपाल (विल्हण देव ) ने 736में दिल्ली को दुबारा बसाया
इसके बारे में कथा प्रचलित है तोमर जाट युद्ध के पंजाब थे वहाँ से लोटे समय जाट नरेश विल्हण देव (अनगपाल सिंह तोमर ) कि शिकार करने कि इच्छा हुई और शिकार से लोटे समय रास्ता भटक गये और रात में खण्डर में रुके जाट नरेश विल्हण देव (अनगपाल सिंह तोमर ) के सपने में कुंती आयी और उनके जगह इंद्रप्रस्थ है तुमारे पूर्वजो का दुबारा बसाओ राजा ने यह सपना अपने पुरोहितो को बताया इस तरह तोमर नरेश ने सत्ता का केंद्र दिल्ली को बनाया दिलेराम जाट के नाम पर यह जगह दिल्ली नाम से प्रसिद्ध हुई विल्हण देव ) ने 736में दिल्ली को दुबारा बसाया यह क्षेत्र उस समय किसी राज के राज्य का अंग नहीं था इसलिए इस को अनग बोला जाता था इसके राजा पालनहार होने के कारन विल्हनदेव को अनंगपाल बोला गया इस उपाधि को बाड़े के बहुत से राजाओ ने काम में लिया जैसे अर्कपाल को अनंगपाल तित्रिय बोला जाता है

विल्हण देव से तेजपाल 2 तक कि वंशावली

विल्हण देव (अनगपाल सिंह तोमर )-वासूदेव -गंगदेव (गांगेय)-पृथ्वीपाल (प्रथम देव ) -जयदेव (सहदेव )-नरपाल- उदयराजदेव -आपृच्छ देव -पीपलराजदेव (वछराज )-रघुपाल (रावलु )-तिल्हणपाल देव -गोपाल देव -सलअक्शपाल, (सकपाल,सलक्षणदेव )-जयपाल (सलकपाल का भाई )
-कवरपाल -अनंगपाल द्वितीय-तेजपाल प्रथम -विजयपाल -मदनपाल -पृथ्वीराज पाल -चाड पाल -तेजपाल -2

जन्‍मेजय द्वारा विश्‍व विख्‍यात सर्प यज्ञ कर सर्प प्रजाति को ही वंश नाश कर समाप्‍त करने हेतु आयोजित यज्ञ और उसमें भगवान श्री हरि विष्‍णु द्वारा स्‍वयं आकर सर्प जाति की रक्षा तथा तोमर वंश के लोगों को सर्प द्वारा न डसने तथा डसने पर असर न होने के वरदान की त्रिवाचा की कथा जगत प्रसिद्ध है ।


इसी राजवंश के आगे बढ़ते इन्‍द्रप्रस्‍थ दिल्‍ली के राजसिंहासन पर महाराजा अनंग पाल सिंह तोमर सिंहासनारूढ़ हुये (736 AD), आगे महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर III ने दिल्‍ली से आकर चम्‍बल नदी के किनारे ऐसाह नामक स्‍थान (वर्तमान में मुरैना जिला ) पर अपनी नई राजधानी बनाई(1190 A.D.)
सिवाना
डॉ दशरथ शर्मा री ख्यात, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर, संवत 2005, पेज 7Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209 नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203के अनुसार

राजस्थान के सिवानी बाड़मेर के तोमर (तंवर) सरदार नरसिंह जाट थे । उस समय पूला सारण जाट भाड़ंग का शासक था नरसिंह तंवर का ससुराल सिद्धमुख के पास ढाका गाँव में ढाका जाटों में था विक्रम संवत 1545 में धाणसिया से गणगौर के मगरिया में से मलकी जाटनी (पूला सहारण कि पत्नी ) को गोदारा पट्टी के मुखिया पाण्डुजी गोदारा जाट के पुत्र नकोदर द्वारा ले जाने से इन जाट जनपदों में छह जनपदों का गोदारा जनपद के साथ भेंटवाले धोरे (सोन पालसर से उत्तर-पश्चिम और राजासर पंवारान से पश्चिम में 10 कि.मी.) पर संघर्ष हुआ व लादडिया को जलाए जाने से पाण्डुजी गोदारा ने जांगलू इलाके में पहले से रह रहे राव बीका की सहायता ली।
इधर छह पट्टी के जाटों ने सिवानी के नरसिंह जाट (तंवर) से सहायता ली इस युद्ध को मलकी और लाघड़िया युद्ध बोलते है 1487 में लड़ा गया युद्ध था तंवर नरसिंह जाट बड़ा वीर था. वह अपनी सेना सहित आया और उसने पांडू के ठिकाने लाघड़िया पर आक्रमण किया. उसके साथ सारण, पूनिया, बेनीवाल, कसवां, सोहुआ और सिहाग सरदार थे. उन्होंने लाघड़िया को जलाकर नष्ट कर दिया. लाघड़िया राजधानी जलने के बाद गोदारों ने अपनी नई राजधानी लूणकरणसर के गाँव शेखसर में बना ली. युद्ध में अनेक गोदारा चौधरी व सैनिक मारे गए, परन्तु पांडू तथा उसका पुत्र नकोदर किसी प्रकार बच निकले. नरसिंह जाट विजय प्राप्त कर वापिस रवाना हो गया.
ढाका का युद्ध (1488)
नरसिंह तंवर का ससुराल सिद्धमुख के पास ढाका गाँव में ढाका जाटों में था, इसलिए रात्रि में वह अपने सेनापति किशोर के साथ ढाका के तालाब मैदान में शिविर लगाये हुए रात्रि विश्राम कर रहा था।रास्ते में कुछ जाट जो पूला सारण से असंतुष्ट थे, ने कान्धल व बीका से कहा की पूला को हटाकर हमारी इच्छानुसार दूसरा मुखिया बना दे तो हम नरसिंह जाट का स्थान बता देंगे. राव बीका द्वारा उनकी शर्त स्वीकार करने पर उक्त जाट उन्हें सिधमुख से ६ मील दूरी पर उस तालाब के पास ले गए, जहाँ नरसिंह जाट अपने सैनिकों सहित सोया हुआ था तो बीका, कान्धल और नकोदर ने मध्य रात्रि को नरसिंह पर हमला बोल दिया ढाका का युद्ध (1488) के बाद रात में धोखे से हुए हमले में नरसिंघ जाट मारा गया और नरसिह जाट के सहायक किशोर जाट भी इस हमले में मार गया . इस तरह अपने सरदारों के मारे जाने से नरसिह जाट के साथी अन्य जाट सरदार और साथी तोमर जाट पंजाब चले गये


तोमरवंशी कुंतल जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे। पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है।

तोमरवंशी जाटों के किले
अडींग (मथुरा )- के किले पर महाराज सूरजमल से कुछ ही पहले फौंदासिंह नाम का कुन्तल सरदार राज करता था
पेंठा (मथुरा ) नामक स्थान में जो कि गोवर्धन के पास है, सीताराम (कुन्तल) ने गढ़ निर्माण कराया था।
सोनोट - कुन्तलों का एक किला सोनोट में भी था।
सोंख -, सौख क्षेत्र की कुंतल पट्टी में महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई जो आज भी देखी जा सकती है ।
पिसावा - यह रियासत अलीगढ जिले में है यहाँ तोमरो को चाबुक भी कहा जाता है जो मूल रूप से पृथला गाँव के निवासी थे
नौगाजा (जालंदर) - भिंड तोमर (तोमरो की एक शाखा ) की रियासत थी
देशवाले तोमर -पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत क्षेत्रमें तोमर गोत्र के 84 से अधिक गांवों में हैं. इस क्षेत्र में तोमर खाप को देश खाप के रूप में जाना जाता है| बडौत देश खाप की राजधानी है|देशखाप कोतोमर की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. शाहमल ने देश क्षेत्र को स्वतंत्र रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार शाहमल जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े के क्षेत्र अधिपति (राजा )बन गए. तोमर लोग एक समयदेश क्षेत्र के मालिक (राजा) थे इस कारण तोमर जाटो को देशवाले के रूप में जाना जाता है


तोमर गोत्र का इतिहास बहुत बड़ा है सम्पूर्ण इतिहास पोस्ट का रूप नहि दिया जा सकता है

हर जाट जाटवंश ऋणी है क्यों कि जन्म और परवरिश जाट परिवार में हुआ है


अंत में सभी जाट वंश कि वीरता के लिए

दूजा काई लिखेला इतिहास बठे , कण कण में गूंजे जाटा रो बलिदान जठे !



जीवन जाट के वंशजों का वर्णन
दिल्ली पर जीवन जाट के वंशजों का राज 445 वर्ष रहा है जीवन और उसके वंशज तोमर जाट ही थे तोमर जाट पांडु के ही वंशज हैं । स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थप्रकाश में जीवन के 16 वंशजों (पीढ़ी) का राज 445 वर्ष 4 महीने 3 दिन लिखा है। (पुस्तक - रावतों का इतिहास, सर्वखाप का राष्ट्रीय पराक्रम आदि-आदि)। ईसा से 481 वर्ष पूर्व महाराज जीवनसिंह देहली के राज सिंहासन पर बैठे थे। उन्होंने 26 वर्ष तक राज्य किया था। उनके राज्य-काल का सन् रिसाल 2619 से तूफानी सत् तक दिया हुआ है।

मनु से लेकर विक्रमादित्य तक कि तोमर जाटों कि वंशावली राजा विरमहा से पहेल कि वंशावली

मनु | इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप |

भरत- हस्ती- शान्तनु -विचित्रवीर्य - पांडु- पांडवों (युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन, सहदेव, नकुल)- युधिष्ठिर- अभिमन्यु -परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित था)-जनमेजय- धर्मदत्त - मनजीत (निशस्त्चक )- चित्ररथ- दीपपाल -उग्रसेन - सुसेन- भुवनपतिदेव -रणजीतदेव -रक्षकदेव -भीमसैन -नरहरिदेव -सुचिरथ -सुरसेन -पर्वतराज -मधुकदेव -सोनचीर देव -भीष्मदेव -नरहरिदेव द्वतीय -पुरनसाल -सारंगदेव -उदयपाल - अभिमन्यु 2 -धनपाल --भीमपाल -लक्ष्मीदेव -भानक राज -मुरसैन -आंनगशायी -हरजीतदेव -सुलोचनदेव -इंद्रपाल -पृथ्वीमल-अमिपाल -दशरथ -वीरसाल -अजीतसिंह -सर्वदत्त -

शेरपाल (वीरमहा) -वीरसेन -महिपाल - शत्रुपाल -सैंधराज -तेजपाल -मानिकपाल -कामसेन -शत्रुमर्दन -जीवन जाट -वीरभुजंग या हरिराम- वीरसेन (द्वितीय) -उदयभट या आदित्यकेतु- थिमोधर -मह्रिषी पाल -समरिच्चपाल -जीवनराज -रुद्रसेन -अरिलक -राजपाल -राजपाल कि हत्या के बाद तोमर वंश उज्जैन चला गया उसके बाद दिल्ली का राजवंश पुनः विल्हण देव से शुरू हुआ (अनगपाल सिंह तोमर )-वासूदेव -गंगदेव (गांगेय)-पृथ्वीपाल (प्रथम देव ) -जयदेव (सहदेव )-नरपाल- उदयराजदेव -आपृच्छ देव -पीपलराजदेव (वछराज )-रघुपाल (रावलु )-तिल्हणपाल देव -गोपाल देव -सलअक्शपाल, (सकपाल,सलक्षणदेव )-जयपाल (सलकपाल का भाई )
-कवरपाल -अनंगपाल द्वितीय-तेजपाल प्रथम -विजयपाल -मदनपाल -पृथ्वीराज पाल -चाड पाल -तेजपाल -2


सत्यार्थ प्रकाश और रिसाला में जिन तोमर जाट नरेशो का वर्णन है उनकी वंशावली जो उसमे दी गयी वो निम्न है
उनका राजवंश इस प्रकार है-

राजा वीरमहा

महाबल अथवा स्वरूपबल

वीरसेन

सिंहदमन या महीपाल

कांलिक या सिंहराज

जीतमल या तेजपाल

कालदहन या कामसेन

शत्रुमर्दन

जीवन

वीरभुजंग या हरिराम

वीरसेन (द्वितीय)

उदयभट या आदित्यकेतु


राजा वीरसलसेन को राजा विरमाहा ने युद्ध में मार दिया । विरमाहा की16 पीढ़ी ने दिल्ली पर 445 साल 5 महीने और 3 दिनों तक राज्य किया था रिसाल के अनुसार महाबल 800 ईसा पूर्व में दिल्ली का राजा था उस ही समय भुद्धा उज्जैन का और बह्मंशाह पर्शिया का राजा था .महाबला के सर्वदत्त (स्वरुप दत्त ) 744 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बना महाराजा वीरसेन 708 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बना जब दारा शाह ईरान का राजा था .महाराजा महिपाल 668 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बने वो इतने बहादुर थे की उनको सिंहदमन (शेरो का दमन करने वाला ) कहा जाने लगा । इस समय में कस्तप ईरान का राजा था सिंह दमन के बाद संघराज राजा बने राजा जीतमल 595 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बने इस के बाद कल्दाहन(कामसेन )राजा बने उन्होंने अपने राज्य को ब्रह्मपुर तक बढाया। इस के बाद कई राजा और हुए । जिन होने कई सालो तक दिल्ली पर राज्य किया