तोमर कुंतल उपशाखा


कुंतल ,तोमर (तंवर, तुर) उप शाखाए

तोमर/तंवर/कुंतल/अर्जुनायन  जाटों की 16 उपगौत्र शाखाएं है जिनमे आपस में विवाह नहीं होता है| आज तक यह अपने सामजिक नियमो का पालन कर रहे है| कुछ कौन्तेय तोमरवंशी ने अपने सामाजिक नियमो को तोडा उनको गोत्र से बहिष्कृत कर दिया गया वो आज अलग गोत्र बन चुके है| उनके तोमर/कुन्तलो में रिश्ते होते है ऐसे गोत्र की संख्या 25 से ज्यादा है |
किसी महान व्यक्ति जैसे अर्जुन (कौन्तेय) के नाम पर कुंतल पांडव बोला जाता है| अनंगपाल तोमर के दादा राजा सलकपाल (सुलक्षणपाल) तोमर के नाम पर सलकलान बोला जाता है| बिजनौर (बखैना) के राजा सुखपाल तोमर के पिता कल्याणसिंह के नाम पर क़पड़े तोमर बोला जाता है| बाकी यह खुद को सिर्फ कौन्तेय तोमर ही कहना और लिखना पसंद करते है|
कुछ तोमर (तँवर) जाटों को उनके गाँव के नाम से सम्बोधन दिया जाता है| जैसे -दिल्ली के पास जाखोद गाँव से आकर बसे तोमर /तंवर जाट को जाखौदिया बोला जाता है| दीघोट गाव के तोमरो को दीघोटिया भी बोला जाता है। घटायन ग्राम की रोजी पट्टी के तोमरो को बिजनोर जिले में रोजी तोमर बोलते है |  यह सिर्फ उनके गाँव के नाम का प्रतीकात्मक रूप है उनका गोत्र तो कुंतल/तोमर (तंवर) ही है । दिल्ली के तोमरो ने मुस्लिमो की आंते युद्ध में निकाल ली तो वो आन्तल कहलाते है जबकि उनका गोत्र तोमर (तन्वर,कौन्तय) ही है इन मे आपस मे विवाह सम्बन्ध नही होते है।

कुन्तल
मथुरा जिले मे पाण्डुवंशी तोमर/तँवर जाट को अर्जुन के नाम पर कौन्तेय/कुन्तल (कुंती पुत्र) भी बोला जाता है। आज भी यहाँ  के जाट अपने प्राचीन नाम पांडव को जीवित किए हुए है|
जगा की पोथी के अनुसार दिल्ली के जाट सम्राट अनंगपाल दवितीय थे| जिन्होंने दिल्ली पर 1051 ईस्वी से लेकर 1081 ईस्वी तक कुल 29 साल 6 मास 18 दिन तक शासन किया था| इनका वास्तविक नाम अनेकपाल था| गजनवी के पोत्र के समकालीन दरबारी इतिहासकार (उत्बी) के अनुसार जब कुमारपाल दिल्ली के राजा थे| तब राजकुमार अनंगपाल (अनेकपाल) मथुरा के प्रशासक नियुक्त थे| महाराजा अनंगपाल कृष्ण के परम भक्त थे| इनके सिक्को पर श्री माधव देव अंकित है| राजा अनंगपाल का विस्तार से वर्णन आगे के अध्याय में किया गया है |
अनंगपाल तोमर/तँवर ने गोपालपुर के पास 1074 ईस्वी में सोनोठ में सोनोठगढ़ का निर्माण करवाया[1] इस गढ़ के अवशेष आज भी देख जा सकते है जो पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है |
इन्होंने सोनोठ में एक खूँटा गाड़ा और पूरे भारतवर्ष के राजाओ को चुनोती दी की कोई भी राजा उनके गाड़े गए इस स्तम्भ (खुटे) को हिला दे या दिल्ली राज्य में प्रवेश कर के दिखा दे इस चुनौती को स्वीकार करने की किसी भी राजा की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए इनके वंशज के वंशज खुटेला कहलाते है।
सम्राट अनंगपाल ने 29 मंदिरो का निर्माण करवाया था| दिल्ली के राजा अनंगपाल ने मथुरा के गोपालपुर गाँव में 1074 ईस्वी में मन्सा देवी के मंदिर की स्थापना की थी| मंशा देवी के मंदिर पर प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रियोदशी से चैत्र शुक्ल पूर्णमासी तक  एक विशाल मेला लगता है| मुख्य मेला चैत्र शुक्ल पूर्णिमा(पूर्णमासी) का होता है | महाराजा अनंगपाल की मृत्यु चैत्र पूर्णिमा के दिन 1081 ईस्वी में हुई थी उनकी समाधी मंदिर के निकट ही स्थापित थी तब से निरंतर इस दिन मेले का आयोजन होता आ रहा है|महाराजा अनंगपाल के कुल गुरु चतुर्वेदी ब्राह्मण जे वंशज आजतक मंदिर के मुख्य पुजारी है| इस मेले में सिर्फ तोमर वंशी कुन्तल जाट ही जाते है| इस मेले के दौरान छोटे बच्चो का जडुला संस्कार संपन्न किया जाता है|
महाराजा अनंगपाल तोमर की रानी हरको देवी के दो पुत्र हुए बड़े सोहनपाल देव हुए छोटे जुरारदेव हुए
बड़े पुत्र सोहनपाल देव आजीवन ब्रह्मचारी रहे इन को भीष्म भी कहा जाता है| सोहनपाल देव दिल्ली की गद्दी पर बैठे छोटे जुरारदेव तोमर ब्रज क्षेत्र के राजा बने सोहनपाल देव ने अपने पिता अनंगपाल  के जीवित अवस्था में 1079 ईस्वी वानप्रस्थ लेकर मनसा देवी की भक्ति में लीन रहने के कारन दिल्ली का राज्य अपने पिता के नाम से चलाया महाराजा अनंगपाल की मृत्यु के बाद सोहनपाल देव दिल्ली की गद्दी पर बैठे सोहनपाल देव ने अपने छोटे भाई के दो पुत्रो को गोद लिया जिनको सोनोठ और सोंख के राजा बनाया था |
महाराजा अनंगपाल का अंतिम दो वर्ष का समय मथुरा की पावन धरा पर व्यतीत हुआ सोनोठ गढ़ से प्रात:कालीन और संध्या कालीन देवी के दर्शन करते थे| यह किला और मंदिर इस तरह से निर्मित था की महाराजा अनंगपाल अपने  किले से देवी के दर्शन कर सकते थे| अनंगपाल की मृत्यु चैत्र शुक्ल विक्रमी सम्वंत 1139 (1081 ईस्वी) को अपने अराध्य देव कृष्ण और कुलदेवी मनसा देवी की पावन ब्रज भूमि पर हुई उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी समाधी मनसा देवी के समीप बनाई गई साथ ही उसी समय से यहाँ चेत्र माह में मेले का आयोजन होने लगा
जुरारदेव तोमर के आठ पूत्र हुए बड़े भाई सोहनपाल देव ने छोटे भाई के दो पुत्रो को गोद के कर अपना उत्तराधिकारी बनाया
1.सोनपाल देव सिंह तोमर
2.मेघसिंह तोमर
3.फोन्दा सिंह तोमर
4.ज्ञानपाल सिंह (गन्नेशा) तोमर
5.अजयपाल तोमर
6.सुखराम तोमर
7.चेतन सिंह (चेतराम) तोमर
.8.बत्छराज सिंह
अनंगपाल के समय में मथुरा में 8 मुख्य गढ़ (किले)  और 52 छोटे किले गढ़ी थी | अपने आठ पोतो में अपने साम्राज्य का बंटवारा निम्न प्रकार किए
सोहनदेव ने गोद लिए बड़े पुत्र सुखपाल को सौंख गढ़ के साथ सोंसा और सोन गढ़ दिया दुसरे पुत्र सोनपाल को सोनोठ की गद्दी दी  मेघ सिंह को मगोर्रा गढ़ (खेरा ) ,चेतन सिंह को चेतौखेरा,फौंदा सिंह को फौण्डर, ज्ञानपाल सिंह (गन्नेशा) को गुनसारा ,अजयपाल को अजान गढ़ , बत्छराज सिंह को बछ्गांव गढ़ दिया गया
आगे चलकर यह आठ गढ़ ही खूटेला पट्टी (तोमरगढ़ ) के आठ खेड़े(खेरे) कहलाये इनसे पूरे 384 गाँव बसे इन आठ खेड़ों में से चेतोखेरा गढ़ से तोमर वंशी आसपास बस गए और गाँव टीले के रूप में विधमान है| गुलाम काल में यहाँ से कुछ लोग सैनिक अभियानों में दिल्ली और पलवल के आसपास युद्ध करने गये जिन्होंने वहां दुधोला ग्राम बसा लिया इस ग्राम को दो भाईयों ने बसाया था  इस ग्राम के चार वीर योद्धा ने वर्तमान गौतम बुद्ध नगर (नॉएडा) जिले के हिन्दू जागीरदारी की लड़की को पठानों के चुंगल से बचा कर लाये इस युद्ध अभियान का नेतृत्व राम सिंह नामक वीर योद्धा ने किया जो आगे चलकर मुखिया राम सिंह कहलाए इनके वंशज वर्तमान में इस क्षेत्र में बसे हुए है |

आठ खेड़ों का इतिहास
1.सोनोठ गढ़
महाराज सोनपाल तोमर दिल्ली के राजा कौन्तेय अनंगपाल तोमर/तँवर तृतीय के पोत्र और कुन्तल वंश के आदिपुरुष जुरारदेव तोमर/तँवर के ज्येष्ठ पुत्र थे।इनको जुरारदेव के बड़े भाई महाराजा सोहनपाल ने गोद ले लिया यह इनकी के नाम से जाने गए जिनको सोनोठगढ़ की जागीरी मिली जिसको आजकल सोनोठ( मथुरा) बोला जाता है । सोनोठ गढ़ पर बहुत बार हमले हुए जिनका विस्तृत वर्णन आगे के अध्याय में किया गया है | मोहम्मद गौरी के  सेनापति आज आसिफ खान के 1195-96 ई. में हमला किया जिसमे आसिफ खान पराजित हुआ था| आगे 15 वी सदी में सिकंदर लोधी के हमले में यह किला नष्ट हो गया था |सोनोठ के किले के अवशेष टीले के रूप में विद्यमान है। सोनोठ गढ़ को वर्तमान में राजा अनंगपाल का टीला बोला जाता है | यह पुरातत्व विभाग दवारा संरक्षित क्षेत्र है |
2 मगोर्रा गढ़ (खेड़ा)
मगोर्रा खेड़ा को महाराजा अनंगपाल तोमर के पोत्र मेघसिंह ने बसाया[2] था। वर्तमान में यह मथुरा जिले में है।
मेघसिंह तोमर[3] ने इस गाँव में एक किला बनवाया था जिसको आज कोट(खेरा) बोला जाता है। महाराजा मेघसिंह के 4 पुत्र हुए
1.अजित सिंह
2.रामसिंह (रामा)
3.जाजन सिंह
4.घाटम सिंह
इन चार पुत्रो ने 4 पट्टियां बसाई
अजित सिंह ने अजित पट्टी,रामसिंह ने राम पट्टी,जाजन सिंह ने जाजन पट्टी, घाटम सिंह ने घाटम पट्टी को बसाया इनके वंशज आज कुंतल,खुटेला ,पांडव कहलाते है[4]। महाराजा जाजन सिंह ने श्री कृष्ण भूमि का पुनः निर्माण करवाया था इनके नाम से जाजन पट्टी रेलवे स्टेशन है |
अजित पट्टी से रसूलपुर, नगला चिन्ता, नगला अबुआ गांव बसे
राम पट्टी से नगला मकहेरा,बंडपुरा, ठाकुरी, सैहाँ,जाजन पट्टी से नगला झींगा, नगला कटैलिया, घाटम पट्टी नगला केंचुला, और कुछ भाग सोन

3.फोंडर गढ़ (खेड़ा)
फोन्दा सिंह ने ही फोंडर गढ़ को बसाया था| आज भी इस जगह 11 वि सदी के किले के अवशेष मौजूद हैं इसके कुछ भाग को फोंडर सिंह के वशज राजा अजित के नाम पर अजित बोलते है इससे कुल 22 गाँव बसे जिनके नाम अजित,नगला धाम,नगला खंडू,नगला,खारी,भूच,दाड़ी, नगला हमला,नगला नडी,नगला गोला, नगला औंधु, नगला ठाकुरिया,नगला जफा, नगला भान, नगला कंजा,नगला घरु,नगला श्रीचन्द्र,धर्मशाला,औगान, नगला घडी,कमल गढ़ी
4.गुनसारा खेड़ा
ज्ञानपाल सिंह (गन्नेशा) ने इस खेड़ा को बसाया 14 वी सदी में ज्ञानपाल के वंश में गेंदा सिंह तोमर सौंख के राजा के सेनापति थे इस गेंदासिंह के तीन रानी थी पहली से एक लड़का आजा हुआ जिसने सोंख का एक थोक आज़ल बसाया बाकी दो रानी से कुल बारह लड़के हुए जिनके नाम पर बारह थोक के नाम है इस गाँव में भरतपुर राजा ने कुण्ड का निर्माण करवाया था|
गुनसारा से निम्न गाँव बसे
सजोला, ढाना ,जीवना,नगला चौधरी,नगला मियां,खूबी का नगला,बघैया,नगला,लोरियापट्टी,कोंकेरा,सांतरुक,रारह,बुरावाई,अभोर्रा,आज़ल,ऐलवारा,जलालपुर,नगला तीन,कुंतलपुर
5.अजान गढ़ (खेड़ा)
अजान खेड़ा को अजयपाल सिंह तोमर ने बसाया दिल्ली में रजिया बेगम के समय यह इजान सिंह का राज्य था रजिया ने यह एक टकशाल बनवाई इस से 12 गाँव बसे
अजय पाल तोमर अजान 1207 विक्रमी
मध्यकालीन नागरी में अजयपाल की प्रशस्ति उल्लखेनीय है यह केशवदेव के टीले पर प्राप्त हुई थी तीस पंक्तियों का यह लेख शुद्ध संस्कृत लेख है दूसरी बात यह की यह  1207 विक्रम संवत 1149 ईस्वी की है जिसको पाल और कुलधर कवि ने गाई थी और सोमल ने इसको पत्थर पर लिखा था इस लेख में छोटी सी वंशावली सुरक्षित है|
 नजरिया,खोरेठा, जटोला, हरिकेश ,केसरिया,तिरखराम,पत्तिवाले,तंखा वाला,कटारे,हथियापाडा
6.सोंख गढ़ (खेड़ा)
जब तोमरो से दिल्ली का राज्य चला गया तब अनंगपाल तोमर ने सबसे पहले इसी जगह रुके उनके जगह पुरा कहलाई सोनक दुर्ग का निर्माण किया सुखपाल  को यहाँ का शासक बनाया  सौंख के राजा नाहर सिंह और उनके मंत्री बोध ब्राह्मण सोनोक दुर्ग की रक्षा में अल्लाउदीन ख़िलजी से युद्ध करते हुए वीरगति को पा गए तब उनका पुत्र प्रहलाद सिंह गद्दी पर बैठे इनके 4 पुत्र हुए जिनके नामपर 4 पट्टी है सहजना,तसिगा, आशा(नैनू),पुन्ना(महता)
प्रहलाद सिंह को डुंग भी बोलते थे जिसका अर्थ बड़ा भाई होता है उनके नाम पर डूंगरा पट्टी
सोंख की पट्टी और उनसे बसे गाँव
नन्नू पट्टी को आशा ने बसाया इसको नन्नू पट्टी या आशा पट्टी भी कहते है ईस से बसे गाँव आशा,नैनू,सैदा, अक्खा, लावारिस ,बारी,नगला रामसिंह,धाऊ, माडा, चोथैया, डोमपुरा,खुटिया,गढ़ी नाका
सहजना- सोंख, ओडम,नौधरा, पाली, नगला भूरिया,भवनपुरा, ऊमरी ,लालपुर
सिंगा पट्टी -इसको तसिंगा नाम से बसाया गया था इस से अड्डा, अड्डापाली, टोंटा नगर,स्योवा, नबादा गाँव बसे
महता (पुन्या) पट्टी इसको पुन्ना ने बसाया इससे मल्हु, नगला खारी, नगरिया, अहमल नगला शीशराम,भुण्डाना, बोरपा गाँव बसे
7.चेतोखेड़ी-
 चेतराम ने इसे बसाया जो आज टीले के रूप में है यह से पांडव वंशी आसपास बस गए इस से बहुत से गाँव बसे
8. सूरतगढ़ (बछगांव) गढ़ (खेड़ा)
जुरारदेव के पुत्र बत्सराज के हिस्से में इस क्षेत्र की जागीरी आई उनके नाम पर ही यह बछगाँव नाम से प्रसिद्ध हुआ । बत्सराज का दूसरा नाम सूरतसिंह तोमर था। उन्ही के नाम पर पैठा को पहले सूरतगढ़ कहा जाता था बाद में प्रति सोमवार को यहां जानवरो की पैठ लगने से यह जगह जनमानस में पैठा नाम से प्रसिद्ध हुई
इस से बसे गाँव। नगला देवरिया गुजाला,बेरू,शेरा ,सबला, रतु,नगला ताज,नगला संध्या,नगला जोगी,नगला कोली,नगला भगतरा भीला, रोपाला मनहोर टिकैता
इन से और भी गाँव बसे जो आज इन ग्राम की संख्या तीनसौ चौरासी से ज्यादा बताई जाती है

2. सुलखलान/ सलकलान/ सुलख तोमर (कुंतल)
दिल्ली के निकट बागपत जिले में बसे तोमर जाट को दिल्ली के महाराजा सुलक्षणपाल (सलकपाल) तोमर के वंशज होने के कारण ही सलकलान कहते है | महाराजा सुलक्षणपाल (सलकपाल) तोमर का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन 961 ईस्वी में पुराना किला दिल्ली में हुआ था । महाराजा सुलक्षणपाल (सलकपाल) तोमर का विवाह राजल देवी देशवाल से हुआ था| इनके छोटे भाई जयपाल तोमर का विवाह भी देशवाल गोत्र की इस राजल देवी की छोटी बहिन से हुआ
महारानी राजल देवी को बडी माता के रूप में आज भी पूजा जाता है| राजल देवी का मंदिर किशनपुर ग्राम में मौजूद है|  महाराजा सलकपाल सिंह 18 वर्ष 3 माह 15 दिन कि आयु में ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष में 979 ईस्वी में समन्त देश दिल्ली  कि गद्दी पर बैठे थे| जाट महाराजा सलकपालसिंह तोमर ने समन्त देश (दिल्ली ) पर 979 ईस्वी से 1005 ईस्वी तक 25 वर्ष 10 माह 10 दिन तक शासन किया । महाराजा सुलक्षणपाल (सलकपाल) तोमर ही महाराजा अनंगपाल तोमर के पितामाह (दादा जी) थे बड़ौत कि चौधराण पट्टी नई बस्ती ब्लाक बिल्डिंग के पास महाराजा सलकपाल देव का भूमिया(समाधी) है |
 महाराजा सलकपाल के 7 पुत्र और 1 पुत्री हुई
1. रामपाल तोमर
2. महिपाल तोमर
3. कृष्णपाल तोमर
4. चंद्रपाल तोमर
5. हरिपाल तोमर
6. शाहोनपाल (शाहपाल) तोमर
7 देशपाल तोमर
बागपत की तोमर खाप को तोमर देश खाप कहते है| इसका नाम देश खाप होने के पीछे दो मुख्य कारण है |
प्रथम तो यह की सुलक्षणपाल राजा के पुत्र देशपाल इस खाप के मुखिया थे । इनके नाम पर ही इस खाप का नाम देश खाप पड़ा है|
दूसरा यह खाप बहुत अधिक क्षेत्र में है| इस क्षेत्र को तोमरो का देश नाम से जानते है | इसलिए ही इनको देश वाले (देश के राजा) भी कहते है देश खाप कभी गुलाम नहीं रही |
महाराजा सलकपाल देव ने सन 1005 ईस्वी में 43 वर्ष 1 माह और 25 दिन कि आयु में राज सिहांसन अपने छोटे भाई जयपाल को सौप के खुद वांनप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर समचाना गाव में गढ़ी बना कर रहने लग गये परन्तु इसके बाद हुए विद्रोह और मुस्लिम हमलो ने दिल्ली राज्य पर विपरीत प्रभाव डाला अपने भाई जयपाल और पुत्र महिपाल के कहने पर इन्होने कुछ समय बाद यमुना को पार किया और पांडवो के प्राचीन क्षेत्र व्याघ्रप्रस्थ (बागपत) क्षेत्र में आये उनके साथ 500 योद्धा थे| जिनमें से 405 जाट थे, और बाकी दूसरे समुदायों से थे |
महाराजा सलकपाल देव तोमर जैसी मिसाल इतिहास में अर्जुनायन तोमरो के इतिहास के अतरिक्त अन्यत्र देखने को नहीं मिलती है जब एक बड़ा भाई अपने छोटे भाई (जयपाल तोमर) को राजपाठ दे खुद वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर ले तथा विपत्ति आने पर अपने क्षेत्र की रक्षात पुनः हथियार उठा ले  |
सुलक्षणपाल का सबसे छोटा बेटा देशपाल था जिसकी गतिविधि का केंद्र बडौत में था ज्येष्ठ पुत्र राव महिपाल जिसकी गतिविधि का केंद्र में बावली था और मध्य बेटा राव कृष्णपाल था जिसकी गतिविधि का केंद्र बिराल में था।
सुलक्षणपाल ने अपने पूर्वजो की तरह गणतांत्रिक चौधरत  का समाज शुरू किया था | सुलक्षणपाल ने 6 पुत्रो की  चौधरत शुरू की प्रत्येक चौधरत में 14 गाँव थे| इस तरह 84 की चौधरत शुरु हुई और इस को चौरासी (84) के कुल और चौरासी की चौधरत ( या 84 के रूप) में जाना गया था|
पहले एक गांव पर चौधरी का चयन किया गया था, और फिर 14 गांवों और अंत में प्रत्येक समुदाय के चौधरी (बिरादरी का ग्राम स्तर पर चयन किया गया 
 "चौधरत”.इस प्रकार के गणराज्य बहुत पहले (अर्जुनायन गणराज्य के समय से) से अस्तित्व में थे| जहां एक गोत्र के सदस्य एक कबीले में एक साथ रहते थे|
यह गणतांत्रिक चौधरत किसी विवाद  को पंचायत या पांच साल की परिषद के माध्यम से निपटाते थे|
तोमर देश खाप के 84 गांवों में सबसे पहले चौधरत :-
1. बडौत में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी रामपाल तोमर ने आयोजित की
 2. बावली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी राव महिपाल तोमर ने आयोजित की
 3. किशनपुर बिराल में 14 गांवों की पहली चौधरत कृष्णपाल तोमर ने आयोजित की
  4. बिजरौल में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी चंद्रपाल तोमर ने आयोजित की
  5. बामडौली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी हरिपाल तोमर ने आयोजित की
  6. हिलवाड़ी में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी शाहोनपाल (शाहपाल) तोमर ने आयोजित की
शाहपुर बडोली ग्राम से तोमर जाकर कोल (अलीगढ ) के पास आबाद हो गए बाद में शाहपुर बडोली को मेहर पट्टी और बडौत चौधरत के लोगों द्वारा बसा गया था| इस गणतंत्र के पहले चौधरी सलकपाल का सबसे छोटा बेटा देशपाल था| इस ही समय में सुखपाल तोमर ने बखेना (अब बिजनौर) में राजधानी की स्थापना की थी|
श्री सुखबीर सिंह के निधन के बाद उनके बड़े पुत्र श्री सुरेन्द्र सिंह इस देश खाप के चौधरी के रूप में मनोनीत किया गया है
इस चौरासी की चौधराठ की प्रथम राजधानी किशनपुर थी महाराजा सलकपाल की मृत्यु के कुछ समय बाद दिल्ली के महाराजा उनके पोते महाराजा अनंगपाल द्वितीय के समय में बडौत में स्थान्तरित की गई | इस गणतांत्रिक साम्राज्य में एक प्रधान सेनापति होता था  दो 42-42 ग्रामो पर उप सेनापति  होता था प्रथम 42 का सेनापति बिजरोल से चुना जाता था जिसकी जिम्मेदारी बाहरी सुरक्षा की होती थी| दूसरा सेनापति लोयन मलकपुर से चुना जाता था| जिसकी जिम्मेदारी आंतरिक सुरक्षा की होती थी | इन सेनापतियों का चुनाव उनकी योग्यता और बहादुरी के आधार होता था | तोमर देश खाप के तोमर जाटों की वीरता का वर्णन पुस्तक में आगे उचित स्थान पर किया गया है |
इस तोमर देश खाप के कुछ जाट दूसरी जातियों में जाकर सम्मलित हो गए जैसा की जाट बलवान नामक  पुस्तक में इतिहासकार  महेंद्र कुमार लिखते है| बावली के एक महान जाट योद्धा गोपाल सिंह ने गोपालपुर को बसाया था| इस गोपालपुर खंडाना का एक तोमर वीर जाट बुंदेलखंड चला गया था| अपनी बहादुरी से उसने वहां के राजा को कई युद्ध में विजय दिलवाई बाद में एक राजपूत महिला से शादी की और उसने शिवपुर जागीर की स्थापना की तो वह जागीरदार बन गया  और राजपूतो में विवाह सम्बन्ध करने के कारण जाटों से निकल कर राजपूत समुदाय में शामिल हो गए देश खाप इतिहास के अनुसार मुज़फ्फरनगर में जगदीशपुर बराल ग्राम के तोमर राजपूत बागपत के किशनपुर बराल ग्राम के जगदीश सिंह जाट के वंशज है | 
देश चौधरत के बिजनोर जिले में हासमपुर, हुसैनपुर, कालेनपुर मुस्तफाबाद, म्यूकरपुर हिरनाखेडा ,मुस्तफाबाद, शेखपुरी, मलेरीया, सलमाबाद, और मुरादाबाद में ,शादीपुर में, जिला मुजफ्फरनगर, के गांवों में हैदरनगर, कृष्णापुर, वेंनपुर, और शाहपुर भी इस चौधरत में आते हैं और नगला ठाडल व नगला भाईया भी चौधरी सलकपाल द्वारा स्थापित किए गए थे|
देशखाप की राजधानी  चौधरान पट्टी मे है|
देश खाप की सात थांबें है| ये थांबें देशखाप के अधीन काम करती हैं।
तोमर खाप के थांबें
1.बावली यह देश खाप का सबसे बड़ा थांबा है| इसकी स्थापना सलकपाल देव के पुत्र महिपाल तोमर ने की थी | महिपाल अपने चाचा जयपाल की मृत्यु के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा महिपाल के चार पुत्र थे गोपाल देव .बाहुबली देव,रुस्तम देव ,महावत सिंह
महिपाल की मृत्यु महसूद से हांसी के निकट युद्ध में हो गई थी| इसी युद्ध में इनके पुत्र गोपाल देव भी युद्ध में मारे गए थे| इनकी मृत्यु के बाद महिपाल के बचे हुए 3 पुत्रो बाहुबली सिंह ,महावत सिंह और रुस्तम सिंह ने अपने नाम से क्रमश बाहुबली ,महावतपुर और रुस्तमपुर बसाया यह तीनो ग्राम ही वर्तमान में बावली कहलाते है| तीनो ही राजस्व ग्राम है| इनका एक हिस्सा जाटोली कहलाता है| बाहुबली (बावली ) महावतपुर ,रुस्तमपुर और जाटोली आज बावली के हिस्से है| बावली ग्राम का प्राचीन नाम बाहुवली था| जो अब बिगड़ कर बावली बन गया यानी बाहुबली से हु शब्द विलुप्त हो कर आज यह बावली के रूप में प्रसिद्ध है ,लेखक दिलीप सिंह अहलावत और बीएस ढिल्लों ने बावली को भारत का सबसे बड़ा गाँव माना है ।
बावली में 7 पट्टी/थोक /मौहल्ले है ।
1 देशो की,
2 मोल्लो की
3 गोपी की
4 राणो की
5 कट्कड़ की
6 खुब्बो की
बावली गाँव में ही समय में तीन प्रधान(सरपंच) होते है।राणो की पट्टी में तोमर गोत्र के जाट है । राणा उपाधि लिखते है । गोपीवाला बावली का एक पवित्र प्राचीन स्थल है। नहुष के अधिकांश यज्ञ इसी क्षेत्र में हुए है| इंद्र के प्रयास से खाण्डवप्रस्थ विंध्वंश के बाद इंद्रप्रस्थ बसा उस से पहले देवी देवताओ के लिए यह रमणीय स्थल रहा है| गोपीवाल बावली गाव में एक प्राचीन बनी (वन क्षेत्र) है| जिसकी स्थापना दिल्ली नरेश और महाराजा सलकपाल सिंह तोमर के पिताजी महाराजा गोपालदेव ने की थी| पहले एक गुफा भी थी जो बहुत सकरी थी जिसको गर्भवास बोलते थे । यह प्राचीन समय में सिद्ध और नाथ सम्प्रदाय का बसेरा रहा है अब यह गिर सम्प्रदाय का निवास है 1857 में क्रांतिकारियों का स्थल यह क्षेत्र रहा है| बावली की राणा पट्टी के जाटों ने मुज़फ्फरनगर में पठानों के आतंक को समाप्त कर पठानों के ग्राम हैदरनगर पर कब्ज़ा कर लिया था |
बावली थाम्बे के कुछ प्रमुख ग्राम रुस्तमपुर ,महावतपुर,गोपालपुर ,खडाना,करीमपुर ,माज़रा ,जिमाना,जिमानी ,जाटोली ,औरंगाबाद ,छाछारपुर ,गुगाहेडी,हैदरनगर आदि

2. किशनपुर बराल
दिल्ली पर पाण्डववंशी जाटों का राज्य रहा है इसी वंश में राजा अनंगपाल के पिता महाराजा कंवरपाल तोमर के छोटे भाई और सलकपाल देव के मझले पुत्र राजा किशनपाल सिंह थे| राजा किशनसिंह इस क्षेत्र की जागीरी विरासत में पूर्वजो से मिली थी उस समय के नाथ सम्प्रदाय के गुरु संत फूला नाथ के निर्देश से पुरोहित देवकीनंदन के दुवारा विक्रम सम्वत 1125 ईस्वी (1067 ईस्वी ) यज्ञ किया गया जिसके बाद किशनपुर की नीव रखी गई इस ग्राम में दिल्ली की जाट रानी (महाराजा अंनगपाल की दादी ) की मृत्यु उपरांत उनकी समाधी राजा किशनसिंह के दुवारा बनवाई गई आज इनको बड़ी माता के रूप में पूजी जाती है| गढ़ मुक्तेश्वर के प्रसिद्ध नग के कुआँ का पुनः निर्माण राजा किशनपाल तोमर ने करवाया था| गढ़ मुक्तेश्वर के पास के सात ग्रामो को जीत कर उनकी आय से यहां के रखरखाव की  व्यवस्था की थी |ऐसा माना जाता है की इंद्रप्रस्थ के पाण्डववंशी तोमर राजाओ ने इस जगह ग्राम बसाने से पहले एक न्याय पीठ की स्थापना भी की थी| बाद में इस जगह को पवित्र मानकर  उन्ही के वंशजो ने इस जगह किले की स्थापना की जो आज भी टीले के रूप में मौजूद है| मुस्लिम हमले में यह न्याय पीठ नष्ट हो गयी थी किशनपुर में चौधरी कृपाराम तोमर ने भी एक बारादरी का निर्माण करवाया था| जिस में एक कुंडली नुमा संरचना में खड़ा होकर व्यक्ति झूठ नहीं बोलता था| यदि कोई झूठ बोल दे और पकड़ा जाए तो उसको फांसी की सजा दी जाती थी| चौधरी कृपाराम के समय उनके किसी लड़के ने झूठ बोला और वो पकड़ा गया उसको कृपाराम ने फांसी की सजा दे दी थी यहां सबके लिए समान न्याय व्यवस्था लागू थी|
किशनपुर में तोमर राजाओ दुवारा बनाया गया तालाब प्रसिद्ध रहा है| यह तालाब 14 बीघा भूमि में निर्मित है जिसमे स्नान करने से चार्म रोग दूर हो जाते है यहां राजा सलकपाल देव और अंनगपाल देव ने मंदिरो की एक श्रृंखला निर्माण करवाया गया जिस पर दाराशिकोह ने शरण ली थी इस कारण से औरंगज़ेब ने यहां हमला किया और इन मंदिरो को नष्ट कर दिया जाट वीरो के विरोध के आगे औरंगज़ेब कुछ ही जगहों को नुकसान पंहुचा सका यहां के महंत गोपालगिरि ने इस जगह के तालाब की खुदाई करवाई जिस में निकली तोमर कालीन खंडित मूर्तियां गंगा में प्रवाहित करवा दी साथ ही एक मूर्ति जो खंडित नहीं थी आज भी यह स्थापित है
किशनपुर बराल थाम्बे के वर्तमान चौधरी डॉ महक सिंह एक समाज सेवी है | ऐसे व्यक्ति कौम का हीरा होता है जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया
बिराल थाम्बे के प्रमुख ग्राम किशनपुर बिराल ,कासमपुर खेडी ,गढ़ी कांगरान ,जन्गेठी,सूप

3.बामनौली बामडोली की स्थापना हरिपाल तोमर ने की थी उनके पुत्र ज्ञानपाल के नाम से पहले इसको ज्ञानडोली कहा जाता था| वर्तमान में बामड़ोली/बामनौली के नाम से जाना जाता है| बामडौली में वसुंधरा तीर्थ था| बामनौली के रघुवीर सिंह महाराजा जवाहर सिंह के पोलिटिकल एजेंट थे| बामनौली के मास्टर चंद्रभान राजस्थान के सीकर में स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े हुए थे| बामनौली का नाग मंदिर क्षेत्र का प्रसिद्ध तीर्थ है|
बामनौली थाम्बे के प्रमुख ग्राम सिरसली ,सिरसलगढ़,बामडोली,

4. बिजरौल बिजरोल देश खाप का प्रसिद्ध ग्राम रहा है 1857 क्रांति के नायक बाबा शाहमल बिजरोल के ही निवासी थे| बिजरोल में चौधारत की शुरआत चंद्रपाल सिंह (सुलक्षणपाल के पुत्र) ने शुरू की थी|
 बिजरोल थाम्बे के मुख्य ग्राम पुट्ठी,जोहड़ी ,खेडी ,गोरड

5. पट्टी मेहर मेहर पट्टी को सलकपाल देव के पोते मेहर सिंह ने बसाई थी |यह बडौत का ही एक हिस्सा थी पट्टी मेहर के प्रमुख ग्राम गुराना, लोयन, बडोली

6. पट्टी बारू मलकपुर, शाहपुर बडोली, जोनमाना

7. हिलवाड़ी- सलकपाल देव के पुत्र शाहोनपाल (शाहपाल) तोमर ने प्रथम बार बिलवंडी के नाम से गढ़ी बनाकर चौधराठ की शुरूआत की थी| सलकपाल देव के पोते सुन्दरसिंह (हिल्लनदेव ) के नाम से इसको हिलवाडी कहा जाने लगा था|
 हिलवाडी थाम्बे के प्रमुख ग्राम हिलवाड़ी,सादुल्लापुर , लोहड्डा, शिकोहपुर, बाजिदपुर ,ओसिका ,सिक्का ,इदरिसपुर



3. भिण्ड तोमर
भिण्ड को तोमर जाटों ने बसाया था | यह दिल्ली के समीप कोई जगह थी| जिस पर तोमर जाटों का आधिपत था| जबकि कुछ इतिहासकार भिंड की पहचान मध्यप्रदेश के एक जिले से करते है| मध्य प्रदेश के भिंड जिले में गोहद नाम से जाटों की एक प्रसिद्ध रियासत भी है|
भिण्ड के नाम पर तोमरो को भिण्डा तोमर कहा जाता है| इनका गोत तोमर/ तंवर ही है| जिसका प्राचीन नाम कुंतल (कौन्तेय ) है |जबकि भिंड शब्द एक स्थानवाचक है ना कि गोत्रवाचक जैसे वर्तमान भी कुछ लोग अपने गाँव का नाम अपने नाम में लिखते है जैसे- हरयाणा के पूर्व मुख्य मंत्री ओमप्रकाश चौटाला और पंजाब के प्रकाश सिंह बादल
तोमर लोग पंजाब में तुअर(तूर) बाकी जगह तोमर लिखते है| राजा अनगपाल तोमर जाट के वंशज मथुरा जिले मे आबाद हुए मथुरा मे इनको कोन्तय/कुन्तल बोला जाता है। 
जब दिल्ली पर गुलाम वंश का राज्य था|  तब यह लोग दिल्ली मे तहनगढ़(तुहनगढ़) मे बसे हुए थे| भिंड तोमर खुद को राजा तुहगपाल तोमर (महिपाल तोमर के पुत्र) के वंशज मानते है। दिल्ली में यह सन 1857 की क्रांति तक के समय बीस से ज्यादा गाँवों में बसे हुए थे| दिल्ली से तोमर लोग उत्तरप्रदेश पंजाब और राजस्थान जाकर आबाद हुए है|
इनका एक समूह दिल्ली के तहनगढ़ से तुगलक काल में हस्तिनापुर मे गया यहाँ से मुज़फ्फरनगर में कोथरा (काहनान) गाँवों को बसाया, कोथरा के आसपास की जागीरी इनके पास थी | कोथरा को फिर निसाड़ और वर्तमान में लिसाढ़ कहा जाने लगा है|
हरियाणा के सोनीपत जिले के एक गांव में चौ० पाथू मलिक रहते थे जिनके चार पुत्र नैया, मल्हण, कक्के और देवसी नामक थे। नैया नाराज होकर अपने घर से यमुना पार कैराना व कांधला के पास कैथरा (काहनान) गांव पहुंचा। यह गांव भिण्ड तंवर जाटों का था | जहां नैया उस गांव के जमींदार बोहरंग राव भिण्ड-तंवर गोत के जाट के घर में रहने लग गया। उस समय दिल्ली पर सैय्यद वंश के बादशाह का राज्य था जिसकी नींव खिज्रखां ने सन् 1414 ई० में तुगलक वंश को समाप्त करके डाली थी और वह सन् 1414 ई० से 1421 ई० तक दिल्ली सल्तनत पर शासक रहा था। इस सैय्यद वंश का राज्य 1451 ई० तक रहा था। बोहरंग राव जाट ने अपनी पुत्री मलूकी का विवाह नैया से संवत् 1483 (सन् 1426 ई०) में कर दिया और उसके नाम अपनी सारी भूमि व सम्पत्ति करवा दी। बोहरंग राव की इस मलूकी के अतिरिक्त और कोई सन्तान न थी। इसलिए नैया को अपने घर रख लिया। इससे नाराज होकर कैथरा गांव के भिण्ड तंवर जाटों ने संवत् 1487 (सन् 1430 ई०) में नैया को खेतों की एक जोहड़ी में कत्ल कर दिया। इस घटना के बाद मलिको और भिंड तोमर में लड़ाई हुई विधवा मलूकी के श्राप के डर से भिंड तंवर गाँव छोड़ गए उस श्राप के कारन जो एक घर भिंड तोमर का उस गांव में रह गया आज तक उनका सिर्फ एक ही घर है| यानि उनका वंश आज तक वृध्दि नहीं कर पाया जबकि नैना और मलूकी के वंशजो के 52 गाँव इस क्षेत्र में वर्तमान में बस गए है मलिकों ने उस कैथरा गांव का नाम बदलकर नैया के नाम पर निशाड़ रख दिया और नैया की विधवा पत्नी मलूकी का पुनर्विवाह नैया के छोटे भाई देवसी से करवा दिया। जिस जोहड़ी में नैया का वध किया गया था वहां पर मलिकों ने नैया की समाधि बनाई जो आज भी है। यह भी निर्णय किया गया कि वहां के मलिकों की चौधर (प्रधानता) नैया के ही खानदान में रहेगी।
कोथरा से भिंड तोमर मोहमम्दपुर गए यहां से लाखसड्डा( वर्तनाम में गैर जाट गाँव)  में बसे यहाँ से फिर बेलड़ा में बसे दिल्ली के बिहारीपुर से ही मुज़फ्फरनगर में करहेड़ा मे बसे भिंड तोमर मुज़फ्फरनगर में कादीपुर,जोहरा ,बहेड़सदत ,शाहवाली, बहादरपुर ,मुंझेड़ा, करहेड़ा में आबाद है | मुज़फ्फरनगर जिले से ही बिजनौर में जाकर तोमरो ने हाजीपुर और तिसोत्रा को  बसाया  इस शाखा का मुख्य गांव बिजनौर जिले में हाजीपुर है। एक समय बिजनौर जिले के जाटों की अनुशासन व्यवस्था इसी गांव के देवता नैनसिंह के द्वारा संचालित होती थी। वे अपनी दूरदर्शितापूर्ण सूझबूझ न्यायपरायणता के लिये जिले भर में सर्वोच्च रूप में ख्याति प्राप्त थे। इस हाजीपुर के तोमरो में चौधरी चरण सिंह जी कि बेटी कि सुसराल है|
दिल्ली से भिण्ड तोमर लोग पंजाब में रायपाल तोमर के नेतृत्व में अमृतसर क्षेत्र में जाकर आबाद हुए पंजाबी भाषा में तोमर को तुअर और तूर बोला जाता है| पंजाब के जालन्दर जिले में नौगाजा नाम की इनकी रियासत रही है| महाराजा रणजीत सिंह के समय में अमर सिंह तोमर यहां के प्रसिद्ध राजा हुए जो महाराजा रणजीत सिंह के सेना प्रमुख भी रहे .जिनके पूर्वजो ने अफगानो को युद्ध में हराया था|
इनके इस शाखा के पंजाब में जिले में मुख्य ग्राम अमृतसर में भीण्डर तूर,तरसिक्का,भिंडर कलां,जब्बोवाल  मोगा जिले में भीण्डर खुर्द  भीण्डर कलां है जालन्दर  जिले में नौगाजा
4. चाबुक तोमर-
अलीगढ में तोमर जाटों की पिसावा नाम से रियासत है| इस रियासत के राजाओं को चाबुक (हंटर ) का उपयोग करने के कारन चाबुक कहा जाने लगा परन्तु यह अपने गोत्र के रूप में तोमर (तंवर ) कौन्तेय का ही प्रयोग करते है | जैसा की विरमपुरा के जगाओ से पता चला की पिसावा के तोमर जाट दिल्ली के राजा अनंगपाल प्रथम (विल्हण देव ) के वंशज है | बिल्हण देव कौन्तेय ने अनंगपाल नाम धारण कर के इन्द्रप्रस्थ पर 736 से 754 ईस्वी तक शासन किया था| इनकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी| अनंगपाल प्रथम के सात पुत्र हुए जिन में से इंद्रपाल देव , अचलराज ,द्रुपद ,वासुदेव मुख्य है| वासुदेव  अनंगपाल प्रथम की मृत्यु के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठे जबकि अचलराज[5] जाट को अचनेरा (आगरा ) क्षेत्र की जागीरी मिली ,इंद्रपाल को अनंगपुर क्षेत्र पलवल फरीदाबाद की जागीरी मिली, इन्द्रपाल ने अपनी कुल माता कुंती (पृथा) के नाम से पृथला ग्राम को बसाया था|इन्द्रपाल के वंशज प्रारंभ में मेरठ जिले के पिलोना में आबाद थे पिलोना से इन लोगो ने जटोली (पलवल जिले में ) में बसाया था इस जटोली से पृथला का निकास माना जाता है| जटोली ग्राम का जाट किशनसिंह तोमर दारा शिकोह के समय मुगलों का एक प्रसिद्ध मनसबदार रहा है| औरंगजेब ने किशनसिंह जाट के वंशजो को मजबूर करके इस्लाम स्वीकार करवा दिया इसके ही साथ कुछ तोमर जाटों के ग्रामो ने इस्लाम स्वीकार किया यह लोग वर्तमान में मेव मुस्लिम जाति का हिस्सा बन चुके है| राजा किशन सिंह के वंशज 1947 के बंटवारे में पाकिस्तान में चले है|
पृथला (पलवल ) के दो सगे भाई आवे (आदे) और बावे (बादे) थे| इनका वास्तविक नाम अजयपाल और विजयपाल ज्ञात होता है | यह दोनों भाई लोधी काल में किसी कारण वश पृथला को छोड़ कर आधुनिक अलीगढ जिले की खैर तहसील में आ बसे और अपने पराक्रम से इनके वंशजो ने पिसावा रियासत कि स्थापना कि थी। शेरशाह के समय में यह प्रसिद्ध मनसबदार थे |

पृथला गाव में चार मौहल्ले हैगिनहेड़ा ,हटूआ ,रतुआ ,बक्सेर्रा (बकसेरा )है| पिसावा में तोमर लिखते जबकि पृथला में तंवर लिखते दोनों रक्त भाई है तंवर और तोमर एक ही गोत्र है आज भी यह गाव तोमर गोत्र के जाटों का है यह भाई रतुआ थोक (मौहल्ले ) के थे इस गाव में एक प्राचीन मंदिर है जिसको बनी वाले मंदिर के नाम से जाना जाता है इस मंदिर नरसिंह भगवान की पूजा होती है कुछ लोग इस मंदिर को महाराज अनंगपाल दुवारा बनाया हुआ मानते है| पृथला में महाराजा अनंगपाल की प्रतिमा स्थापित है |
जगाओ की पोती से ज्ञात हुआ की कुछ समय बाद में बादे गंगा पार चला गया और एक अलग राज बनाया उसके वंशज वहां की राजपूत बिरादरी में शामिल हो गए पिसावा राजाओ की जानकारी आगे के अध्याय में दी गई है|
5. जाखौदिया तोमर-
तोमर (तंवर) जाट जब दिल्ली के जाखौद गॉव से आकर भरतपुर के छोंकरवाड़ा गाव में बसे तो स्थानीय निवासयो ने इनको इनके पैतृक गाँव जाखौद के नाम पर जखोदिया कहना शुरू कर दिया जाखौदिया तंवर जाटों का.पूरे भारतवर्ष में यह एक मात्र गाँव है| और किस जगह पर यदि कोई जाखौदिया तोमर निवास करते है| तो वो मूल रूप से छोंकरवाड़ा से गए हुए है। छोंकरवाड़ा से ही गए हुए कुछ परिवार अलवर जिले की कठूमर तहसील के शेखपुरा गाँव में निवास करते है। कुछ तोमर (तँवर) जाटों को उनके गाँव के नाम से सम्बोधन दिया जाता है| जैसे - दीघोट गाव के तोमरो को दीघोटिया भी बोला जाता है । गोरड गाँव के निवासी को गोरिदया भी बोल देते है यह सिर्फ उनके गाँव के नाम का प्रतीकात्मक रूप है उनका गोत्र तो तोमर (तंवर) ही है ।
गाँगदेव तोमर नाम से एक दिल्ली के जाट शासक भी हुए थे जो की अनंगपाल प्रथम के पोते थे| जिन्होंने 773 ईस्वी में दिल्ली पर 20 साला तक राज्य किया यह लोग महाराजा गंगदेव के वंशज माने जाते है |
 दिल्ली के जाखौद ग्राम में मुग़ल काल में तोमर  वंश में एक और गांगदेव तोमर हुए थे| जाखौद गाँव के गंगदेव(गाँगदेव) तँवर (तोमर) की ननिहाल भरतपुर जिले के सलेमपुर मे लिवारिया गोत्र के जाटों मे थी| मुग़ल काल में जाखौद दिल्ली से उजड के गंगदेव तँवर अपनी ननिहाल सलेमपुर मे अपने मामा के पास आकर बसे गए थे|  गंगदेव अपनी ननिहाल मे जाखौद से आकर बसे थे| इसी कारन से सलेमपुर मे उनके परिवार को जखौदिया बोला जाने लगा सलेमपुर से गंगदेव तँवर का परिवार पास ही के छौंकरवाड़ा में बस गए
उनके वंशजो  को आज भी जखौदिया तंवर बोला जाता है जखौदिया तंवर आज भी लिवारिया गोत्र के जाटों को मामा के समान दर्जा देते है। उनमे विवाह नही करते है लिवारिया जाट भी दिल्ली के नरेला से आये हुए है|
6. कोठयार तोमर-
कोठ्यार तोमर के जगाओ के अनुसार यह दिल्ली के जाट राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय के छोटे भाई कुठारसी के वंशज है| इतिहासकार ठाकुर देशराज भी जगाओ की इस बात का समर्थन अपनी पुस्तक बीकानेरीय जागृति के अग्रदूत में करते है| ठाकुर देशराज जी लिखते है दिल्ली के जाट राजा अनंगपाल तोमर के चार भाई थे| ये चार थम्भ (स्तम्भ) कहलाते हैं | इनके छोटे भाई कुठारसी के वंशज कोठारी तोमर कहलाते है । दिल्ली के किसी ग्राम से भरतपुर जिले के वैर रियासत में आकर बसे यहाँ के राजा प्रताप सिंह ने इनको अपनी सेना में सम्मानित पद दिया यहाँ  इन्होने नगला कोठारी बसाया जहाँ से यह लोग करौली जिले के पीपलहेडा और सायपुरा दहमौली में जाकर बस गए जबकि इनकी दूसरी शाखा दिल्ली से झुझनु जिले के घड़ावा ग्राम में बस गई जो बाद में कुछ ग्रामो में यहाँ से जाकर आबाद हो गई
इनकी तीसरी शाखा दिल्ली के तोमरपुर (तिमरपुर) से चलकर सवाई माधोपुर जिले के पीपलेट ग्राम में जाकर बस गई इस क्षेत्र में बसने से पहले इनका यहाँ के निवासी मीनो से युद्ध हुआ पहली शाखा और तीसरी शाखा के लोग आज सिर्फ तोमर लिखते है जबकि दूसरी शाखा के लोग जो झुंझनु और चुरू जिलो में है वो कोठारी लिखते है|
7. मोटा तोमर (तँवर)-
मोटा गोत्र नहीं है| यह सिर्फ एक बोक ( सम्बोधन) है । इनका गोत्र तोमर (तंवर) है ।यह लोग राजस्थान में आकर बसे तब स्थानीय निवासियों ने इनको मोटा कह कर सम्बोधित किया तब से यह मोटा तंवर कहलाते है| यह महाराजा बिल्हण देव तोमर के वंशज है| दिल्ली के तुगलाकाबाद से यह पलवल जिले के जाटोली( आज भी तोमर जाट आबाद है) गाँव में आकर बसे यहाँ से मथुरा में कोसी के पास जाकर आबाद हुए यहां से हरियाणा  के पानीपत के दीवाना और नीमड़ी में बसे इन गावों में आज भी तोमर जाट आबाद है|  फ़िर यहाँ से कुछ लोग सोनीपत जिले मे आकर बसे यह लोग पुनः मथुरा आये यहाँ से दो भाई सवाई माधोपुर जिले के वज़ीरपुर के पास आकर बसे यहाँ दोनो भाईयो ने दो गाँव कुन्साया और खेड़ला को बसाया था| कुछ पीढ़ी बाद यहाँ से दो भाई और एक बहिन खण्डार तहसील में चले गए वहाँ इनके वंशजो ने तीन गाँव गोकुलपुरा ,सीमोर ,खीदरपुर जाटान बसाये इन गाँवों से कुछ लोग मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के राडेप में जाकर बस गए कुन्साय और खेड़ला गॉवों में वो अपना गोत्र तोमर (तंवर) ही लिखते है| बाकी गाँवों में सिर्फ मोटा लिखते है यह लोग बासोटी देवी को पूजते है| इसलिए बाँस से बनी वस्तु काम में नहीं लेते है|
8. कपेडे (कापेडे) तोमर-
बागपत जिले के बावली ग्राम से कल्याण सिंह नाम का एक वीर योद्धा बिजनोर क्षेत्र में अपने दिल्ली के तोमर भाइयो के साथ आया था| उसने यहाँ के मुस्लिम जागीरदार को हरा कर कुछ ग्रामो पर कब्ज़ा जमा लिया और उसके वंशज कल्याण सिंह के नाम से तोमर वंश के कपेडे कहलाए पर आजकल यह सिर्फ तोमर ही लिखते है |
9. रोज्जी (रोजी) तोमर-
मुजफ़्फ़रनगर जिले के घटायन ग्राम मे एक पट्टी का नाम रोजी है| इस पट्टी से गए कुछ तोमर जाट बिजनौर जिले के पीपली जाट और गनसूरपुर मे जाकर आबाद हुए  उनका मूल निकास रोजी पट्टी से होने के कारन वो बिजनौर जिले मे रोजी तोमर कहलाये घटायन से ही भुम्मा , बीबीपुर जलालाबाद गाव बसे
11. खोसा तोमर
जब दिल्ली से तोमरो का राज्य चला गया तो दिल्ली के तोमरो की एक शाखा दिल्ली से पंजाब में चली गई जो लुधियाना क्षेत्र में जाकर आबाद हो गयी स्थानीय भाषा में इनको तुअर बोले जाना लगा जो आजकल तूर बोला जाता है| पंजाबी जट्ट इतिहास के अनुसार खोसा मूल रूप से दिल्ली से आये तोमर जाट थे| उनमे से कुछ तोमरो ने अफगानी लुटेरो को लूटना शुरू कर दिया लूटने तथा किसी वस्तु धन को खोसने के कारण ही इन्हो को स्थानीय लोगो ने खोसा कहना शुरू कर दिया जो आगे चल कर इनका उपगोत्र बन गया जबकि पंजाब में प्रचलित लोक मान्यताओ के अनुसार दिल्ली से तोमरो का राज्य चला गया तब वो इस क्षेत्र में आकर आबाद हुए स्थानीय लोगो ने कहना शुरू कर दिया की इनका राज्य दिल्ली राज्य मुसलमानों ने खोस लिया है| इसलिए इनको खोसा बोला जाने लगा 
जब तोमर जाट दिल्ली से इस क्षेत्र में आये । तब उनके एक नवजात बच्चे कि युद्ध में रक्षा तोमर वंश की कुल देवी (मनसा देवी) ने चील के रूप में आकर के कि थी| उसी बच्चे के नाम पर रणधीरपुर नाम से एक गाव मोगा जिले में बसाया था । जिसको आज खोसा रणधीर बोलते है । इस गाव में पहले के समय में एक तालाब पर माघ माह में एक मेले का आयोजन होता था| आज भी खोसा तोमर चील दुवारा रक्षा किये जाने के कारन ही शादी के दौरान एक रोटी चील को अवश्य रूप से देते है|
पंजाब में खोसा तूर जमैतगढ़ , खोसा रणधीर ,खोसा देवा ,खोसा कोटला ,खोसा पाण्डो गाव में निवास करते है|

12.गरचा तोमर-
दिल्ली से तोमर जाटों का समूह फिरोजपुर में आबाद हुआ फिर वहां से लुधियाना के कोहरा गॉव में बसा कोहरा गाँव से तोमरो की इस शाखा का उदय हुआ है |
13 सीडा तोमर शीरा (शिरे)तंवर
यह पांडव वंशी जाटो की ही एक शाखा है| पेहोवा का प्राचीन नाम पृथूदक था| यह तोमरकालीन घोड़ो की प्रसिद्ध मंडी थी| पेहोवा के पास ही थानेश्वर हिन्दू का प्रसिद्ध तीर्थ था|
पेहोवा में एक तोमर व्यापारी जौला और उसके बाद के परिवार का उल्लेख है।
जिस समय दिल्ली पर पांडव वंशी तोमरो का शासन था उस समय सरहिंद को तंवर हिन्द बोला जाता था तब यहाँ तोमर जाटों का एक किला स्थापित था | इस किले की जिम्मेदारी विल्हणदेव (अनंगपाल तोमर प्रथम) के पुत्र के अधीन थी  कैथल ,पेहोवा, सरहिंद का क्षेत्र उसके अधीन था|
ग़ज़नवी ने 1011 ईस्वी (402 हिज़री) में थानेश्वर पर हमला किया था| इस समय दिल्ली पर जयपाल तोमर का शासन था पेहोवा तंवर हिन्द  पर कीरतपाल (अनंगपाल का वंशज ) का शासन था वो  दिल्ली के ही अधीन थे|थानेश्वर हिन्दुओ के लिए पवित्र था| यहां भगवान जगसोम की मूर्ति थी| जगसोम प्रतिमा के बारे में यह विश्वास था की यह सृष्टि के आदिकाल से स्थापित है| दिल्ली के तोमर (तंवर) राजा जयपाल तोमर को  शाही राजवंश के लोगो ने ग़ज़नवी के इस मनसूबे से अवगत करा दिया था| दिल्ली के महाराजा ने जाट खापों और भारतीय राजाओ को इस खतरे से आगाह करा के सहायता की अपील की थी |  इससे पहले हिन्दू सेना थानेश्वर पहुँचती ग़ज़नवी थानेश्वर पर हमला कर चूका था | भगवान जगसोम की मूर्ति के टुकड़े कर के गज़नी भेज दिए
इतिहासकार इलियट डाउनसन के अनुसार ग़ज़नवी को अपार धन यहां से प्राप्त हुआ फरिश्ता अनुसार फिर गज़नवी ने दिल्ली पर हमले के सोची लेकिन उसके सेनापति ने महमूद गजनवी से कहा की दिल्ली के तोमरो को जीतना इस समय असम्भव है । यह तोमर इस समय बहुत शक्तिशाली है ध्यान देने वाली बात है गजनवी ने भारत पर 17 बार हमले किये लेकिन  दिल्ली पर कभी हमला करने की उसकी हिम्मत नही हुई | महाराजा जयपाल तोमर इस क्षेत्र में पहुचे तो वो बहुत दुःखी हुए और वो पालकी की जगहे सीढ़ी पर बैठ पर गये । लोकभाषा में सीढी को सीरी बोला जाता था इस कारण से ही तो तोमर जाटों को इस क्षेत्र में सिडा तोमर ,या शिरा तंवर कहते है (शिरा (सिरे)=सीढ़ी (सीरी ) वाले ) कहा जाता है|
तोमर जाटों को  सीडा कहे जाने का दूसरा कारन यह भी बताया जाता है कि गौरी के दिल्ली विजय के बाद  पंजाब में इनके सरहिंद के समीप रालामिला के किले को मुस्लिम तुर्क  दुश्मनो ने धोखे से घेर लिया था| तब अधिकाश तोमर(तुर ) जट्ट युद्ध करते हुए मारे गये कुछ तोमर सैनिको को राजा को सुचना देने लिए लिए सीढ़ी(सीरी ) लगा कर किले से बाहर भेज दिया गया था बाद में किले पर दुश्मनो का कब्ज़ा हो गया था|
सन 1196  ईस्वी में इनका एक दल चीका नामक जगह पहुचे इसके ही समीप मंगेडा नाम जगह पर 9 वि सदी में अनंगपाल के पोते  महँगा सिंह तोमर ने एक किले का निर्माण भी करवाया था | जिसको मेंगडा कोट बोला जाता था|  इनके अन्य साथियों ने अपने मेंगडा वाले तोमर भाइयो किओ सहायता से चीका पर कब्ज़ा कायम किया यहाँ के लोगो को युद्ध में हराकर बारूद से उड़ा कर नए चीका की स्थापना की
इल्तुत्मिस के समय गुलाम वंशी सेना ने मंगेडा पर आक्रमण करके इसके किले को नष्ट कर दिया इसी के साथ मंगेडा वीरान हो कर पुनः चीका से आये तोमर जाटों ने बसाया है |
इनकी एक शाखा पंजाब के भटिंडा लुधियाना में आबाद हो गयी जो मुस्लिम हमलावरों को लुटने के कारण खोसा तोमर (तुर ) कहलाते है |
इस युद्ध के बाद तोमरो ने अपनी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए तंवर हिन्द (सरहिंद ) के किले को मजबूत किया यह सरहिंद पटियाला रियासत काल में तोमर जाटों की जागीरी रही है | वर्तमान में इस जगह बहुत से ग्राम तोमर (तुर ) जाटों के है |
14 अडिंग
अडिंग पर कौन्तेय /तोमरो की 22 पीढ़ीयों ने शासन किया है| मथुरा मेमायर्स, पृ० 376 पर लिखा है कि जाट शासनकाल में मथुरा पांच भागों में बंटा हुआ था अडींग, सोंसा, सौंख, फरह और गोवर्धन।यह पांचो किले तोमरवंशी कुन्तलो के अधीन थे मुग़ल काल के इतिहास में अडिंग के इन कुंतल जाटों शासको ने मुगलो से बहुत संघर्ष किया | चूड़ामणि के बाद बदन सिंह के समय में अडिंग पर अनूपसिंह का राज था | उनके पिता अतिराम सिंह थे  अनूप सिंह के 4 पुत्र थे
राजा अनूप सिंह ने भी भरतपुर (डीग ) राजा बदन सिंह को बहुत से युद्धओ में सैनिक सहायता पहुचाई थी| बदनसिंह के समय में उनका वर्णन ब्रज के शक्तिशाली राजाओ में हुआ है | महाराजा सूरजमल के समय में फौंदासिंह कुंतल अडिंग का राजा था| सूरजमल की मृत्यु के बाद अडिंग के कुंतल जाट राजा और भरतपुर के नवल सिंह की सयुक्त सेना का मुकाबला मराठो मुगलों से हुआ इस युद्ध के बाद यहाँ से कुछ कुंतल जाट मारवाड़ क्षेत्र में चले गए थे| अडिंग ग्राम से जाने के कारण उनको अडिंग बोला जाना लगा मारवाड़ में यह लोग नागौर जिले के बायड़ और जनाना और जोधपुर जिले के हरिया ढाना और रुड़कली में और कुछ घर सीकर जिले आलनपुर में निवास करते है यहां से अकाल के समय सन 1911 ईस्वी के आसपास कुछ परिवार मध्य प्रदेश के हरदा जिले में चले गए जो अब अबगांव कलां,आलनपुर,धनवाड़ा ,कुंजरगांव और देवास जिले में बागनखेड़ा ,गुर्जरगाँव में अडिंग कुंतल परिवार निवास करते है
रुड़कली गाँव जोधपुर में 19 वी सदी में केसोजी अडिंग जाट हुए उनके घर उदोजी नामक पुत्र का जन्म हुआ इनका विवाह बाल्यकाल में ही हो गया था यह विश्नोई संप्रदाय में दीक्षित हुए इनका सिर्फ 1 परिवार बिश्नोई जाट है जो वर्तमान में हरदा जिले में निवास करता है उदोजी के बारे में कहा जाता है एक बार सर्दियों में यह कुए से पानी निकाल रहे थे तभी इनको ठंडी हवा का झोका लगा तब इनको यह ज्ञान हुआ जब शरीर नश्वर है तो फिर इन्होने उस ही क्षण मोहमाया परिवार का त्याग कर बिना घर गए साधू बन कर मालवा चले गए यह घटना 1869 ईस्वी के आसपास की बताई जाती है| 4 साल बाद यह वापिस आये और इनकी पत्नी भी इनके साथ हरदा मालवा चली गयी इन्होने प्रहलाद चरित्र ,विष्णु चरित्र ,हरिरस वातपाती कक्का छत्तीसी नामक रचनाएँ लिखी है |

15 हेरुकिया तोमर (तंवर )
अनंगपाल तोमर द्वितीय के पौत्र अजयपाल देव के वंश में हरपाल देव नामक एक योद्धा हुआ| सल्तनत काल में हरिपाल देव तोमर को अजयगढ़ से कुछ आगे का क्षेत्र जागीरी में मिला था| राजा हरपाल देव का नाम  हेरूकपाल जगाओ ने अपनी पोथी में लिखा है|  राजा हरपाल की जागीरी जिसका नामकरण उसके नाम पर हेरुक किया गया था| आज यह ग्राम हेलक नाम से जाना जाता है| परन्तु ग्रामीण लोग आज भी हेलक की जगह हेरुक की बोलते है| दिल्ली के सुल्तान मोम्मद बिन तुगलक के समय हेरुक के लड़के की सुसराल रूपबास क्षेत्र में पहलवार गोत्र के जाटों में थी| उस समय उस क्षेत्र(रूपबास में) में डाकुओ का आतंक था| अपनी बहिन और बुआ की सहायता के लिए हेरुक से तंवर (तोमर) लोग रूपबास पहुचे यहाँ पहलवार गोत्र के जाटों के साथ मिलकर डाकुओ का युद्ध में खात्मा कर के यह लोग वही बस गए हेरुक से आने के कारण इनको हेरुकिया तोमर (तंवर ) कहा जाना लगा लेकिन इनका गौत्र तोमर(तंवर ही है| प्राचीन गाम हेरुक होने से इनको हेरुकिया तोमर बोल दिया जाता है
ऐसा स्थानीय लोगो दवारा बताया गया की खानवा के युद्ध में इस ग्राम के बहुत से वीरो ने राणा सांगा की तरफ से युद्ध में भाग लिया था| यहाँ से कुछ लोगो ने आगरा जिले में कई ग्राम आबाद किए गोहद के राणो की सेनाओ में भर्ती होकर यह लोग मध्य प्रदेश चले गये जहाँ इन्होने नीरपुरा गढ़ी बसाई नीरू तोमर के नाम से यह जगह नीरपुरा कहलाती है| आज भी इस ग्राम में हेरोकिया तोमर निवास करते है| रूपबास क्षेत्र में इनकी काफी आबादी है इनका मुख्य ग्राम जटमासी,नगला ,बिनुआ ,कंधौली ,जोतरोली आदि है |
शाहजहाँ के समय तक हेरुक ,चिमनी,नगला खुटेला जैसे ग्रामो में तोमर (तंवर) निवास करते थे| उस समय हेरुक में एक नागराज का आतंक था| उसके डसने से बहुत से तंवर जाट असमय काल के ग्रास बन चुके थे| एक साधू महात्मा ने इस नाग को तंत्र मन्त्र से पत्थर का बना दिया आज भी हेलक (हेरुक ) में नाग देवता का मंदिर बना हुआ है|साधू ने ग्राम के ठिकानेदार तोमरो को आदेश दिया की आप वंश वृद्धि चाहते हो तो ग्राम को छोड़ कर अन्यत्र बस जाओ तब से यह लोग आसपास रिश्तेदारी में जाकर बस गये आज भी हेलक में इनके दवारा निर्मित छतरियां मोजूद है| भरतपुर राजा ने इन उजाड़ पड़े ग्रामो में गुर्जरों को बसा दिया देश के आजाद होने पर पाकिस्तान से आये कुछ लोगो को हेलक में बसाया गया है|

 विजयरानिया तोमर
राजा रूद्र तोमर के वंशज आज भी सीकर जिले में हर्ष पर्वत के आसपास 50 से ज्यादा ग्रामो में निवास करते है| कुंवर रुद के पिता नरदेव को स्थानीय भाषा में नल्ह राजा भी कहा जाता है| महाराजा नरदेव तोमर दिल्ली के राजा थे|  जब नवी सदी में नरपाल ने चौहानों से इस खंडेलवाटी क्षेत्र को जीता तब राजा नरपाल ने विजयरानिया ( रण यानी युद्ध में विजयी ) की उपाधि धारण की इसी आधार पर उनके पुत्र रुद देव तोमर के वंशज  विजयरानिया कहलाते है |
रूद्र तोमर के वंशज विजय सिंह ने 1078 ईस्वी में विजरना खेडा में एक गढ़ की स्थापना की विजय सिंह के वंशजो ने 1178 ईस्वी में  लदाना  में एक किले का निर्माण करवाया  उसके पास ही अपनी कुलदेवी मनसा देवी के मंदिर का निर्माण करवाया 
जब दिल्ली पर गुलाम वंश का शासन था 12 वी सदी में लडाना दुर्ग का पुनः निर्माण किया  धनकोली आजतक नामक पुस्तक  के लेखक M.K आजाद के अनुसार जगसिंह सम्वंत  1503 (1446 ईस्वी) में हुआ जबकि जगा के अनुसार जग सिंह 1255 ईस्वी में गुलाम वंश के समय में हुआ था जग सिंह का युद्ध गुलाम वंश के सुल्तान  इल्तुतमिस के साथ हुआ था |
जगाओ के अनुसार हुमायूँ के समय में देवराज का शासन था परन्तु धनकोली आज तक के लेखक इसका नाम जगसिंह लिखते है| इसी  देवराज को जगसिंह भी कहा था  तो इस आधार पर यह जग सिंह द्वितीय हुआ देवराज हुमायूँ की सेना में कमांडर था| देवराज सिंह (जगसिंह तोमर) (विजयरानिया) 1446 ईस्वी में लड़ाना गढ़ में गद्दी पर बैठे थे| 
जिन्होंने 1453  ईस्वी में  पलसाना पर आक्रमण कर के उसपर अधिकार कर लिया  कछवाह राजपूतो के इतिहास के अनुसार उस समय देवराज ही इस क्षेत्र का जागीरदार था देवराज सिंह (जगसिंह तोमर) के दो विवाह हुए एक जाटनी से दूसरी किसी दूसरी अन्य जाति की लड़की थी | जाट रानी से उसके  12 पुत्र और गैर जाट माता का एक पुत्र रूपसी था| 
रूपसी के वंशज श्री माधोपुर में निवास करते है| देवराज सिंह (जगसी ) के छठा लड़का निहाल सिंह हुआ इनके वंशज तोलासिंह ने 1562 ईस्वी में आम जनता के लिए एक सरोवर का निर्माण धनकोली में करवाया जिसको आज तोलाना तालाब कहा जाता है इनके वंशज हेम सिंह ने 1638 ईस्वी में हेमनाना तालाब  बनवाया था |


                              


[1] मथुरा गजेटर पृष्ठ 336
[2] जनरल ऑफ़ था एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल पृष्ठ 344
[3] मथुरा मैम्यार पृष्ठ 340
[4]  पाण्डव गाथा पृष्ठ७० -८५ 

[5] उत्तरप्रदेश डिस्ट्रिक्ट गजेटर पृष्ठ -345