गोत्र

एक गोत्र में विवाह के बारे में

गोत्र का जाट समाज में अपना अलग महत्व है. जाट समाज में 10 500 लगभग गोत्र माने गये लकिन कुछ जगह गोत्र 5200 से ज्यादा माने गये है गोत्र उन लोगों को संदर्भित करता है जिनका वंशज एक आम पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा है.आज भी यदि कहीं संयुक्तपरिवार देखने को मिलते हैं तो वो है है जाट समाज जो गावो में बसा हुआ हैऔर जाटों में आज भी बड़े बूढों की बात को सम्मान मिलता है

व्याकरण के प्रयोजनों के लिये पणिनी में की गोत्र परिभाषा है 'अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्' (4.1.162), अर्थात 'गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली संतान्. गोत्र का संबंध रक्त से है, जाटों में एक गोत्र विवाह करना निषेध है
जाटों में एक गोत्र के पुरुष और स्त्री आपस में भाई बहिन माने जाते है एक गोत्र में विवाह करना ना तो सामजिक रूप से और नहीं वैज्ञानिक रूप से ठीक है

कुछ धार्मिक ट्रक जो सगोत्री विवाह का विरोध करते है

मत्स्यपुराण (4/2) में संगोत्रीय शतरूपा के विवाह पर आश्चर्य और खेद प्रकट किया गया है।

गौतम धर्म सूत्र (4/2) में भी असमान गोत्र विवाह का निर्देश दिया गया है।
(असमान प्रवरैर्विगत)
आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है- ‘संगोत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्’ (समान गोत्र के पुरूष को कन्या नहीं देना चाहिए)।

सलक्षमा यद्विषुरुषा भवाति”
ऋ10/10/2 (“सलक्ष्मा सहोदर बहन से पीडाप्रद संतान उत्पन्न होनेकी सम्भावना होती है”)

“ पापमाहुर्य: सस्वारं निगच्छात”
ऋ10/10/12 ( “जो अपने सगे बहन भाई से संतानोत्पत्ति करते हैं, भद्र जन उन्हें
पापी कहते हैं)

इस विषय पर स्पष्ट
जानकारी पाणिनी कालीन भारत से भी मिलती है.
अष्टाध्यायी के अनुसार “ अपत्यं
पौत्र प्रभृति यद गोत्रम् “,

एक पुरखा के पोते,पडपोते आदि जितनी संतान होगी वह एक गोत्र की कही जायेगी. यहां पर सपिण्ड का उद्धरण करना आवश्यक हो जाता है.

“ सपिण्डता तु पुरुषे सप्तमे विनिवर्तते !
समानोदकभावस्तु जन्मनाम्नोरवेदन !!

मनु: 5/60

“सगापन तो सातवीं पीढी मेंसमाप्त हो जाता है. और घनिष्टपनजन्म और नाम के ज्ञात ना रहने पर छूट जाता है.”

ओशो का कथन है कि स्त्री-पुरुष जितनी अधिक दूरी पर विवाह करते हैं उनकी संतान उतनी ही अधिक प्रतिभाशाली और गुणी होती है। उनमें आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएं कम से कम होती हैं। उनके गुणसूत्र बहुत मजबूत होते हैं और वे जीवन-संघर्ष में परिस्थितियों का दृढ़ता के साथ मुकाबला करते हैं।

वैज्ञानिक तौर पर :

निकट सम्बन्धियों में शादी से इनब्रीडिंग होती है । इनब्रीडिंग से आगामी पीढ़ियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । इसलिए इसे वैज्ञानिक तौर भी पर अनुमति नहीं होती ।

आधुनिक जेनेटिक अनुवांशिक विज्ञान के अनुसार inbreeding multiplier अंत:प्रजनन से उत्पन्न विकारों की सम्भावना का वर्धक गुणांक इकाई से यानी एक से कम सातवीं पीढी मे जा कर ही होता है.

गणित के समीकरण के अनुसार,अंत:प्रजनन विकार गुणांक= (0.5)raised to the power N x100, ( N पीढी का सूचक है,) पहली पीढी मे N=1,से यह गुणांक 50 होगा, छटी पीढी मे N=6 से यह गुणांक 1.58 हो कर भी इकाई से बडा रहता है. सातवी पीढी मे जा कर N=7 होने पर ही यह अंत:पजनन गुणांक 0.78 हो कर इकाई यानी एक से कम हो जाता है.मतलब साफ है कि सातवी पीढी के बाद ही अनुवांशिकरोगों की सम्भावना समाप्तहोती है.
यह एक अत्यंत विस्मयकारी आधुनिक विज्ञान के अनुरूप सत्य है जिसे हमारे ऋषियो नेसपिण्ड विवाह निषेध कर के बताया था.
सगोत्र विवाह से शारीरिक रोग ,अल्पायु , कम बुद्धि, रोग निरोधक ,क्षमता की कमी, अपंगता,विकलांगता सामान्य विकार होते हैं. भारतीय परम्परा मे सगोत्र विवाह न होने का यह भी एक परिणाम है कि सम्पूर्ण विश्व मे भारतीय सब से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं.

सपिण्ड विवाह निषेध भारतीय वैदिक परम्परा की विश्व भर मे एक अत्यन्त आधुनिक विज्ञान से अनुमोदित व्यवस्था है.

पुरानी सभ्यता चीन, कोरिया, इत्यादि मे भी गोत्र /सपिण्ड विवाह अमान्य है. परन्तु मुस्लिम और दूसरे पश्चिमी सभ्यताओं मे यह विषय आधुनिक विज्ञान के द्वारा ही लाया जाने के प्रयास चल रहे हैं.
आधुनिक अनुसंधान और सर्वेक्षणों के अनुसार फिनलेंड मे कई शताब्दियों से चले आ रहे शादियों के रिवाज मे अंत:प्रजनन के कारण ढेर सारी ऐसी बीमारियां सामने आंयी हैं जिन के बारे वैज्ञानिक अभी तक कुछ भी नही जान पाए हैं
यदि हम भारत के विषय में बात करे तो इसका सबसे अच्छा उदाहरण  पारसी लोग है यह लोग एक गोत्र में शादी करते जिस के कारण आज इनकी नस्ल लुप्त होने के कगार पर पहुच चुकी है पारसी समाज ने इस समस्या का हल निकाले के लिए सूरत से मुहीम शुरू कि और हर पारसी जोड़े को शादी के बाद आर्थिक मदत की
दूसरा उदाहरण  एक टीवी सर्वे का जिसके अनुसार भारत में किन्नर (हिजड़े ) सिर्फ उन्ही जाति  या धर्मो के लोगो के घर में जन्म लेते है जहां पर सगोत्री विवाह होता है

गोत्रों का महत्व: जाति की तरह गोत्रों का भी अपना महत्व है। 1. गोत्रों से व्यक्ति और वंश की पहचान होती है। 2. गोत्रों से व्यक्ति के रिश्तों की पहचान होती है। 3. रिश्ता तय करते समय गोत्रों को टालने में सुविधा रहती है। 4. गोत्रों से निकटता स्थापित होती है और भाईचारा बढ़ता है। 5. गोत्रों के इतिहास से व्यक्ति गौरवान्वित महसूस करता है और प्रेरणा लेता है।

एक ही गोत्र में विवाह भारतीय हिन्दू संस्कृति में हमेशा एक विवाद एक विवाद का विषय रहा है व नयी ओर पुरानी पीड़ी में टकराव का कारण है | सामाजिक दृष्टि से सगोत्र विवाह अनुचित है क्योकि एक ही गोत्र में जन्मे स्त्री व पुरुष को बहिन व भाई का दर्जा दिया जाता है | वैज्ञानिक दृष्टीकोण भी इसके पक्ष में है कि एक बहिन व भाई के रिश्ते में विवाह सम्बन्ध करना अनुचित है | विज्ञान का मत है आनुवंशिकी दोषों एवं बीमारियों का एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी में जाना यदि स्त्री व पुरुष का खून का सम्बन्ध बहुत नजदीकी है | स्त्री व पुरुष में खून का सम्बन्ध जितना दूर का होगा उतना ही कम सम्भावना होगी आनुवंशिकी दोषों एवं बीमारियों का एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी में जाने कि | दूसरे शब्दों में होने वाले बच्चे उतने ही स्वस्थ व बबुद्धिमान होंगे | शायद भारत के ऋषि मुनि वैज्ञानिक भी थे जिन्होंने बिना यंत्रो के ही यह सब जन लिया था तथा यह नियम बना दिया था खून का सम्बन्ध जितना दूर का हो उतना उतम |विजातीय विवाह भी एक तरह से गोत्र छोडकर विवाह करने जैसा है व उचित है | सगोत्र विवाह अनुचित ही नहीं परिवार का अंत करने वाला कदम होता है नयी पीड़ी को इसे समझना चाहिए |

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