जय माँ मन्शा कि

जय माँ मन्शा देवी की
नीचे दो चित्र है एक तो सोंख के अनंगपाल तोमर के किले के अवशेष है दूसरा मन्शा देवी के मंदिर का

गोपालपुर गाव मथुरा जिले की गोवर्धन तहसील में है यह गाव रसूलपुर पंचायत में आता है गोपालपुर गॉव मे पाण्डुवंशी जाटों कि कुल देवी मंशा का मन्दिर है मंदिर गाव से पूर्व दिशा में करीब 500 मीटर दूर है इस गाव को दिल्ली के राजा गोपालदेव सिंह तोमर ने बसाया था उन्ही के नाम पर इस जगह को गोपालपुर बोलते है ग़ोपाल देव सिंह तोमर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के पड़ दादा ओर महाराजा सलकपाल देव सिंह तोमर के पिताजी थे सलकपाल देव तोमर ने बाघपत क्षेत्र मे तोमरो के 84 गाव बसाये थे जिनको सलकलान तोमर कहा जाता है इन गांवों कि खांप को देश खांप कहते है

गोपालपुर गाव मे मन्दिर का निर्माण दिल्ली के पाण्डुवंशी राज़ा अनंगपाल तोमर ने करवाया था जब महाभारत के युद्ध मे विजय प्राप्त करने के लिए पाण्डुवंशी अर्जुन ने देवी को प्रसन्न किया था जब से ही योगमाया (भगवान कृष्ण बहिन ) पाण्डुवंशियो कि कुल देवी है इस योगमाया का मन्दिर तोमरो के शासन काल मे अवशेष आज भी मौज़ूद है मनोकामनाएँ पूरी करने के कारण ही यह देवी मंशा देवीं के रुप मे जानी गयी इस देवी को सिर्फ़ पाण्डुवंशी तोमर वंशी कुंतल जाट ही अपनीं कुल देवी के रुप मे आज तक मानते है इस देवी के प्राचीन मन्दिर का निर्माण अनंगपाल तोमर ने तोमरवंशियो कि खुटैल पटटी बसा कर किया था समय के साथ मुस्लिम हमलो ने गोपालपुर गाव को नष्ट कर दिया बाद मे कुंतल जाटों ने गाव को पुन बसाया गया इस लिए यह गाँव दूसरे कुंतल जाटों के गाँवो की तुलना में छोटा गाव पर एतिहासिक गाँव है इस मन्दिर मे स्थापित प्राचीन मूर्ति 90 साल पहले चोरी हो थी जो आज मथुरा के म्यूजियम मे रखीं हुई है अब कि मूर्ति कि प्राण प्रतिष्ठा कुंतल जाटों ने आपसी सहयोग कि है इस मन्दिर का पुजारी नगला छींगा (झींगा ) गाव का चौबे गोत्रं का एक ब्राहमण है
गोपालपुर गाव के पास ही के सोनोट गाव में भी कुन्तलों के एक किले का अवशेष आज भी मौजूद है जिसका निर्माण सीताराम कुंतल ने करवाया था

पाण्डववंशी कुंतल(खुटैल ) जाट

तोमर (तंवर) जाट पांडवो के वंशज है मथुरा में तोमरो के वंशजो को कुंतल (कुंतीपुत्र) कहते है महाभारत के महावीर धनुर्धर अर्जुन कुंती पुत्र होने के कारण ही अर्जुन को कोन्तेय कहलाते थे । इसलिए ही तोमर जाट को मथुरा कोन्तेय कहा जाता था । अर्जुन के दस नामो में से एक नाम कोन्तेय था कुंती का एक नाम पृथा था, इसलिए अर्जुन 'पार्थ' भी कहलाए। अर्जुन बाएं हाथ से भी धनुष चलाने के कारण 'सव्यसाची' और उत्तरी प्रदेशों को जीतकर अतुल संपत्ति प्राप्त करने के कारण 'धनंजय' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। कोन्तेय शब्द बाद में कुंतल बन गया । इस अर्थ कुंती पुत्र होता है कुंतल जाट को मुगल काल मे अपनी दबंग छवि के कारण खुटैला कहा जाने लगा
पांडव वंशी तोमर जाट का दिल्ली में राज्य था तो राज्य क्षेत्र मे हीं था इसलिय तोमर लोग मथुरा क्षेत्र में बस गये थे । कुंती के वास्तविक पिता शुरसेन थे । कुन्ति-भोज तो वे लोग थे जिनके कुन्ति गोद थी । इसलिए वो पृथा से कुंती कहलाने लगी थी । तोमर जाटो ने अपनी कुल देवी योगमाया (कृष्ण की बहिन) का मंदिर गोपालपुर  में बनवाया था । जो मनोकामना पूर्ण करने के कारण ही मनसा देवी कहलाती है । जो आज भी तोमरवंशी कुंतल जाटो की कुल देवी है । यह मंदिर दिल्ली महाराजा गोपाल देव तोमर के समय में बनाया गया था, इसलिए इस जगह का नाम गोपालपुर है । सलकपाल तोमर दिल्ली महाराजा गोपाल देव के पुत्र थे जो 976 ई में दिल्ली के राजा बने । जिनका दिल्ली पर 25 साल तक राज रहा । बाद में उन्होंने अपने भाई को प्यार वश अपना राज दे दिया, तब जयपाल राजा बना । सलकपाल तोमर ने बागपत जिले में बड़ौत क्षेत्र में तोमर जाटो कि चौरासी की चौधराठ शुरू की । उनके वंशज तोमरो के आज इस क्षेत्र में 200 से ज्यादा गाँव है । उनके वंशजो को आज सलकलान तोमर भी कहा जाता है ।

कुन्तलो के मथुरा में बसने का इतिहास से [पता चलता है कि अनंगपाल-तृतीय (अर्कपाल) का दिल्ली से राज्य खत्म हो गया तो अनंगपाल तोमर के सगे परिवार के लोगो ने पृथला (कुंती / पृथा के नाम पर) गाँव पलवल जिले में बसाया जो आज भी है । राजा अनंगपाल के सगे परिवार के लोग फिर मथुरा क्षेत्र में चले गए । कुछ परिवार के लोगो ने कुंतल पट्टी बसाकर, सौख क्षेत्र की खुटेल (कुंतल) पट्टी में महाराजा अनंगपाल की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई ओर अनंगपाल तोमर के किले का पुनः निर्माण करवाया यह दोनो स्थान आज भी देखे जा सकते है ।

जब  तोमर जाटों का राज्य  ख़त्म हो  गया तो उन में  कुछ अनंगपाल तोमर के साथ बृज क्षेत्र  में आगए और यहाँ सोंख गाँव में अनंगपाल तोमर ने एक किले का निर्माण करवाया जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते है । इसे बाद में उसके ही एक वंशज अहलाद सिंह  तोमर  ( प्रह्लाद ) ने सोन ,सोंसा और सोनोट गाव बसाये । सोन गाँव का नाम अह्लद  ने अपने पूर्वज सोहनपाल तोमर के नाम किया जिसमे से सोनोट गाम गढ़ी को आज भी देखा जा सकता  गोपालपुर में कुलदेवी मन्शा माँ का मंदिर है और एक छोटी गढ़ी जो अनंगपाल के पूर्वज गोपाल देव तोमर ने बनवाई थी

मथुरा  गज़ेटियर [Mathura A Gazetteer] (1911 )के पेज -6,16,21 के अनुसार 
अल्हाद ( प्रह्लाद)तोमर के पाँच लड़के थे उसके पांच पुत्र थे - (1) आसा, (2) आजल, (3) पूरन, (4) तसिया, (5) सहजना
इन्होंने अपनी राज्य को जो दस-बारह मील के क्षेत्रफल से अधिक न रह गई थी आपस में बांट लिया और अपने-अपने नाम से अलग-अलग गांव बसाये। सहजना गांव में कई छतरियां बनी हुई हैं। तीन दीवालें अब तक खड़ी हैं ।आजकल सोंख पांच पट्टियों में बंटा हुआ है - लोरिया, नेनूं, सींगा, एमल और सोंख। यह विभाजन गुलाबसिंह ने किया था।




ब्रिज क्षेत्र में छोटे गाँवो के लिए ब्रिज में थोक या पूरा शब्द का प्रयोग है । लेकिन कुनतल  प्राचीन गावों में इन्होने दिल्ली के तोमर राजाओ की प्रशासनिक शब्दवाली का प्रयोग किया है जिस में इस के पट्टी का प्रयोग हुआ है

F. S ग्राउस  की मथुरा डिस्ट्रिक्ट मेमोरी चैप्टर - 12  (F.S.Growse की  Mathura A District Memoir Chapter-12 ) के अनुसार  

मगोर्रा (मगोरा ) गाँव को भी मगोरसिंह तोमर ने बसाया था ।मगोरसिंह तोमर के चार लड़के थे अजीत सिंह ,घाटम सिंह ,जाजम सिंह ,राम सिंह , अपने लड़को के नाम पर ही इस गाव की पट्टियो के नाम अजित पट्टी ,घाटम  पट्टी ,जाजम पट्टी, राम पट्टी है



राजा हाथीसिंह
अनंगपाल के मथुरा सेमायर्स’ पढ़ने से पता चलता है कि हाथीसिंह कुंतल ने सोंख पर अपना अधिपत्य जमाया था पूर्वजो कि कीर्ति को बृज क्षेत्र मे फैलाया था  -

मि .ग्राउस लिखते है 
तोमरवंशी हाथी सिंह के समय मे उनका मथुरा राज्य पांच भागों में बटा हुआ था - अडींग, सोसा, सांख, फरह और गोवर्धन




सीताराम (कुन्तल)
पेंठा नामक स्थान में जो कि गोवर्धन के पास है, सीताराम (कुन्तल) ने गढ़ निर्माण कराया था।
पुष्करसिंह

पुष्करसिंहअथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे। पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है।
चौधरी सत्यपाल सिंह जी
दिल्ली विजय समय में कुछ कुंतल जाट गाजियाबाद ओर गौतमबुद्ध नगर मे बस गये थे उन्ही के वंशजो छिपियाना गाव के सत्यपाल सिंह जी कर्मठ समाज सेवी ओर पत्रकार है जाट आरक्षण आंदोलन मे इनका योगदान अतुलनीय रहा है

मथुरा जिले खुटैल पाल मे 70 से ज्यादा गाव है गावो गणना पहले खेड़ो थीं भरतपुर जिले मे इनके 8 खेड़े माने जाते है जबकि गॉवों कि संख्या 8 से ज्यादा है
बछगांव, बंडपुरा,बेरू , बोरपा ,गुलाल ,जटौली ,मगोर्रा ,कोथरा ,नन्नुपट्टी ,लोरिया,औल , नंगला भूरिया नंगला शीशराम , पेंठा ,पुरा ,सबला ,सेरा ,सोन सौंख सोनोठ ,धन्ना तेजा , अह्मा ,नंगला बंडपुरा ,नगला खुटैल ,नंगला कुंतल ,नंगला झींगा , नंगला अबुआ ,भवनपुरा, मुडेसी,उमरी ,नाहरौली ,समसपुर ,पाली डूंगरा,पांडर ,नीमगॉव ,जाजन पट्टी जाजम पट्टी,सीन्गुला ,कोंसी ख़ुर्द ,कोकेरा, पीलुआ ,सादिकपुर ,धर्मपुर,रसूलपुर
आगरा में आज सिकोरोदा गाव में यह अपना गोत्र के रूप में पाण्डव लिखते है
दिल्ली विजय समय में कुछ कुंतल जाट गाजियाबाद ओर गौतमबुद्ध नगर मे बस गये थे
रसुपुर , छिपियाना,जटवाड़ा ,सदरपुर ,काजीपुरा ,नसीरपुर
खेती योग्य भूमि की तलाश में कुछ जाट मुरादाबाद में बस ये उनके गाव रोंढा ,लालटीकर ,सफनी

भरतपुर मे 8 खेड़े माने जाते है
अभौर्रा,गुनसारा ,अजान ,ताखा , बुरावई, सांतरूक (सातरुख़), तालफरा ,जाटोली रथमान, रारह , नंगला खुटैला ,झारकई,नगला चौधरी

सोंख गाव मथुरा से आकर कुछ जाटों ने करौली कुडग़ाव ओर डफलपुर
अलवर जिले कि रामगढ तहसील मे खेड़ी गाव बसाया था





No comments:

Post a Comment