tomars

तोमर तंवर एक ही गोत्र पाण्डुवंशी अर्जुन के वंशज है इस गोत्र को कुंती पुत्रा अर्जुन के नाम पर ही कुंतल जाता है तोमर चंद्रवंशी गोत्र है 

तोमर शब्द का मतलब अस्त्र हथियार से है जिसका उपयोग अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में किया था यह दिव्य हथियार उसे माँ दुर्गा से प्राप्त हुआ था इस हथियार को चलने के कारण ही अर्जुन के वंशज तोमर कहलाये अस्त्र उस हथियार को कहते हैं, जिसे मन्त्रों के द्वारा दूरी से फेंकते हैं। वे अग्नि, गैस और विद्युत तथा यान्त्रिक उपायों से चलते हैं।कर्नल टॉड ने तो पूरी जाट जाति को इन 36 राजवंशों में से एक राजवंश माना है|। कर्नल टाड ने इसी बात को इस भांति लिखा है- “जिन जाट वीरों के प्रचण्ड पराक्रम से एक समय सारा संसार कांप गया था, आज उनके वंशधर खेती करके अपना जीवन-निर्वाह करते हैं।“पांडवो का लाक्षागृह ( महाभारत काल का ) आज भी बरनावा गाँव है जो तोमर जाटो का गाँव है दिल्ली के चारो तरफ तोमर जाटो की एक बड़ी आबादी आज भी निवास करती है



तोमरो का नाम का जिक्र वायु पुराण ,और विष्णु पुराण में भी हैवायु पुराण के अनुसार नलिनी नदी मध्य एशिया के बिन्दसरा से निकल कर तोमर और हंस लोगो की भूमि से प्रवाहित होती है

पाण्डुवंशीयो कि गौरव गाथा महाभारत के विभिन्न विभिन्न श्लोकों में तोमर जाट कुल का उल्लेख किया

.शल्यपर्व तोमर (IX.44.105) महाभारत में भीष्म पर्व, महाभारत / बुक छठी 68 श्लोक में उल्लेख तोमर (VI.68.17) अध्याय के रूप में उल्लेख है.

''शक्तीनां विमलाग्राणां तॊमराणां तदायताम । निस्त्रिंशानां च पीतानां नीलॊत्पलनिभाः परभाः" ।। (VI.68.17)

महाभारत के भीष्म पर्व (10.68 VI.) में तोमर पाण्डुवंशी जाटों का नाम हैमहाभारत जनजाति (तामर) Tamara 'भूगोल' महाभारत (10.68 VI.) में उल्लेख किया है,

" तामरा हंसमार्गाश च तदैव करभञ्जकाः । उथ्थेश मात्रेण मया देशाः संकीर्तिताः परभॊ "।। (VI. 10.68)

कर्ण पर्व महाभारत बुक आठवीं के 17 अध्याय विभिन्न श्लोकों VIII.17.3, VIII.17.4, VIII.17.16, VIII.17.20, VIII.17.22, VIII.17.104 आदि में तोमर का उल्लेख पांडु के वंशज रूप में उल्लेख किया हैं.
"मेकलाः कॊशला मथ्रा थशार्णा निषधास तदा । गजयुथ्धेषु कुशलाः कलिङ्गैः सह भारत "।। (VIII.17.3)

"शरतॊमर नाराचैर वृष्टिमन्त इवाम्बुथाः । सिषिचुस ते ततः सर्वे पाञ्चालाचलम आहवे" ।। (VIII.17.4)

"थिवाकरकरप्रख्यान अङ्गश चिक्षेप तॊमरान ।नकुलाय शतान्य अष्टौ तरिधैकैकं तु सॊऽचछिनत "।। (VIII.17.16)

" मेकलॊत्कल कालिङ्गा निषाथास ताम्रलिप्तकाः । शरतॊमर वर्षाणि विमुञ्चन्तॊ जिघांसवः" ।। (VIII.17.20)

"ततस तथ अभवथ युथ्धं रदिनां हस्तिभिः सह । सृजतां शरवर्षाणि तॊमरांश च सहस्रशः "।। (VIII.17.22)

"अपरे तरासिता नागा नाराचशततॊमरैः । तम एवाभिमुखा यान्ति शलभा इव पावकम "।। (VIII.17.104)

तोमर (तंवर ) वंश की उपत्ति के लिए एक दोहा है जो यह है

अर्जुन के सूत सो भये अभिमन्यु नाम उदार !
तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार !





तोमर तंवरों कि दिल्ली पर राज्य कि शान में कहा जाता था
जद कद दिल्ली तंवरा तोमरा
दिल्ली तो तोमरो कि और तोमरो से गयी तो तुर्को कि

नीचे दुर्गा कवच पाठ का श्लोक निचे दिया है जिस में तोमर हथियार का वर्णन है यह सभी दुर्गा के हथियार है
एक शंखं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं व शार्गंमायुधमुत्तमम्।।



तंवर उपाधि तोमर जाटों को मिली थी तंवर का मतलब सर्व श्रेष्ठतम योद्धा सेहै उस समय महाराज अनंगपाल(विल्हण देव तोमर ) दिल्ली के राजा थे तब से तंवर उपाधि कुछ तोमर जाटों के दुआरा काम में ली जा रही है तोमर गोत्र का ही अपभ्रश तंवर है इतिहासकारों ने दिल्ली के तोमर राजाओ के लिए कही पर तोमर तो कही पर तंवर शब्द का उपयोग किया है तोमरो का दिल्ली पर शासन था उनकी शान में यह कहावत प्रचलित थी की
'' जद कद दिल्ली तंवरा तोमरा ''

तोमर (तंवर ) 10 उपगोत्र है जिनमे विवाह सम्बन्ध नहीं होते है -
शिरा तंवर -शिरा तंवर अनंग पाल तोमर के वन्सज है जिनके आज 12 से ज्यादा गाँव गुहला और पेहोवा के पास है कुछ गाँव पंजाब में है ।

सलकलान शाखा- सलअक्शपाल सलकपाल तोमर के नाम पर ही बाघपत के तोमर सलकलान नाम से प्रसिद्ध है यह दिल्ली के राजा और अनगपालसिंह तोमर के दादा थे सलअक्शपाल तोमर ने 84 गांवों के 84 तोमर देश खाप की स्थापना की , राजा सलअक्शपाल तोमर की समाधि स्थल बदोत नई ब्लॉक कृषि प्रसार विभाग से सटे दिल्ली सहारनपुर रोड पर है.

सुलख-सुलख तोमरो को रोहतक , भिवानी जिले में कहते है इनको वह पर सुलखलान भी कहते है

तुर - पंजाबी भाषा में तोमर को तूर बोला जाता है

चाबुक-तोमर जाटो ने चाबुक से ब्राह्मण को पीटा था इसलिए अलीगढ में इन लोग को चाबुक के रूप में जाने जाते है.अलीगढ कि पिसावा रियासत तोमर जाटों कि थी

पार्थ- अर्जुन का ही दूसरा नाम है भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को पार्थ ही सम्बोदन दिया था । महाभारत के युद्ध में श्री भगवत गीता का ज्ञान देते समय, इसलिए कुछ तोमर पार्थ को उपनाम के रूप में काम लेते है क्योकि तोमर जाट पाण्डुवंशी अर्जुन के ही वंशज है । शूरसेन कुंती के वास्तविक पिता थे कुंती के बचपन का नाम पृथा था| इसलिए अर्जुन को पार्थ ( पृथा पुत्र ) भी कहा जाता है । पृथा को बचपन में राजा कुन्तीभोज ने गोद ले लिया था । इसलिए पृथा का नाम कुन्ती रख दिया गया था। कुंती के नाम पर पांडवो को कोंतेय भी कहा जाता है| तोमर जाटो को कोंतेय से ही कुंतल कहा जाने लगा.

भिण्ड तोमर (भिण्डा )- तोमर जाट जो भिण्ड से आये थे भिण्ड मध्य परदेश में एक जिला हैउन्हें भिण्ड तोमर बुलाया जाता है जयपुर जिले में शाहपुरा तहसील में भिंडा बोलते है बिजनौर जिले में यह अब सिर्फ तोमर ही लिखते है हाजीपुर इन्ही भिंडा तोमर जाटों का गॉव है

पांडू- तोमर जाट पांडू पुत्र अर्जुन के वंशज होने के कारन पांडू या पांडव भी कहते है तोमर जाटो के पांडु वंशी होने के कारनपांडव जाट टाइटल कुछ तोमर आगरा और जयपुर में पांडू और पांडव उपनाम के रूप में काम लेते है

कुंतल - महावीर धनुर्धर अर्जुन कुंती पुत्र होने के कारण ही अर्जुन को कोन्तेय कहते है । इसलिए ही तोमर जाट को मथुरा कोन्तेय कहा जाता था । कोन्तेय शब्द बाद में कुंतल बन गया । तोमर जाट का दिल्ली में राज्य था तो वो लोग मथुरा क्षेत्र में बस गये थे । मथुरा कुंती के वास्तविक पिता शुरसेन थे । कुन्ति-भोज तो वे लोग थे जिनके कुन्ति गोद थी । इसलिए वो पृथा से कुंती कहलाने लगी थी । तोमर जाटो ने अपनी कुल देवी योगमाया (कृष्ण की बहिन) का मंदिर गोपालपुर जाजम पट्टी में बनवाया था । जो मनोकामना पूर्ण करने के कारण ही मनसा देवी कहलाती है । जो आज भी तोमरवंशी कुंतल जाटो की कुल देवी है । यह मंदिर दिल्ली महाराजा गोपाल देव तोमर के समय में बनाया गया था, इसलिए इस जगह का नाम गोपालपुर है । सलकपाल तोमर दिल्ली महाराजा गोपाल देव के पुत्र थे जो 976 ई में दिल्ली के राजा बने ।

इसलिए तोमर और तंवर एक ही गोत्र है कुछ तोमर वंशज कि शाखाएँ आज जो अलग गोत्र बन गयी है जैसे मोटे ,जावला, तुशिर,अंतल ,सहराव ,जंघाला दुआरा कभी कभी अपना मुल वंश तंवर काम में लिया जाता है जिस से यह भ्रम पैदा होता है
जांटी गाँव सोनीपत से कुछ तुसार गोत्र के जाट सुनहेडा गाँव जिले बागपत में बस गये थे अब वो खुद को तावर (तंवर) कहते है वो मूल रूप से तुषार गोत्र के जाट है आज यह शाखाएँ अलग गोत्र है और तोमर गोत्र में विवाह करते है
लेकिन तंवर और तोमर एक ही गोत्र के दो नाम है

चन्द्रवंश
मनु से लेकर विक्रमादित्य तक कि तोमर जाटों कि वंशावली

मनु | इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप |

भरत- हस्ती- शान्तनु -विचित्रवीर्य - पांडु- पांडवों (युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन, सहदेव, नकुल)- युधिष्ठिर- अभिमन्यु -परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित था)-जनमेजय- धर्मदत्त - मनजीत (निशस्त्चक )- चित्ररथ- दीपपाल -उग्रसेन - सुसेन- भुवनपतिदेव -रणजीतदेव -रक्षकदेव -भीमसैन -नरहरिदेव -सुचिरथ -सुरसेन -पर्वतराज -मधुकदेव -सोनचीर देव -भीष्मदेव -नरहरिदेव द्वतीय -पुरनसाल -सारंगदेव -उदयपाल - अभिमन्यु 2 -धनपाल --भीमपाल -लक्ष्मीदेव -भानक राज -मुरसैन -आंनगशायी -हरजीतदेव -सुलोचनदेव -इंद्रपाल -पृथ्वीमल-अमिपाल -दशरथ -वीरसाल -अजीतसिंह -सर्वदत्त -शेरपाल -वीरसेन -महिपाल - शत्रुपाल -सैंधराज -तेजपाल -मानिकपाल -कामसेन -शत्रुमर्दन -जीवन जाट -वीरभुजंग या हरिराम- वीरसेन (द्वितीय) -उदयभट या आदित्यकेतु- थिमोधर -मह्रिषी पाल -समरिच्चपाल -जीवनराज -रुद्रसेन -अरिलक -राजपाल

इंद्रप्रस्थ राजा राजपाल राजा कि हत्या कुमायु नरेश सुखवंत ने कर दी तब उनके भाई उज्जैनी नरेश वीर विक्रमादित्य तोमर (जिनके नाम पर विक्रम संवंत है पहले तंवर संवंत बोला जाता था ) ने सुखवंत को मारकर सत्ता का केंद्र उज्जैनी को बनाया विक्रमादित्य राजपाल के लड़को को अपने साथ लेगया इनके वंशज जीतपाल का आईने अकबरी में उल्लेख है जिसका शासनकाल 593 ई में है जिसके वंश में कुवरपाल जाट पैदा हुए जीके विल्हनदेव (अनगपाल) पैदा हुए

अनंगपाल (विल्हण देव ) ने 736में दिल्ली को दुबारा बसाया
इसके बारे में कथा प्रचलित है तोमर जाट युद्ध के पंजाब थे वहाँ से लोटे समय जाट नरेश विल्हण देव (अनगपाल सिंह तोमर ) कि शिकार करने कि इच्छा हुई और शिकार से लोटे समय रास्ता भटक गये और रात में खण्डर में रुके जाट नरेश विल्हण देव (अनगपाल सिंह तोमर ) के सपने में कुंती आयी और उनके जगह इंद्रप्रस्थ है तुमारे पूर्वजो का दुबारा बसाओ राजा ने यह सपना अपने पुरोहितो को बताया इस तरह तोमर नरेश ने सत्ता का केंद्र दिल्ली को बनाया दिलेराम जाट के नाम पर यह जगह दिल्ली नाम से प्रसिद्ध हुई विल्हण देव ) ने 736में दिल्ली को दुबारा बसाया यह क्षेत्र उस समय किसी राज के राज्य का अंग नहीं था इसलिए इस को अनग बोला जाता था इसके राजा पालनहार होने के कारन विल्हनदेव को अनंगपाल बोला गया इस उपाधि को बाड़े के बहुत से राजाओ ने काम में लिया जैसे अर्कपाल को अनंगपाल तित्रिय बोला जाता है

विल्हण देव से तेजपाल 2 तक कि वंशावली

विल्हण देव (अनगपाल सिंह तोमर )-वासूदेव -गंगदेव (गांगेय)-पृथ्वीपाल (प्रथम देव ) -जयदेव (सहदेव )-नरपाल- उदयराजदेव -आपृच्छ देव -पीपलराजदेव (वछराज )-रघुपाल (रावलु )-तिल्हणपाल देव -गोपाल देव -सलअक्शपाल, (सकपाल,सलक्षणदेव )-जयपाल (सलकपाल का भाई )
-कवरपाल -अनंगपाल द्वितीय-तेजपाल प्रथम -विजयपाल -मदनपाल -पृथ्वीराज पाल -चाड पाल -तेजपाल -2

जन्‍मेजय द्वारा विश्‍व विख्‍यात सर्प यज्ञ कर सर्प प्रजाति को ही वंश नाश कर समाप्‍त करने हेतु आयोजित यज्ञ और उसमें भगवान श्री हरि विष्‍णु द्वारा स्‍वयं आकर सर्प जाति की रक्षा तथा तोमर वंश के लोगों को सर्प द्वारा न डसने तथा डसने पर असर न होने के वरदान की त्रिवाचा की कथा जगत प्रसिद्ध है ।


इसी राजवंश के आगे बढ़ते इन्‍द्रप्रस्‍थ दिल्‍ली के राजसिंहासन पर महाराजा अनंग पाल सिंह तोमर सिंहासनारूढ़ हुये (736 AD), आगे महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर III ने दिल्‍ली से आकर चम्‍बल नदी के किनारे ऐसाह नामक स्‍थान (वर्तमान में मुरैना जिला ) पर अपनी नई राजधानी बनाई(1190 A.D.)
सिवाना
डॉ दशरथ शर्मा री ख्यात, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर, संवत 2005, पेज 7Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209 नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203के अनुसार

राजस्थान के सिवानी बाड़मेर के तोमर (तंवर) सरदार नरसिंह जाट थे । उस समय पूला सारण जाट भाड़ंग का शासक था नरसिंह तंवर का ससुराल सिद्धमुख के पास ढाका गाँव में ढाका जाटों में था विक्रम संवत 1545 में धाणसिया से गणगौर के मगरिया में से मलकी जाटनी (पूला सहारण कि पत्नी ) को गोदारा पट्टी के मुखिया पाण्डुजी गोदारा जाट के पुत्र नकोदर द्वारा ले जाने से इन जाट जनपदों में छह जनपदों का गोदारा जनपद के साथ भेंटवाले धोरे (सोन पालसर से उत्तर-पश्चिम और राजासर पंवारान से पश्चिम में 10 कि.मी.) पर संघर्ष हुआ व लादडिया को जलाए जाने से पाण्डुजी गोदारा ने जांगलू इलाके में पहले से रह रहे राव बीका की सहायता ली।
इधर छह पट्टी के जाटों ने सिवानी के नरसिंह जाट (तंवर) से सहायता ली इस युद्ध को मलकी और लाघड़िया युद्ध बोलते है 1487 में लड़ा गया युद्ध था तंवर नरसिंह जाट बड़ा वीर था. वह अपनी सेना सहित आया और उसने पांडू के ठिकाने लाघड़िया पर आक्रमण किया. उसके साथ सारण, पूनिया, बेनीवाल, कसवां, सोहुआ और सिहाग सरदार थे. उन्होंने लाघड़िया को जलाकर नष्ट कर दिया. लाघड़िया राजधानी जलने के बाद गोदारों ने अपनी नई राजधानी लूणकरणसर के गाँव शेखसर में बना ली. युद्ध में अनेक गोदारा चौधरी व सैनिक मारे गए, परन्तु पांडू तथा उसका पुत्र नकोदर किसी प्रकार बच निकले. नरसिंह जाट विजय प्राप्त कर वापिस रवाना हो गया.
ढाका का युद्ध (1488)
नरसिंह तंवर का ससुराल सिद्धमुख के पास ढाका गाँव में ढाका जाटों में था, इसलिए रात्रि में वह अपने सेनापति किशोर के साथ ढाका के तालाब मैदान में शिविर लगाये हुए रात्रि विश्राम कर रहा था।रास्ते में कुछ जाट जो पूला सारण से असंतुष्ट थे, ने कान्धल व बीका से कहा की पूला को हटाकर हमारी इच्छानुसार दूसरा मुखिया बना दे तो हम नरसिंह जाट का स्थान बता देंगे. राव बीका द्वारा उनकी शर्त स्वीकार करने पर उक्त जाट उन्हें सिधमुख से ६ मील दूरी पर उस तालाब के पास ले गए, जहाँ नरसिंह जाट अपने सैनिकों सहित सोया हुआ था तो बीका, कान्धल और नकोदर ने मध्य रात्रि को नरसिंह पर हमला बोल दिया ढाका का युद्ध (1488) के बाद रात में धोखे से हुए हमले में नरसिंघ जाट मारा गया और नरसिह जाट के सहायक किशोर जाट भी इस हमले में मार गया . इस तरह अपने सरदारों के मारे जाने से नरसिह जाट के साथी अन्य जाट सरदार और साथी तोमर जाट पंजाब चले गये


तोमरवंशी कुंतल जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे। पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है।

तोमरवंशी जाटों के किले
अडींग (मथुरा )- के किले पर महाराज सूरजमल से कुछ ही पहले फौंदासिंह नाम का कुन्तल सरदार राज करता था
पेंठा (मथुरा ) नामक स्थान में जो कि गोवर्धन के पास है, सीताराम (कुन्तल) ने गढ़ निर्माण कराया था।
सोनोट - कुन्तलों का एक किला सोनोट में भी था।
सोंख -, सौख क्षेत्र की कुंतल पट्टी में महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई जो आज भी देखी जा सकती है ।
पिसावा - यह रियासत अलीगढ जिले में है यहाँ तोमरो को चाबुक भी कहा जाता है जो मूल रूप से पृथला गाँव के निवासी थे
नौगाजा (जालंदर) - भिंड तोमर (तोमरो की एक शाखा ) की रियासत थी
देशवाले तोमर -पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत क्षेत्रमें तोमर गोत्र के 84 से अधिक गांवों में हैं. इस क्षेत्र में तोमर खाप को देश खाप के रूप में जाना जाता है| बडौत देश खाप की राजधानी है|देशखाप कोतोमर की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. शाहमल ने देश क्षेत्र को स्वतंत्र रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार शाहमल जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े के क्षेत्र अधिपति (राजा )बन गए. तोमर लोग एक समयदेश क्षेत्र के मालिक (राजा) थे इस कारण तोमर जाटो को देशवाले के रूप में जाना जाता है


तोमर गोत्र का इतिहास बहुत बड़ा है सम्पूर्ण इतिहास पोस्ट का रूप नहि दिया जा सकता है

हर जाट जाटवंश ऋणी है क्यों कि जन्म और परवरिश जाट परिवार में हुआ है


अंत में सभी जाट वंश कि वीरता के लिए

दूजा काई लिखेला इतिहास बठे , कण कण में गूंजे जाटा रो बलिदान जठे !



जीवन जाट के वंशजों का वर्णन
दिल्ली पर जीवन जाट के वंशजों का राज 445 वर्ष रहा है जीवन और उसके वंशज तोमर जाट ही थे तोमर जाट पांडु के ही वंशज हैं । स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थप्रकाश में जीवन के 16 वंशजों (पीढ़ी) का राज 445 वर्ष 4 महीने 3 दिन लिखा है। (पुस्तक - रावतों का इतिहास, सर्वखाप का राष्ट्रीय पराक्रम आदि-आदि)। ईसा से 481 वर्ष पूर्व महाराज जीवनसिंह देहली के राज सिंहासन पर बैठे थे। उन्होंने 26 वर्ष तक राज्य किया था। उनके राज्य-काल का सन् रिसाल 2619 से तूफानी सत् तक दिया हुआ है।

मनु से लेकर विक्रमादित्य तक कि तोमर जाटों कि वंशावली राजा विरमहा से पहेल कि वंशावली

मनु | इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप |

भरत- हस्ती- शान्तनु -विचित्रवीर्य - पांडु- पांडवों (युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन, सहदेव, नकुल)- युधिष्ठिर- अभिमन्यु -परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित था)-जनमेजय- धर्मदत्त - मनजीत (निशस्त्चक )- चित्ररथ- दीपपाल -उग्रसेन - सुसेन- भुवनपतिदेव -रणजीतदेव -रक्षकदेव -भीमसैन -नरहरिदेव -सुचिरथ -सुरसेन -पर्वतराज -मधुकदेव -सोनचीर देव -भीष्मदेव -नरहरिदेव द्वतीय -पुरनसाल -सारंगदेव -उदयपाल - अभिमन्यु 2 -धनपाल --भीमपाल -लक्ष्मीदेव -भानक राज -मुरसैन -आंनगशायी -हरजीतदेव -सुलोचनदेव -इंद्रपाल -पृथ्वीमल-अमिपाल -दशरथ -वीरसाल -अजीतसिंह -सर्वदत्त -

शेरपाल (वीरमहा) -वीरसेन -महिपाल - शत्रुपाल -सैंधराज -तेजपाल -मानिकपाल -कामसेन -शत्रुमर्दन -जीवन जाट -वीरभुजंग या हरिराम- वीरसेन (द्वितीय) -उदयभट या आदित्यकेतु- थिमोधर -मह्रिषी पाल -समरिच्चपाल -जीवनराज -रुद्रसेन -अरिलक -राजपाल -राजपाल कि हत्या के बाद तोमर वंश उज्जैन चला गया उसके बाद दिल्ली का राजवंश पुनः विल्हण देव से शुरू हुआ (अनगपाल सिंह तोमर )-वासूदेव -गंगदेव (गांगेय)-पृथ्वीपाल (प्रथम देव ) -जयदेव (सहदेव )-नरपाल- उदयराजदेव -आपृच्छ देव -पीपलराजदेव (वछराज )-रघुपाल (रावलु )-तिल्हणपाल देव -गोपाल देव -सलअक्शपाल, (सकपाल,सलक्षणदेव )-जयपाल (सलकपाल का भाई )
-कवरपाल -अनंगपाल द्वितीय-तेजपाल प्रथम -विजयपाल -मदनपाल -पृथ्वीराज पाल -चाड पाल -तेजपाल -2


सत्यार्थ प्रकाश और रिसाला में जिन तोमर जाट नरेशो का वर्णन है उनकी वंशावली जो उसमे दी गयी वो निम्न है
उनका राजवंश इस प्रकार है-

राजा वीरमहा

महाबल अथवा स्वरूपबल

वीरसेन

सिंहदमन या महीपाल

कांलिक या सिंहराज

जीतमल या तेजपाल

कालदहन या कामसेन

शत्रुमर्दन

जीवन

वीरभुजंग या हरिराम

वीरसेन (द्वितीय)

उदयभट या आदित्यकेतु


राजा वीरसलसेन को राजा विरमाहा ने युद्ध में मार दिया । विरमाहा की16 पीढ़ी ने दिल्ली पर 445 साल 5 महीने और 3 दिनों तक राज्य किया था रिसाल के अनुसार महाबल 800 ईसा पूर्व में दिल्ली का राजा था उस ही समय भुद्धा उज्जैन का और बह्मंशाह पर्शिया का राजा था .महाबला के सर्वदत्त (स्वरुप दत्त ) 744 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बना महाराजा वीरसेन 708 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बना जब दारा शाह ईरान का राजा था .महाराजा महिपाल 668 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बने वो इतने बहादुर थे की उनको सिंहदमन (शेरो का दमन करने वाला ) कहा जाने लगा । इस समय में कस्तप ईरान का राजा था सिंह दमन के बाद संघराज राजा बने राजा जीतमल 595 ईसा पूर्व दिल्ली का राजा बने इस के बाद कल्दाहन(कामसेन )राजा बने उन्होंने अपने राज्य को ब्रह्मपुर तक बढाया। इस के बाद कई राजा और हुए । जिन होने कई सालो तक दिल्ली पर राज्य किया


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