पंजाब में तोमर जाट (जट ) कि उपगोत्रा शाखाए
पंजाब में खोसा ,शिरा (सीडे ),खेला,भेंड़ा (भिंडर) उपगोत्र है जो गोत्र के रूप में तोमर (तंवर ) के स्थानीय भाषिये रूप तूर का प्रयोग करते है जो तुवर (तंवर) कोही पंजाबी भाषा में तुर बोलते है तुंग ,तोमर ,तुंवर ,तूर ,तंवर एक ही गोत्र है जो विभिन्न स्थानीय भेद के कारण अलग सम्बोधन से पुकारे जाते है
खोसा तुवर (तूर )- H.A. Rose और पंजाबी जट्ट इतिहास के अनुसार खोसा मूल रूप से दिल्ली से आये तोमर जाट थे जब दिल्ली से राज्य चला गया तो अनंगपाल के वंशज दिल्ली से इस क्षेत्र में आगये थे उनमे से कुछ तोमरो ने अफगानी लुटेरो को लूटना शुरू कर दिया , लूटने तथा किसी वस्तु धन को खोसने के कारण ही इन्हो को स्थानीय लोगो ने खोसा कहना शुरू कर दिया जो आगे चल कर इनका उपगोत्र बन गया
जब तोमर जाट दिल्ली से इस क्षेत्र में आये । तब उनके एक नवजात बच्चे कि युद्ध में रक्षा तोमरवंश कि कुल देवी योगमाया ने चील के रूप में आकर के कि थी उसी बच्चे ने अपने नाम पर रणधीर पुर नाम से एक गाव मोगा जिले में बसाया था । जिसको आज खोसा रणधीर बोलते है । इस गाव में पहले के समय में एक तालाब पर माघ माह में एक मेले का आयोजन होता था आज भी खोसा तोमर चील दुवारा रक्षा किये जेन के कारन ही शादी के दौरान एक रोटी चील को अवश्य रूप से देते है पंजाब में खोसा तूर जमैतगढ़ , खोसा रणधीर ,खोसा देवा ,खोसा कोटला ,खोसा पाण्डो गाव में निवास करते है
और उत्तरप्रदेश के बिजनौर में मुबारक पुर गाव में वो तोमर ही गोत्र के रूप में लिखते है

खेला तोमर - यह पंजाब के तोमरो कि एक उप गोत्र शाखा है जी आज गोत्र के रूप में सिर्फ तूर ही काम में लेती है
भेंड़ा ( भिंडर ) -सन 1375 में जब दिल्ली पर फ़िरोज़ शाह का शासन था उसी समय एक जाट यौद्धा वीरपाल जाट ने भिण्ड(मध्यप्रदेश ) में तोमर जाट गावो कि स्थापना कि कुछ वर्ष बाद तोमर जाटों ने सामूहिक रूप से यह क्षेत्र छोड़ दिया अपने गाव भिंड के नाम पर यह भेंड़ा तोमर कहलाये यह पंजाब में रायपल तोमर नाम के योद्धा के साथ जाकर सिलायकोट में बसे यहा से यह सिख पंथ में आकर जालंदर में नोगजा में बसे नोगजा के राजा अमरसिंह भी एक भेंड़ा तोमर है
तुंग तोमर -तोमरो को तुंग भी बोला जाता था प्रबंध चिन्तामणि नाम के ग्रन्थ में तोमर प्रदेश के इए तुंगपाटन और दिल्ली के तोमर नरेश के लिए तुंगराज का प्रयोग किया गया है पंजाब में तुंग उपगोत्र के तोमर सिर्फ अमृतसर के पास तुंग गाव में निवास करते है इस तुंग गाव में यह लोग दिल्ली के तुंग गढ़ नाम के गाव से 1800 के आसपास आकर बसे थे । गुरमुख सिंह ने दिल्ली से आकर सिखो कि रामगढ़िया मिसल में भर्ती हो गये और इस गाव तुंग कि नीव रखी । और इसके आसपास के गावों कि जागीरी प्राप्त कर ली गुरमुख सिंह के पुत्र का नाम नारायण सिंह था मृत्यु 1839 में हुई उनके वंशज साहिब सिंह ने इस पर राज्य किया साहबसिंह कि 1804 मृत्यु हो जाने के बाद उनके पुत्र फतेहसिंह ने उनकी जागीरी को सम्भाला फ़तेह सिंह के 3 लड़के थे उनके पुत्र जोध सिंह कि 1821 में मृत्यु हो गयी यह सिर्फ एक ही गाव तुंग में निवास करते है

शिरा(सिरा ) तोमर (ਸੀੜ੍ਹਾ ਟੂਰ ਜੱਟ )

कैथल के तोमर (तंवर ) जाटों का इतिहास
कैथल हरयाणा कि गुहला तहसील के आसपास तंवर (तोमर ) गोत्र के जाटों के मुख्य 12 गाव और लुधियाना ,पटियाला जिले में बहुत से गाव इस गोत्र है जो कि कैथल के चीका गाव से जाकर बसे है । कैथल और पंजाब में आज भी यह अपना गोत्र तंवर (तोमर ) ही बताते है । तोमर को पंजाबी भाषा में तूर बोला जाता है इन तंवर जाटों को शिरा तंवर ,सीढे तंवर बोला जाताहै इनका गोत्र तोमर (तंवर ) और उपाधि (लोकल नाम ) शिरा है सिरा तंवर दिल्ली नरेश अनंगपाल सिंह तोमर के वन्सज है

शिरा नाम पड़ने के पीछे दो इतिहासकी कारन बताये जाते है

शिरा तोमरो का इतिहास
शीरा (शिरे)तंवर - यह तंवर जाटो की ही एक शाखा है पेहोवा के इतिहास के अनुसार यहाँ पर जाटों का शासन रहा है ।पेहोवा शिलालेख में एक तोमर राजा जौला और उसके बाद के परिवार का उल्लेख है। महिपाल तोमर का भी पेहोवा पर शासन रहा है थानेसर जो की हिन्दू के लिए उतना ही पवित्र था जितना मुस्लिमो के लिए मक्का , थानेसर अपनी दोलत के लिए और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध था । दिल्ली के राजा अनगपाल और ग़ज़नी के राजा महमूद के बीच यह संधि थी की दोनों ही एक दुसरे के क्षेत्र में हमला नही करेगे लेकिन जैसा की गजनवी धोखे बाज़ था । उस ने धन ले लालच में हमले की योजना बनाई । और पंजाब तक आ गया । दिल्ली के तोमर (तंवर ) राजा अनगपाल तोमर तक उस के नापाक योजना की सुचना पहुच गयी थी अनगपाल तोमर ने अपने भाई को 2000 घोड़े सवारो के साथ महमूद से बात करने पंजाब भेजा दोनों बीच में बातचीत हुई और वो वापस दिल्ली अपने भाई के पास चल दिया उसको रास्ते में सुचना मिली की महमूद हमला करने वाला है इस बात की सूचना उस ने अपने बड़े भाई अनगपाल तोमर को दे दी । जो उस समय दिल्ली में थे । उन्होंने कई हिन्दुओ राजो को साथ लिया और थानेसर की तरफ चल दिए उनके पहुचने से पहले ही महमूद ने थानेसर के मंदिरों को लुटा । थानेसर से उस को बहुत धन दोलत प्राप्त हुई । फिर उसने दिल्ली पर हमले के सोची पर उसके सेनापति ने महमूद गजनवी से कहा की दिल्ली के तोमरो को जितना असम्भव है । क्योंकी तोमर इस समय बहुत शक्तिशाली है ध्यान देने वाली बात है गजनवी ने भारत पर 17 बार हमले किये पर दिल्ली पर कभी हमला करने की उसकी हिम्मत नही हुई | 1025 के सोमनाथ के हमले के बाद उस को खोखर जाटों ने रास्ते में ही लुट लिया । उसको सबक सिखा दिया । और वो वापस मुल्तान लोट गया । जब अनंगपाल तोमर इस क्षेत्र में पहुचे तो वो बहुत दुःखी हुए और वो पालकी की जगहे सीढ़ी पर बैठ पर गये । लोकभाषा में सीढी को सीरी बोला जाता था इस कारण से ही तो तोमर जाटों को इस क्षेत्र में सिरा तोमर ,या शिरा तंवर कहते है (शिरा (सिरे)=सीढ़ी (सीरी ) वाले ) कहा जाता है ।

दूसरा कारन यह बताया जाता है कि एक बार पंजाब में एक किले को दुश्मनो ने धोखे से घेर लिया ने तब अधिकाश तोमर(तुर ) जट्ट युद्ध करते हुए मारे गये कुछ तोमर सैनिको को राजा को सुचना देने लिए लिए सीढ़ी(सीरी ) लगा कर किले से बाहर भेज दिया गया था बाद में किले पर दुश्मनो का कब्ज़ा हो गया यह एक lake फोर्ट था जो पंजाब में रालामिला नामक किसी जगह पर था , उन तोमरो के वंशजो को बाद में सीढ़ी वाले यानि सिरे तोमर बोला गया

इनके गाव हरियाणा में कैथल के पास
हरिगढ़ किंगन,चीका,नंदगढ़,कुशाल माजरा ,कल्लर माजरा,सदरहेडी,मेगड़ा,नेवल,भागल,बादसुई(बद्सुई),रिवाड(रवाहर) जागीर,भून्सलान,मुख्य गाव है चीका से ही कुछ लोगो ने अम्बाला जिले में गाँव -धनोरा(धनोड़ा ),मिर्जापुर, बसाये

पंजाब में भी शिरा तोमर कैथल के चीका गाव से जाकर बसे थे । तोमरो ने जट सिख मिसल में भर्ती होकर युद्ध लड़े और पंजाब में ही बस गये
फतेगढ़ साहिब जिले में बधोछी कलां,डबवाली लुधियाना जिले में मुल्लनपुर,शिरा,सिधवान कलां,पटियाला जिले में अरणों,नन्हेडा,भटिंडा जिले में जंगीराणा, यह कुछ गाव तोमर जाटों के है



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