महाराज नरसिंह जाट और उनका वीर साथी किशोर जाट

महाराज नरसिंह  जाट और उनका वीर साथी किशोर  जाट

महाराज  नरसिंह जाट (सिवानी ) जांगल प्रदेश   का राजा था उसका शासन 1460 के आसपास था  नरसिंह तोमर गोत्र का जाट था नरसिंह जाट की  सुसराल ढाका गाँव तहसील भादरा जिला हनुमानगढ़  के ढाका गोत्र के जाटों में थी  सहारण  जाटों की मदत के लिए दो युद्ध किये इ ढाका के युद्ध में धोखे से 1488 में शहीद हो गए उसके बादउनके वंशज रायपाल तोमर और रणधीर सिंह सहारण  के साथ पंजाब में चले गए कुछ तोमर जाट जो जांगल प्रदेश में रहे गए वो शाहजहाँ के शासन काल में जांगल प्रदेश से आकर बृज  क्षेत्र में में माखन सिंह तोमर (तंवर ) के नेतृत्व में आकर बस गए माखन सिंह की शादी खोखन गोत्र के जाटों में हुई जो उस समय राया क्षेत्र के मालिक थे   माखन सिंह ने गौसना,सिन्दूरा में छोटे किलो का निर्माण करवाया उसके पुत्तर नंदराम तोमर ने औरंज़ेब के खिलाफ युद्ध करने की ठानी थी  इसलिए कहा जाता है
                      तोमरो ने ठनी ऐसी रीत
                       की ठेनुआ कहलाये
नंदराम के 14  लड़के थे  मुगलो के खिलाफ  लगातार युद्ध कारने के कारन यह ठेनुआ कहलाये जो आज एक अलग गोत्र है और तंवर (तोमर ) में रिश्ते करते है इसका कारन यह है की इनके कुछ शादी गैर जाटों मेकरने के कारन इनको तोमर कुल छोड़ना पड़ा हाथरस और मुरसैन रियासत के वास्तविक संस्थापक तोमर (तंवर) जाट थे , अलीगढ क्षेत्र और मथुरा क्षेत्र में आज भी तोमर (तंवर ) वंशी जाटों की बहुत सी गढ़ों के निशान आज भी बाकि है जिनमे सोनोट ,सोंख ,गढ़ सौली , पेठा , इब्राहिमपुर ,पिसावा  मुख्य है वर्तमान समय में इन जगहों में तोमर जाट  ही निवास करते है

14  वी  सदी में राजस्थान में जाटों का शासन था  राजपूतो का राज्य जाटों की आपसी फुट का परिणाम था उस समय के मारवाड़ क्षेत्र के कुछ जाट राज्यों का विवरण नीचे दिया गया है
इनसे अलग ठाकुर देशराज ने जाटों के अधीन गाँवों की कुल संख्या 2660 बताई है.   डॉ कर्णी सिंह लिखते हैं कि बीका राठोड से पहले राजस्थान के इस प्रदेश पर जाटों के सात गोत्रों के शक्तिसाली गणराज्य थे. इनका विवरण निम्नानुसार है -
 
जाट गोत्र नाम   नाममुखिया गाँवों की संख्या               राजधानी                                  अधिकार में प्रमुख कस्बे
1. पूनिया              कान्हा      300                              बड़ी लून्दी (लूद्दी)                            भादरा , अजीतपुरा, सीधमुख , राजगढ़ , ददरेवा , सांखू
2. बेणीवाल          रायसल    150                               रायसलाणा                                  भूकरका, सोनरी, मनोहरपुर , कूई , बाय
3. जोहिया             शेरसिंह    600                                भुरूपाल                                      जैतपुर , कुमाना, महाजन , पीपासर, उदासर
4. सिहाग              चोखा       150                                 सूई/पल्लू                                 रावतसर , बिरमसर , दांदूसर, गण्डेली, देवासर ,मोटेर
5. सारण                पूला        360                                   भाड़ंग                                     खेजड़ा, फोग , बुचावास , सूई , बदनु , सिरसला
6. गोदारा               पाण्डू       700                                    शेखसर/लाघड़िया                              शेखसर, पुण्डरासर , , रुनगेसर , कलू
7. कसवां            कंवरपाल    400                                  सीधमुख चुरू,                                  खासोली, खारिया, सरसला, पीथुवीसींसर,

 नरसिंह  जाट
उस समय पूला सारण भाड़ंग का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. पूला की पत्नी का नाम मलकी था जो बेनीवाल जाट सरदार रायसल की पुत्री थी. उधर लाघड़िया में पांडू गोदारा राज करता था. वह बड़ा दातार था. एक बार विक्रम संवत 1544 (वर्ष 1487) के लगभग लाघड़िया के सरदार पांडू गोदारा के यहाँ एक ढाढी गया, जिसकी पांडू ने अच्छी आवभगत की तथा खूब दान दिया. उसके बाद जब वही ढाढी भाड़ंग के सरदार पूला सारण के दरबार में गया तो पूला ने भी अच्छा दान दिया. लेकिन जब पूला अपने महल गया तो उसकी स्त्री मलकी ने व्यंग्य में कहा "चौधरी ढाढी को ऐसा दान देना था जिससे गोदारा सरदार पांडू से भी अधिक तुम्हारा यश होता. इस सम्बन्ध में एक लोक प्रचलित दोहा है -

धजा बाँध बरसे गोदारा, छत भाड़ंग की भीजै ।
ज्यूं-ज्यूं पांडू गोदारा बगसे, पूलो मन में छीज ।।

सरदार पूला सारण मद में छका हुआ था. उसने छड़ी से अपनी पत्नी को पीटते हुए कहा यदि तू पांडू पर रीझी है तो उसी के पास चली जा. पति की इस हरकत से मलकी मन में बड़ी नाराज हुई और उसने चौधरी से बोलना बंद कर दिया. मलकी ने अपने अनुचर के मध्यम से पांडू गोदारा को सारी हकीकत कहलवाई और आग्रह किया कि वह आकर उसे ले जाए. इस प्रकार छः माह बीत गए. एक दिन सब सारण जाट चौधरी और चौधराईन के बीच मेल-मिलाप कराने के लिए इकट्ठे हुए जिस पर गोठ हुई. इधर तो गोठ हो रही थी और उधर पांडू गोदारे का पुत्र नकोदर 150 ऊँट सवारों के साथ भाड़ंग आया और मलकी को गुप्त रूप से ले गया.  पांडू वृद्ध हो गया था फ़िर भी उसने मलकी को अपने घर रख लिया. परन्तु नकोदर की माँ, पांडू की पहली पत्नी, से उसकी खटपट हो गयी इसलिए वह गाँव गोपलाणा में जाकर रहने लगी. बाद में उसने अपने नाम पर मलकीसर बसाया.
पूला सारण ने सलाह व सहायता करने के लिए अन्य जाट सरदारों को इकठ्ठा किया. इसमें सीधमुख का कुंवरपाल कसवां, घाणसिया का अमरा सोहुआ, सूई का चोखा सियाग, लूद्दी का कान्हा पूनिया और पूला सारण स्वयं उपस्थित हुए. गोदारा जाटों के राठोड़ों के सहायक हो जाने के कारण उनकी हिम्मत उन पर चढाई करने की नहीं हुई. ऐसी स्थिति में वे सब मिलकर सिवानी के तंवर(तोमर  ) सरदार नरसिंह जाट के पास गए  और उसे अपनी सहायता के लिए चढा लाए राजस्थानी भाषा के इतिहास में इस घटना को कुछ इस तरह लिखा गया है

नरसिंह जाट नैं ल्याण नैं अै अै जाट गया-सिधमुख को कस्वों बडो कंवरपाल(मलकी को नानो) , बेणीवाल रायसल (मलकी को बाप) , भाड़ंग को पूलो सारण (मलकी को खसम) , धाणसियै को सहू अमरो (मलकी की भूवा को बेटो भाई) , सूंईं को सिहाग चोखो, लूदी को पूनियो कानो।

मलकी और लाघड़िया युद्ध

तंवर नरसिंह जाट बड़ा वीर था. वह अपनी सेना सहित आया और उसने पांडू के ठिकाने लाघड़िया पर आक्रमण किया. उसके साथ सारण, पूनिया, बेनीवाल, कसवां, सोहुआ और सिहाग सरदार थे. उन्होंने लाघड़िया को जलाकर नष्ट कर दिया. लाघड़िया राजधानी जलने के बाद गोदारों ने अपनी नई राजधानी लूणकरणसर के गाँव शेखसर में बना ली. युद्ध में अनेक गोदारा चौधरी व सैनिक मारे गए, परन्तु पांडू तथा उसका पुत्र नकोदर किसी प्रकार बच निकले. नरसिंह जाट विजय प्राप्त कर वापिस रवाना हो गया

तंवर सिरदार नरसिंह जाटू बडो सूरवीर जोधो हो। बो आप की सेना सुदां आयो'र गोदारै पांडू कै ठिकाणै लादड़ियै पर हमलो कर्यो। गांव बाळ दियो'र पांडू कै मोकळा मिनखां नै मार कर पाछो होयो।



ढाका का युद्ध (1488) और जाट गणराज्यों का पतन

इधर गोदारों की और से पांडू का बेटा नकोदर राव बीका व कान्धल राठोड़ के पास पुकार लेकर गया जो उस समय सीधमुख को लूटने गए हुए थे. नकोदर ने उनके पास पहुँच कर कहा कि तंवर नरसिह जाट आपके गोदारा जाटों को मारकर निकला जा रहा है. उसने लाघड़िया राजधानी के बरबाद होने की बात कही और रक्षा की प्रार्थना की. इसपर बीका व कान्धल ने सेना सहित आधी रात तक नरसिंह का पीछा किया. नरसिंह उस समय सीधमुख से ६ मील दूर ढाका नमक गाँव में एक तालाब के किनारे अपने आदमियों सहित डेरा डाले सो रहा था. रास्ते में कुछ जाट जो पूला सारण से असंतुष्ट थे, ने कान्धल व बीका से कहा की पूला को हटाकर हमारी इच्छानुसार दूसरा मुखिया बना दे तो हम नरसिंह जाट का स्थान बता देंगे. राव बीका द्वारा उनकी शर्त स्वीकार करने पर उक्त जाट उन्हें सिधमुख से ६ मील दूरी पर उस तालाब के पास ले गए, जहाँ नरसिंह जाट अपने सैनिकों सहित सोया हुआ था.
राव कान्धल ने रात में ही नरसिंह जाट को युद्ध की चुनोती दी. नरसिंह चौंक कर नींद से उठा. उसने तुरंत कान्धल पर वार किया जो खाली गया. कान्धल ने नरसिंह को रोका और और बीका ने उसे मार गिराया.
घमासान युद्ध में नरसिंह जाट सहित अन्य जाट सरदारों कि  पराजय हुई. दोनों और के अनेक सैनिक मरे गए. कान्धल ने नरसिह जाट के सहायक किशोर जाट को भी मार गिराया. इस तरह अपने सरदारों के मारे जाने से नरसिह जाट के साथी अन्य जाट सरदार भाग निकले.  वहाँ से राव बीका ने सिधमुख में डेरा किया. . इस तरह जाटों की आपसी फूट व वैर भाव उनके पतन का कारण बना. राजस्थानी भाषा साहित्य में नरसिंघ के महत्व को बताती कुछ  पंक्तियाँ

नींद में सूत्यै बैरी पर घात करणै नैं वीरां को काम न समझ'र कांधल वीरां रै लहजै में नरसिंह नैं चेतायो। नरसिंह चिमक कर उठ्यो। दोनूं कानियां सैं जोधा में जबरो जंग होयो पण नरसिंह अर दूसरा तंवर सिरदार किसोर जाटू राठौड़ां कै हाथ मार्यां जाणैं सैं जाट गिया  लूट
 राव जैतसी' लिख्यो थो, जैं सैं भी नरसिंह जाट को मार्यो जाणो और भाड़ंग पर राठौड़ां को कब्जो होणो पायो जावै है।

यह इतिहास निम्न किताबो से लिखा गया है

↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
↑ नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 202
↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
↑ दयालदास री ख्यात , पेज 9
↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
↑ डॉ दशरथ शर्मा री ख्यात, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर, संवत 2005, पेज 7
↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
↑ नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
↑ नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
↑ नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 210

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