चौधरी श्योसिंह और जौहड़ी के जयराम तोमर

 चौधरी श्योसिंह  और  जौहड़ी के जयराम तोमर


बागपत जनपद में प्रथम जंग-ए-आजादी की इबारत सन् 1856 में ही लिखनी प्रारंभ हो गई थी।अब आजादी का चोला क्रांतिकारियों के बलिदान से बसंती हो चला था। निर्णायक मोड़ पर पहुंची प्रथम जंग-ए-आजादी, नौजवानों के बाजुओं के जोर की थाह ले रही थी। जब गुलामी की जंजीरों में छटपटाती मां 'भारती' ने दूध का कर्ज मांगा तो जियालों में मातृभूमि के वास्ते सरफरोशी (शीश कटाने) की जैसे होड़ सी मच गयी थी। इधर ब्रिटिश हुक्मरान दहशत फैलाने की रजा से क्रांतिकारियों का सिर कलम कर, कटे शीश को क्षेत्र विशेष में घुमाते थे।
उधर देशभक्त मातृभूमि के चरणों में शीश चढ़ाकर, इंकलाब के रंग को और गाढ़ा करने में जुट गए थे। इसी वर्ष बिजरौल निवासी क्रंातिकारी बाबा शाहमल सिंह तोमर  के नेतृत्व में बावली में सर्वखाप पंचायत हुई। इसमें आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की अध्यक्षता में तत्कालीन देशखाप मुखिया चौधरी श्योसिंह तोमर ने खाप के 84 गांवों के लोगों से अंग्रेजी हुकूमत उखाड़ फैंकने की अपील की। इस बाद तोमर गोत्र के जाटोँ के गांवो मे क्रांति का एक दोर चल पडा ओर क्षेत्र के  दुसरी गोत्र के जाटोँ ने इस काम ने जी जान से मदत कि 21 जुलाई 1857 को तार द्वारा अंग्रेज उच्चाधिकारियों को सूचना दी गई कि मेरठ से आयी फौजों के विरुद्ध लड़ते हुए शाहमल अपने 6000 साथियों सहित मारा गया।
 तब अँग्रेजो ने उनके कटे सिर को तोमर गोत्र के 84 गावो में घुमाने की कोशिश कि जिसके विरोध मे तोमरो कि देश खांप के चौधरीं  श्योसिंह ने एक विद्रोह क नेतृत्व किया, सैन्य टुकड़ी बाबा के शीश को लेकर बड़ौत पहुंची तो यहां मुख्य बाजार में उन्हे तीव्र विरोध झेलना पड़ा। उन पर पथराव हुआ और महिलाओं ने छतों से खौलता हुआ पानी उनके ऊपर उड़ेला। इसी बीच अंग्रेजों को भनक लगी कि मेरठ के रास्ते में पड़ने वाले जौहड़ी गांव में क्रांतिकारी  शाहमल के पौत्र लिज्जामल जाट के नेतृत्व में घात लगाए बैठे हैं। इस स्थिति में कार्ययोजना में तब्दीली करते हुए सैन्य टुकड़ी को रात के अंधेरे में दबे पांव गुजारा गया और हिंडन नदी के रास्ते मेरठ ले जाया गया।  बड़ौत में चौ.श्योसिंह सहित व उनके 23  साथी शहीद हो गए अंग्रेजों ने बड़ौत में पूर्वी यमुना नहर के किनारे कोल्हू में रखकर चौ.श्योसिंह की हत्या की थी।वर्तमान में भी यमुना नहर के किनारे पत्थर के उस कोल्हू के अवशेष मौजूद हैं।देशखाप चौधरी श्योसिंह की बड़ौत स्थित शहादत स्थली पर जल्द ही एक स्मारक बनाने की योजना है। बाबा शाहमल का शीश घुमाने के मंसूबों धराशाई हुए ,
बड़ौत कि चौधरान पट्टी मे देश खांप के चौधरी श्योसिंह तोमर कि हवेली जला दीं ग़यी  चौधराण पट्टी को  नीलाम कर दिया गया तोमरो के बिजरोल ,जोहडी ,सिरसली गांवो  को खालसा गाव बना दिया गया
 विद्रोह यही नहीं रुका    23 अगस्त 1857 को शाहमल के पौत्र लिज्जामल जाट ने बड़ौत क्षेत्र में पुन: जंग की शुरुआत कर दी। और उस गद्दार मुस्लिम  घाट उतार दिया

मेरठ  की क्रांति में सिरसली गांव का अमूल्य योगदान रहा है।आनन-फानन में सिरसली गांव की मावी पट्टी ने स्थानीय शिव मंदिर में पंचायत कर क्रांति की कमान बाबा के पौत्र 'लिज्जामल' के हाथ में दे दी गई। निर्णय लिया कि बाबा का सिर किसी भी सूरत में अंग्रेजों से छीना जाएगा। जैसे ही ब्रिटिश शासन द्वारा गठित विशेष फ्रांसिसी सैन्य टुकड़ी बाबा के सिर को बड़का से लेकर चली तो आस-पास के गांवों के लोग ढोल-नगाड़े बजाते हुए उनका घेराव करने के लिए निकल पड़े। ब्रिटिश दस्तावेज 'नेरेटिव ऑफ इवेंट' में इस घटना का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।   मुखिया की शहादत के बाद आमतौर पर क्रांति कमजोर पड़ जाती है, किन्तु शाहमल के शहीद होने के बाद सिरसली गांव ने अंग्रेजों को और भयभीत कर दिया। अंग्रेजों को रातों रात बड़ौत से हर्रा होते हुए सरधना भागना पड़ा।बाबा शाहमल का शीश घुमाने के मंसूबों धराशाई हुए ,

जौहड़ी के जयराम तोमर


1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानियों की सूची में जौहड़ी के जयराम तोमर का नाम भी शामिल होने जा रहा है।
शहजाद राय शोध संस्थान में उस समय के दुर्लभ दस्तावेज व 1857 क्रांति को प्रमाणित करने वाली पुस्तकें हैं। जिन पर निरंतर किए जा रहे शोध से जौहड़ी निवासी अमर शहीद जयराम सिंह के 1857 क्रांति में भाग लेने के प्रमाण मिले हैं। संस्थान के निदेशक अमित राय जैन ने बताया कि 1857 के संग्राम में जान बचाकर अंग्रेजी सैनिक बड़ौत से होते हुए रात में ही वाजिदपुर, अंगदपुर जौहड़ी होते हुए हिंडन नदी पार कर मेरठ पहुंचे। अंग्रेजी दस्तावेजों में यहां तक लिखा मिलता है कि जब अंग्रेजी सैनिक जौहड़ी गांव से गुजरे। जौहड़ी, सिरसली आदि निकटवर्ती ग्रामों के ग्रामीणों का नेतृत्व चौधरी जयराम द्वारा किए जाने की जानकारी जब अंग्रेजों तक पहुंची तो उन्होंने एक दिन जौहड़ी गांव के घेरकर जयराम सिंह को उनकी हवेली से गिरफ्तार कर लिया और हवेली के सामने स्थित चौपाल पर ही उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। इस प्रकार देश की आजादी के लिए बड़ौत क्षेत्र के एक महान रणबांकुरे ने अपना बलिदान दिया। उनके बलिदान के लगभग 155 वर्ष बाद उनके अज्ञात इतिहास से इतिहासकारों ने पर्दा उठाया है। उनकी स्मृति में शीघ्र ही जौहड़ी गांव की उसी चौपाल पर शिलालेख स्थापित किया जाएगा।

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