चौधरी पृथ्वीसिंह बेधड़क

चौधरी पृथ्वीसिंह बेधड़क एक   उच्च कोठी के कवि थे  जिनका जन्म  का  नाम पृथ्वीसिंह तोमर था इनका जन्म  देश खांप के शिकोपुर (शिकोहपुर) गाँव बाघपत उत्तर प्रदेश मे 1904 को हुआ 10 फरबरी 1973 को पृथ्वीसिंह का देहांत हो गया था
                                     उन्होने अपने भंजन और गीतोँ के माध्यम से लोगो क़ो   सामाजिक बुराइयो की प्रति जागरूक करने का   काम  किया कट्टर जाट होने  क़े  साथ -साथ वो एक कट्टर आर्यं समाजी भी थे उनकी दिन कि शुरुआत हवन के साठ होतीं  थीं
                                   पृथ्वीसिंह ज़ी  ब्रज ,हरयाणवी ,राजस्थानी  अरबी -फ़ारसी और इंग्लिश भाषाओ के जानकार थे अपनी कविताओँ मे  ब्रज ,हरयाणवी ,राजस्थानी  अरबी -फ़ारसी और इंग्लिश  भाषाओ के शब्द क़ाम  में  लेतें थें अखिल भारतीय जाट महासभा के सोनीपत ओर दिल्ली के अधिवेशन मे वजीर -ए -आज़म  पंजाब चौधरी सिकन्दर हयात खान ने इनके निडर गायन के काऱण हि उनकों बेधडक कि उपाधि मिलीं थीं  इस सम्मेलन मे छोटूराम जी  ने भी  शिरकत कि थीं उन्होने आपणे जीवन काल में 48 किताबे लिखी उनकी अंतिम किताब 1972 में प्रकाशित हुए जिसका नाम मानवता था  जाट सामाज के प्रति उनका लगाव था जिस करन से वो गोठडा (सीकर) का जलसा सन 1938 में उपस्थ्तित प्रमुख नेताओं में से  थे
पृथ्वीसिंह बेधड़क 



भरतपुर विजय उनकी रचना थी जिसको आज भरतपुर के लोक गायक हरिराम गुर्जर  गाता है
पृथ्वीसिंह बेधड़क जी ने लिखा है
                                              लालकिले कि चटनी करने चल दिए वीर जवाहर
                                              हाथी पर सवार होकर सूरजमल के लाल चले
                                              लाडले हथियार बाँध हाथी ऊपर ढाल चले
                                              सेनापति रामसिंह चले दूसरे रिसाल सिंह चले
                                               वीरता दिखाने जाट चले

वो  दूरदर्शी थे जिस  भ्रस्टाचार क विरोध आज  अन्ना हज़ारे कर रहे है उन्होने  किसानो को 40-50 वर्ष पहले पृथ्वी सिंह बेधड़क ने अपनी कविता से  जागरूक करने कि कोशिश कि थीं   वे बहुत ही दूरदर्शीव  भविष्य द्र्स्ठा थे। उनकी कविता की दो लाइनए  है की-

                                       रिश्वतखोर भ्रस्टाचारी कै जिस रोज लठोरी(लाठी) लग जागी,
                                          अन्नदाता के घर घर मे अनाज की बोरी लग जागी…..

पृथ्वीसिंह के लेखन शैली का  ही जादू था कि जब जाटो   ने आरक्षण के लिये लोगो को जागरूक करने के लिये एक कैसेट निकली तो उनकी  मृत्यु के बहुत समय बाद भी उसमे भी अधिकांश  गीतों कि रचना पृथवी सिंह ने कि थीं

पृथ्वी सिंह जि ने जाट  कौम के  महत्व को बताया है  पृथ्वी सिंह कहते है इस देश को आज़ाद करवाने मे जाट  कौम कि बडी भूमिका  है जब जब इस देश पर संकट आया  है जाट  कौम ने देश कि डूबती नैया को परली  पार कर दिया है
                                                         क्या आप भूल गए भगत सिंह को
                                                         क्या  आप भूल गए वीर्  तेजा ज़ी को
                                                         जर्मन कि भूमी बतातीं है जाट
                                                      विश्व के नक़्शे मे जाटों ने अपने नाम कमाया है

साथ ही इस देश के ब्राह्मण ओर कुछ धर्मके के ठेकेदार को समझते हुए कहा है

                                                    हिन्दू  हिन्दुस्तान की खातिर  अपनी कला दिखाई
                                                    जाट  रक्षा सदा से करती आयी
                                                    जाट वीर  तरह ताजमहल पर छूट छूट
                                                    बाज़ कि ढ़ाल जाट पड़े थे लाल किले पर टूट टूट
                                                    मोहम्मद के सारे हमले रास्ते मे लूट लूट। ……… …।
                                                    जाट देवता कि कहावत कहा थी आज
                                                     वीर तेजा  दुनिया सिर झुकाती आज
                                                     बने नी राजपूत यहा  ते  नाम ले  बच्चो को डराती आज। ………………

पृथ्वी सिंह ने  जाट एकता पर भी जोर  कहते है
                                       
                                             समय पहचानो अब हम बर्बाद हुए  नही तो जानो
                                             याद करो उस दिन को इकट्ठे उस घाट  हुए
                                               जाट वीरता देख कर धरनी भी  धराई
                       
जाट अपनी  ताकत को पहचानों   उन्होने कहाँ  उस वीर हनुनाम   तरह हो जिस मे बल बहुत है  विधा बहुत है पर  ताकत  को  नहीं   पहचानता है जाट  वीरो अपनी ताकत को पहचानो
                                जिस दिन एकता के झंडे के नीचे इकट्ठे जाट होंगे
                                उस दिन जाट दुनिया के संम्राट होंगे
                               साऱी  दुनिया पर जाटो का  शासन होगा
                              अब तक जितनी भी हुई लड़ाई जंग जीतें थे जाट  सिपाई
                             
उन्होंने अपने गीत के माध्यम से दूसरी जातियों को चेतावनी देते हुए कहते है
याद रखना जिस दिन  जाट कि लाठी, जेरी ग्यी तो
                           हिन्दू कौम को खतरा होंगा
                           ना ही  ब्रह्मण का  पत्रा होगे
                          ना  ही लाला जी तेरे  बाट होंगे
                                     
 
 पृथ्वी सिंह  जाटों से कहते शिक्षा पर जोर कर लो

जाट बच्चो कि शिक्षा होगी
पृथ्वी सिंह कि यह दीक्षा होंगी
तब दुनिया कि रक्षा होगी
जाट मिनिस्टर जब अलॉट होंगे                                

पृथ्वी जाट महिला को को शिक्षा के प्रति जागरूक करते हुए कहते है कोई  बात नहीं  गरीबी अज्ञानता के कारण  तुम  पढ  ना पायी  सुसराल मे जा कर  सास से कह्ना

और री  माँ मेरीं  तकतीं बस्ता ला दे
स्कूल में मेर नाम लिखा दे
में भी स्कूल जाऊगी

पृथ्वी सिंह ने हिन्द चीन युद्ध मे बच्चा पलटन मे भर्ती के लिये जाटों को जोश लाने के लिये गीत गाय

बर्दी पहन  ओरउठा बंदूक़  हर बच्चा  बाबा शाहमल बन जायेगा
हिन्द चीन युद्ध मे वो वीर रस गीत गाने के लिये सेना के साथ बॉर्डर पर गए थे

भारत पर जो करेगा हमला वो हर तरह मिटेगा।
पृथ्वीसिंह बेधड़क कहे अबके चीन पिटेगा।।
निक्सन पीटा याहियाखां मिटा अब भुट्टो ने कमर कसी।

किसी विदेशी ने नहीं अब तक ऐसी चीज बनाई।
लोहे को जंग लगे न कैसे ऐसी कौन दवाई।।
 सम्राट्की अनगपाल  खड़ी लाट, जैसी थी आज वैसी।1।

सम्पाती ने हनुमान की आँख पे चश्मा लाया।
साढ़े तीन सौ मील दूर थी लंका को दिखलाया।।
अशोक वाटिका दई दिखा जहाँ सीता सती फंसी।।2।।

अनसूया ने कहा सिया को एक दिन कपड़े देकर।
जब ये कपड़े मैले होज्यां पानी अन्दर भेकर।।
अग्नि में डाल धो लिए लाल, धोती जम्फर जरसी।।3।।

आज चाँद के ऊपर जाना समझें बहुत कमाल।
मंगल तारे अंदर अर्जुन रहा था ढाई साल।।
महाभारत का लेख पढ़के देख जो लिखगए व्यास ऋषि।।

रूस चीन जर्मन अमरीका जर्मन और जापान।
इस भारत से गए सीखकर सारा ही विज्ञान।।
गुरु साथ विश्वासघात करें इनकी ऐसी तैसी।।5।।

व्हाई आर यू प्राउड ऑफ दी फोरन ग्रामोफून।
इन विक्रमादित्यस थ्रोन थर्टी टूव्हीयर दी टून।।
इट व्हाज आवर मैण्टल पावर एण्ड एैफीशियंशी।।6।।

सहजराम ने सुमरू की बेगम को कहा था माता।
दुर्गादास उस गुलेनार को अपनी बहन बताता।।
अर्जुन ने कहा तू मेरी है माँ जब आई थी वो उर्वसी।।7।।

14 साल की लड़की के संग काला मुंह करगे।
वोही पाक बंगला के अन्दर बुरी तरह मरगे।।
हमें नहीं पता क्या यही बता गए मौहम्मद ईसामसी।।8।

संजय अगर यहाँ पर आजा देख बहा दे खून।
मेरी चीज का नाम धरा है किसने टेलीफून।।
क्या दोगे जवाब बतलाओ जनाब जब करे एैसी तैसी।।9।

भारत पर जो करेगा हमला वो हर तरह मिटेगा।
पृथ्वीसिंह बेधड़क कहे अबके चीन पिटेगा।।
निक्सन पीटा याहियाखां मिटा अब भुट्टो ने कमर कसी।

पृथ्वीसिंह जाटों को वेदों कि ओर लौटने का  संदेश देते थे

वेद ज्ञान महाभारत काल से कुछ-कुछ घटना शुरु हुआ।
उन्हीं दिनों से म्हारा आपस में कटना पिटना शुरु हुआ।
ईश्वर भक्ति भूल गये पाखण्ड का रटना शुरु हुआ।
धर्मराज जो कहा करें थे उनका हटना शुरु हुआ।
हटते-हटते इतने हटगे बिल्कुल पर्दाफास हुआ।।1।।

दूध भैंस का ना पीते थे घर-घर गऊ पालते थे।
पीणे से जो दूध बचे था उसका घृत निकालते थे।
सामग्री में मिलाको उसको अग्नि अन्दर डालते थे।
उससे भी जो बच जाता था उसका दिवा बालते थे।
 नहीं तपेदिक जुकाम नजला नहीं किसी के सांस हुआ।।2।।

ना हिन्दू ना मुसलमान ना जैनी सिख ईसाई थे।
महज एक थी मनुष्य की जाति सब वेदों के अनुयायी थे।
पानी दूध की तरह आपस में मिलते भाई-भाई थे।
ना अन्यायी राजा थे ना रिश्वतखोर सिपाही थे।
वेद का सूरज छिपते ही दुनिया में बन्द प्रकाश हुआ।।3।।

सिर पर थे पगड़ी चीरे हाथ में सदा लठोरी थी।
राजा थे सूरजमल से और रानी यहां किशोरी थी।

‘पृथ्वीसिंह बेधड़क’ कहे यहां नहीं डकती चोरी थी।
डसी तरह से फिर होज्या गर वेदों में विश्वास हुआ।।4।।

ईश्वर  किसे कहते हैं  पृथ्वी सिंह बेधड़क आगे लिखते है

भगवन कभी ना याद करे , पर दुखिया की इमदाद करे
और पापी को बर्बाद करे , भगवन उसी को कहते हैं

मंदिर मस्जिद गिरजे अन्दर किसी समय नहीं खुदा  रहे
इनमें खुद बताने वाला सदा खुद से जुदा रहे

वह खुद तो अन्दर मुंडा रहे , उसका मालिक ना खुदा  रहे
खात ऊपर गुदगुदा रहे , बेइमान उसी को कहते हैं ॥ १॥

 देश की रक्षा की खातिर जो अपनी बोटी बोटी दे
जिससे मनुष्य तरक्की करता वह सब मुफ्त कसौटी दे

भूखे को एक दो रोटी दे नंगे को फटी लंगोटी दे
रहने को कोई त्म्बोती दे , धनवान उसी को कहते हैं ॥ २॥

खर्च काटकर देश के हित में अपनी सारी कमाई दे
प्रथम श्रेणी में लड़का जो उसकी सारी पढ़ाई दे
बादाम रगड़ ठंडाई दे सर्दी में सौड़  रिजाई दे
निर्धन को मुफ्त दवाई दे लुकमान उसी को कहते हैं ॥ ३॥

रोटी कपडे मकान को जो भाई बटवारा कर देगा
ग्राम ग्राम कुछ भूमि छोड़ वहां गऊ का चारा कर देगा
घर घर में हरा कर देगा , एक सार गुजर कर देगा
जो ऐसा इशारा कर देगा ,प्रधान उसी को कहते हैं ॥ ४॥

देश के हर बच्चे को जो पूरी तालीम दिला  देगा
दयानंद की तरह से वह फिर मुर्दा देश जिला देगा
उजड़ा चमन खिला देगा जो बिछड़े भाई मिला देगा
और प्याला प्रेम पिला देगा , इंसान उसी को कहते हैं ॥ ५ ॥

विकट  रूप कर कभी कभी जिस जगह वह आया करता है
बड़े कीमती पेड़ जड़ों से वह फाड़ बगाया करता है
सर्वस्व मिटाया करता है और आग लगाया करता है
जहाज डुबाया करता है , तूफ़ान उसी को कहते हैं ॥ ६ ॥


पृथ्वी सिंह बेधड़क कहे वह दूर कंगाली कर देगा
घर घर में खुशाली कर देगा  एक शान निराली कर देगा
जो मिनिस्टर हाली कर देगा उत्थान उसी को कहते हैं

                                                      

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